जब मॉब लिंचिंग का शिकार होने से बचे थे महात्मा गांधी, जानिए कैसे बची थी जान
Monday, Oct 14, 2019 - 12:26 PM (IST)
नई दिल्ली: हाल के सालों में भारत में मॉब लिंचिंग यानी भीड़ द्वारा बिना आवेश में आकर बेकसूर लोगों की हत्या एक गम्भीर मुद्दा बन चुका है। इसके चलते गत कुछ सालों में ही लगभग 100 लोगों को भीड़ ने मौत के घाट उतार डाला है। हालांकि, ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं करीब 125 साल पहले युवा भारतीय वकील मोहनदास कर्मचंद गांधी भी दक्षिण अफ्रीका में एक जानलेवा भीड़ का शिकार होने से बाल-बाल बचे थे। वह भाग्यशाली रहे और जिंदा बच गए। नहीं तो भारत तथा विश्व को महात्मा गांधी जैसी महान शख्सियत नहीं मिल पाती।
दादा अब्दुल्ला को बिजनैस में मदद करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे महात्मा गांधी
वकालत करने के बाद गांधी जी 1893 में दादा अब्दुल्ला को बिजनैस में मदद करने के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे परन्तु 3 सालों के भीतर ही उन्होंने खुद को दक्षिण अफ्रीका में शोषण झेल रहे लोगों तथा भारतीयों के हितों हेतु संघर्ष करने वाले एक नेता के रूप में स्थापित कर लिया। इस संघर्ष के लिए उन्होंने नेटल इंडियन कांग्रेस (एन.आई.सी.) की स्थापना 22 अगस्त, 1894 को की थी। वह 1896 में भारत लौट आए और इस संघर्ष को यहां भी जारी रखा। 27 वर्षीय गांधी जी ने राजकोट में रहते हुए ग्रीन पैम्फलेट लिखा और जारी किया जिसमें इसमें उन्होंने दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मजदूरों और कुलियों की दयनीय हालत तथा उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन से पर्दा उठाया था।
महात्मा गांधी के शरीर पर थी कई जगह चोटें
अंग्रेजों ने ग्रीन पैम्फलेट को सरकार विरोधी प्रकाशन माना। जब वह अपने परिवार के साथ वापस डरबन लौटे तो उनके जहाज को 3 दिन बंदरगाह पर आने से रोक कर रखा गया। अंतत: जब वह जहाज से उतरे तो उन्हें गोरों की भीड़ ने घेर लिया और उनकी पिटाई शुरू कर दी। उस वक्त वहां से गुजर रहीं डरबन पुलिस के सुपरिटैडैंट आर.सी. एलग्जैंडर की पत्नी सारा एलैग्जैंडर ने उन्हें बचाया। गोरों की भीड़ से उन्हें बचाने के लिए उन्होंने अपनी छतरी से गांधी जी को ढंका। उनके पति के पास इस घटना की सूचना पहुंची तो पुलिस ने वहां पहुंच कर गांधी जी को सुरक्षित निकाला। उन्हें उनके दोस्त जीवांजी रुस्तमजी के घर पहुंचाया गया जहां उनकी पत्नी और बच्चे पहले ही पहुंच चुके थे। उनके कपड़े फट चुके थे और शरीर पर कई जगह चोटें थीं। उनके इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया गया परन्तु उन्हें रुस्तमजी के घर पहुंचे थोड़ी ही देर हुई थी कि गोरों की भीड़ वहां भी पहुंच गई और गांधी जी को उन्हें सौंप देने की मांग करने लगी।
सुपरिटैडैंट की सलाह पर गांधी जी ने पहने थे पुलिस कर्मी के कपड़े
पुलिस सुपरिटैडैंट एलैग्जैंडर की सलाह पर गांधी जी ने पुलिस कर्मी के कपड़े पहने और वहां से सुरक्षित निकल गए। गांधी जी को भीड़ द्वारा जान से मारने की कोशिश की खबर ब्रिटिश सरकार तथा कोलोनियल सैक्रेटरी जोसफ चैंबरलेन तक पहुंची तो उन्होंने दंगाइयों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने का आदेश दिया। हालांकि, गांधी जी ने इस कार्रवाई को रोकने की प्रार्थना करते हुए सरकार को लिखा, हमलावर युवा थे और वे प्रकाशित हुई एक गलत खबर की वजह से गलतफहमी का शिकार थे।