मोदी की चीन यात्रा का एजैंडा ‘गोपनीय’

Monday, Apr 30, 2018 - 01:34 AM (IST)

नेशनल डेस्कः 25 अक्तूबर, 1970 को पाकिस्तान के सैन्य तानाशाह  याहिया खान ने अमरीकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन से वाशिंगटन में मुलाकात की। उस समय अमरीका के राष्ट्रीय सलाहकार हैनरी किसिंजर ने उनके बीच हुई वार्तालाप के बारे में व्हाइट हाऊस के लिए लिखे एक अत्यंत गोपनीय दस्तावेज में बहुत ही दिलचस्प चीजें दर्ज की थीं। यह दस्तावेज मई 2001 में डीक्लासीफाई किया गया था।

किसिंजर ने इसमें याहिया को ‘‘कड़क, सीधी बात करने वाला और बढिय़ा सैंस ऑफ ह्यूमर वाला’’ बयान किया है। साथ ही यह भी लिखा है कि वह बिल्कुल सीधा-सादा और अंजान सा होने का भ्रम पैदा करता है, लेकिन शायद इससे कहीं अधिक  जटिल व्यक्तित्व वाला है। निक्सन ने याहिया को भारत के बारे में पाकिस्तान के पागलपन के विरुद्ध आगाह किया था लेकिन फिर भी उसे विश्वास दिलाया था कि अमरीका इस्लामाबाद की सहायता करना जारी रखेगा। इस वार्तालाप में भारत में अमरीका के तत्कालीन राजदूत  केनेथ कीटिंग के बारे में एक दिलचस्प टोटका शामिल है।

हुआ यूं कि जब इंदिरा गांधी (जिन्हें इस मीमो में ‘मैडम गांधी’ लिखा गया है)  न्यूयार्क जाने के लिए दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचीं तो प्रोटोकॉल के अनुसार कीटिंग उन्हें बधाई देने के लिए हवाई अड्डे पर मौजूद नहीं थे। ऐसा इसलिए हुआ कि भारतीयों ने जानबूझ कर कीटिंग को परेशान करने के लिए नुक्सदार अलार्म क्लार्क उन्हें दिया था जिसके कारण कीटिंग अधिक देर तक सोए रहे।

इस उल्लेख के कुछ ही अर्से बाद किसिंजर याहिया की आगामी पेचिंग यात्रा का उल्लेख करता है। उस समय अमरीका के चीन के साथ कोई कूटनीतिक संबंध नहीं थे, जबकि अपने मुख्य दुश्मन सोवियत यूनियन को निष्प्रभावी करने के लिए यह किसी भी कीमत पर ऐसे संबंध स्थापित करना चाहता था। ऐसा तब संभव हुआ जब अगले वर्ष किसिंजर ने पाकिस्तान की यात्रा की। इस यात्रा के ऐन बीचों-बीच उनके कार्यालय ने यह खबर उड़ाई कि वह अस्वस्थ हैं और कुछ दिनों तक सार्वजनिक  कार्यक्रमों से दूर रहेंगे। लेकिन इस अवधि दौरान वह चीनी नेता चाऊ-एन-लाई से मिलने के लिए गुप्त रूप में चीन पहुंचे हुए थे और इस ढंग से उन्होंने निक्सन की 1972 की ऐतिहासिक चीन यात्रा के लिए आधार तैयार किया।

हाल ही में नरेन्द्र मोदी ने चीन की जो यात्रा की है उसके संबंध में भी इसी तरह का कुछ गोपनीय किस्सा है लेकिन यह दुनिया की नजरों से उस तरह नहीं छिपा हुआ जिस तरह निक्सन की यात्रा रहस्यमय बनी हुई थी। यह यात्रा केवल भारतीयों के लिए ही गोपनीय है। कुछ दिन पूर्व तक इसकी घोषणा भी नहीं हुई थी और न ही इसकी कोई योजना बनी हुई थी। सरकार ने तो यह कहा था कि इस तरह का कोई एजैंडा नहीं है।

