मोदी-शाह की जोड़ी ने साकार किया "लौह पुरुष" सरदार पटेल का सपना
punjabkesari.in Monday, Aug 05, 2019 - 03:34 PM (IST)
नेशनल डेस्कः मोदी सरकार ने सोमवार को ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35 ए को हटाने तथा राज्य को दो केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख में बांटने का निर्णय लिया है। केन्द्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर की अपनी विधानसभा होगी जबकि लद्दाख में विधानसभा का प्रावधान नहीं रखा गया है। राजनीतिक रुप से दूरगामी प्रभाव वाले सरकार के इन असाधारण फैसलों से जम्मू-कश्मीर को लेकर पिछले सप्ताह से चली आ रही अटकलबाजियों पर विराम लग गया।
पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी ने वो कर दिखाया जिसे करने का साहस आजतक कोई सरकार नहीं कर पाई। मोदी सरकार हमेशा से कहती आई है कि अगर सरदार वल्लभ भाई पटेल को उस समय न रोका जाता तो कश्मीर का मुद्दा कब का सुलझ गया होता। दरअसल सरदार पटेल भी कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे। मोदी सरकार ने आखिरकार सरदार पटेल का सपना साकार कर ही दिया। सरदार पटेल ही वो शख्स थे जिन्होंने पूरे भारत को एक सूत्र में बांधा था। वहीं अगर उस समय पटेल की चलती तो आज कश्मीर का मुद्दा होना ही नहीं था। कश्मीर कब का भारत का हिस्सा बन जाता।
तो सुलझ जाता कश्मीर मुद्दा
कश्मीर का मुद्दा आज भले ही चिंता का ही विषय हैं, लेकिन एक समय ऐसा था जब यह समस्या सुलझने की कगार पर थी लेकिन उस समय पटेल की मर्जी चलने नहीं दी गई। गृहमंत्री के पद पर रहते हुए पटेल ने इसे सुलझाने का भरपूर प्रयास किया। कश्मीर पर अपनी बेबसी पटेल ने कभी नहीं छुपाई। पटेल कहते थे कि, "यदि नेहरू और गोपाल स्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो हैदराबाद की तरह इस मुद्दे को भी आसानी से देशहित में सुलझा लेते। दरअसल भारत के एकीकरण के दौरान सिर्फ हैदराबाद के आपरेशन पोलो के लिए पटेल को सेना भेजनी पड़ी ती जिसके बाद वह भी भारत का हिस्सा बन गया। पटेल ठीक वैसे ही कश्मीर को भी भारत में मिलाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने पूरा जोर लगाया लेकिन नेहरू नहीं माने और पटेल को अपनी सीमा के अंदर रहकर ही काम करना पड़ा। लेकिन उनकी यहीं सीमाएं कश्मीर मुद्दा नहीं सुलझा पाईं। पटेल पूरी तरह से आश्वस्त थे कि अगर उन्हें छूट दी जाती तो पूरा कश्मीर भारत में होता और यहां किसी का हस्ताक्षेप नहीं होता।
पटेल ने मायूस होकर इस समस्या से खुद को अलग कर लिया और पाकिस्तान ने इसका फायदा उठाया। हालांकि कुछ समय बाद फिर ऐसी परिस्थितियां बनी कि महाराजा हरि सिंह ने कश्मीर का विलय भारत में करने की पटेल की मांग को मान लिया। उस समय कबाइलियों ने आक्रमण किया तो महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद मांगी, इस पर पटेल ने महाराजा को विलय का प्रस्ताव भेजा। बात पक्की हो गई और कश्मीर के भारत में सशर्त विलय पर मुहर लग गई। इसके बाद पटेल ने भारतीय सेना को महाराजा की मदद के लिए भेजा। सेना ने श्रीनगर पहुंचकर कबाइलियों को खदेड़ना शुरू कर दिया, इसी बीच युद्धविराम की घोषणा हो गई और भारतीय सेना को अपना अभियान रोकना पड़ा। इसी बीच नेहरू की कश्मीर पर निजी दिलचस्पी के बाद पटेल को अपने हाथ खींचने पड़े। नेहरू ने कश्मीर का मुद्दा अपने हाथ में ले लिया और गृह मंत्रालय को इससे दूर रहने को कहा गया। पटेल कश्मीर को किसी भी तरह के विशेष राज्य का दर्जा देने के खिलाफ थे कई देशों से सीमाओं के जुड़ाव के कारण कश्मीर का विशेष सामरिक महत्व था इस बात को पटेल बखूबी समझते थे इसीलिए वे कश्मीर को भारत में मिलाना चाहते थे।
नेहरू के लिए नहीं बने पीएम
भारत की आजादी के बाद सभी की पीएम के लिए पटेल पहली पंसद थे। यहां तक कि कांग्रेस की कई समितियां भी इसकी पक्षधर थीं लेकिन महात्मा गांधी की इच्छा का आदर करते हुए पटेल ने प्रधानमंत्री पद की दौड से खुद को अलग कर लिया और उन्होंने इस पद के लिए नेहरू का समर्थन किया। पटेल को उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री का कार्य सौंपा गया। हालांकि नेहरू और पटेल के बीच संबंध कभी सामान्य नहीं रहे और कई ऐसे अवसर आए जब दोनों ने अपने पदों से त्यागपत्र तक देने की धमकी दे डाली। गृह मंत्रायल संभालते ही उन्होंने सबसी बड़ी जिम्मेदारी निभाई देसी रियासतों (राज्यों) को भारत में मिलाने की और वो भी बिना किसी खून-खराबे के। भारत के एकीकरण में उनके महान योगदान को आज भी सराहा जाता है।
आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। उनका भारत की एकता और अखंडता में सराहनीय सहयोग रहा। पटेल का जन्म नडियाद, गुजरात में एक लेवा गुर्जर कृषक परिवार में हुआ था। वे महात्मा गांधी के विचारों से काफी प्रभावित थे, और उन्हीं विचारों के चलते उन्होंने भारत के स्वतन्त्रता आंदोलन में भाग लिया।