ऑफ द रिकॉर्डः नेहरू को धोखा देने वाले चीन की चालबाजी से मोदी ने लिया सबक

Saturday, Feb 27, 2021 - 05:40 AM (IST)

नई दिल्लीः चीन की गलवान घाटी के फिंगर इलाकों से चीनी सेना की वापसी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए ऐतिहासिक जीत बताने वाले प्रशंसकों की कोई कमी नहीं है। इसमें संदेह नहीं कि चीनी सेना की वापसी के चित्रों से देश में एक उत्साह का भाव पैदा हुआ और इस घटना का स्वागत किया गया। यह पहली बार नहीं है जब चीन गलवान घाटी से पीछे हटा है। 

इससे पहले 7 जुलाई 1962 को चीनी सेना एकतरफा फैसला लेकर इसी गलवान घाटी से पीछे हट गई थी जिसके बाद देश में खूब खुशियां मनाई गई थीं और तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के लिए यह पूरा मामला राहत देने वाला था। परंतु उस समय चीनियों का पीछे हटना एक साजिश थी। चीनी सेना 96 दिनों के बाद 20 अक्तूबर 1962 को फिर लौट आई थी और उसने भारत पर हमला कर दिया था। इस अप्रत्याशित हमले में भारत को अपमानजनक हार का सामना करना पड़ा था। 

प्रशंसक चाहे इतिहास का सबक भूल गए हों परंतु मोदी भूलने वाले नहीं हैं। वह आने वाले दिनों की चुनौतियों से भली-भांति परिचित हैं और यही कारण है कि न तो मोदी ने और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने इस संबंध में एक भी शब्द कहा है। यहां तक कि जब रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने चीनी सेना की वापसी को लेकर 11 फरवरी को संसद में बयान पढ़ा था तो उन्होंने इस बारे में कोई विवरण नहीं दिया था। 

विदेश मंत्रालय भी चीन से हुए समझौते को लेकर मुंह नहीं खोल रहा है। कारण यह है कि अगर चीनी सैनिक पैंगोंग झील से वापस हुए हैं तो भारत भी कैलाश पर्वत शृंखला की राचिन ला व रेजांग ला पहाडिय़ों से हटा है। भारत अब चीन पर इस बात के लिए जोर डाल रहा है कि वह हॉट स्प्रिंग, गोगरा व देप्सांग के मैदानी इलाके से हटे। 

मोदी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि आगे आने वाले दिनों, महीनों या सालों में चीन क्या करने वाला है? मोदी चीन की हरकत से बहुत आहत हैं। यह मोदी ही थे जिन्होंने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को 2014 में गुजरात आमंत्रित किया था और दोनों नेताओं ने एक झूले में बैठकर झूला झूला था। परंतु अप्रैल 2020 में चीनी घुसपैठ ने सब बदल दिया। नरेन्द्र मोदी ने इतिहास से यह सबक ले लिया है कि चीन अपनी सैन्य आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए उन्हें अपना जरिया नहीं बना सकता।  

Pardeep

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