पिछले साल डोकलाम को लेकर आमने-सामने थे भारत-चीन
लेकिन अब स्पष्ट हो गया है कि मोदी चीन में सैर-सपाटे के लिए नहीं गए हैं। इस यात्रा के बाद कोई संयुक्त बयान जारी नहीं होगा और न ही प्रत्यक्षता मीटिंगों के दौरान कोई नोट्स तैयार किए जाएंगे। सवाल पैदा होता है कि ऐसे में वे बातचीत क्यों कर रहे हैं? लोकतंत्र में तो उचित यही है कि सरकार अपने नागरिकों को यह बताती कि इस यात्रा का उद्देश्य क्या है? क्योंकि ऐसा न बताए जाने के कारण बेवजह चिंता पैदा होगी। फिर भी हो सकता है कि यात्रा के विवरण सार्वजनिक कर दिए जाएं।  चीन के साथ हाल ही में हमारे रिश्तों में आए बदलावों के बारे में हम जो कुछ जानते हैं वह इस प्रकार है। कुछ माह पूर्व भूटान के डोकलाम नामक भूक्षेत्र को लेकर बहुत जबरदस्त टकराव पैदा हुआ था। हम चीनी घुसपैठ  पर लगाम कसने में सफल रहे थे, लेकिन सरकार अब कह रही है कि चीनी सेना इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति  मजबूत कर रही है और शायद वर्षांत तक दोबारा पंगा लेगी।

कुछ माह पूर्व मालदीव ने भारत को ठेंगा दिखाते हुए चीन का पक्ष लिया था। यह बहुत ही हैरानीजनक बात थी क्योंकि कुछ ही समय पूर्व तक भारत 5 लाख से भी कम आबादी वाले इस मालदीव में अपनी मनमर्जी चला लेता था। बेशक यह देश श्रीलंका के समीप है लेकिन चीन तो यहां से बहुत दूर है।

नेपाल के नए नेता ने यह बात छिपाने की कोई जरूरत नहीं समझी कि वह मोदी और भारत से कितनी नफरत करता है और अपने देश को दोबारा चीन की ओर कतारबद्ध करने को प्राथमिकता देगा। चीन ने बैल्ट एंड रोड पेशकदमी  को आगे बढ़ाना जारी रखा हुआ है जिसमें श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल सहित हमारे लगभग सभी पड़ोसी देश शामिल हैं। ये ऐसी बातें हैं जो चीन के साथ अपने ताजा संबंधों के बारे में हम जानते हैं। लेकिन मोदी की वर्तमान चीन यात्रा के दौरान इनके बारे में न तो चीन कुछ बोल रहा है और न ही भारत।

चीन ने नहीं दिखाई कोई गर्मजोशी
भारत में मोदी की इस यात्रा को  अखबारों के पहले पृष्ठ पर जगह दी गई है। इसका तात्पर्य यह है कि विदेश मंत्रालय के मामलों की कवरेज करने वाले रिपोर्टरों की नजरों में यह यात्रा बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन चीन में इसके लिए कोई खास गर्मजोशी नहीं दिखाई जा रही। चीन के प्रसिद्ध अखबार ‘साऊथ चाइना मोॄनग पोस्ट’  ने मोदी की यात्रा को अपने प्रथम पृष्ठ पर कोई जगह नहीं दी। चीन के सरकारी अखबार चाइना डेली ने मोदी की यात्रा की बजाय उत्तर और दक्षिण कोरिया के बीच शांति के प्रयासों के समाचार को प्रमुखता दी। ऐसा लगता है कि इस यात्रा की जरूरत चीन से अधिक भारत को है जिसका अर्थ यह है कि हम चीन से कुछ चाह रहे हैं। सवाल यह है कि हम चीन से किस बात की उम्मीद लगाए हुए हैं?

कुछ लोगों ने अटकलें लगाई हैं कि इस यात्रा का संबंध डोकलाम तथा 2019 के चुनावों से है। उनका कहना है कि मोदी चीनी राष्ट्रपति से यह अनुरोध करेंगे कि वह भूटान में  सेना को दोबारा भेज कर उन्हें परेशान न करें और हमें भी उनका विरोध करने की जरूरत न पड़े। मुझे उम्मीद है कि मामला इस तरह नहीं है क्योंकि मोदी ने इस तरह की कोई बात नहीं की । ऐसी बात करना बहुत परेशानी जनक हो सकता था।

किसिंजर की चीन यात्रा बहुत गोपनीय थी क्योंकि इसके जाहिर होने से पूरा मिशन ही खटाई में पड़ सकता था। यदि एक बार यह बात सार्वजनिक हो जाती तो दोनों देशों के बीच चल रही कड़वाहट के मद्देनजर चीन के लिए अमरीका के साथ खुली बातचीत करना असंभव हो जाता क्योंकि ऐसी स्थिति में सोवियत यूनियन को जवाबी कार्रवाई करने का मौका और बहाना मिल जाता। किसिंजर की यात्रा बेशक गोपनीय थी लेकिन एजैंडा गोपनीय नहीं था, जबकि मोदी के मामले में एजेंडा गोपनीय है। -  आकार पटेल

Punjab Kesari

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