मिशन 2019ः PM पद के लिए लग सकती है लाटरी, नंबर 3 के लिए घमासान

punjabkesari.in Tuesday, Dec 18, 2018 - 11:37 AM (IST)

जालन्धर (नरेश कुमार): आगामी लोकसभा चुनाव दौरान भले ही मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के मध्य होता नजर आ रहा हो लेकिन इस बड़े मुकाबले के बीच एक लड़ाई तीसरे नंबर की पार्टी के लिए भी हो रही है। दरअसल तीसरे की पॉजीशन की दौड़ में लगे नेताओं को लग रहा है कि यदि भाजपा 2019 में बहुमत के आंकड़े से दूर रही और कांग्रेस के पास भी संतुष्टिजनक सीटें न आईं तो तीसरे नंबर वाली पार्टी के नेता की लॉटरी लग सकती है और प्रधानमंत्री पद के लिए तीसरी बड़ी पार्टी के नेता के नाम पर सहमति बन सकती है। तीसरे नंबर की पार्टी के लिए छिड़े घमासान में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी, बसपा प्रमुख मायावती, डी.एम.के. प्रमुख स्टालिन, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और एन.सी.पी. प्रमुख शरद पवार के नाम शामिल हैं।
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कांग्रेस के भरोसे स्टालिन
डी.एम.के. प्रमुख स्टालिन की पार्टी डी.एम.के. को पिछले चुनाव में लोकसभा चुनाव दौरान कोई सीट हासिल नहीं हुई थी लेकिन इस बीच पार्टी के नेता ए. राजा और कनिमोझी को भ्रष्टाचार के मामले में राहत मिलने के साथ-साथ ए.आई.ए. डी.एम.के. प्रमुख जयललिता के निधन के बाद डी.एम. की धमाकेदार वापसी के संकेत मिल रहे हैं। डी.एम.के. ने इसी रणनीति तहत कांग्रेस को राज्य की 39 में से 5 सीटें छोडऩे का ऑफर दिया है। डी.एम.के. को लग रहा है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन राज्य की सारी 39 सीटों पर कब्ज़ा कर सकती है। पिछले चुनाव दौरान ए.आई.ए.डी.एम.के. ने राज्य की 37 सीटें जीती थीं और वह लोकसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है। तमिलनाडु में नतीजे इस बात पर निर्भर करेंगे कि डी.एम.के.-कांग्रेस के गठजोड़ के जवाब में सामने कौन सा गठजोड़ होता है। अपनी भविष्य की राजनीति को देखते हुए ही स्टालिन ने राहुल गांधी को विपक्ष की तरफ से पी.एम. पद का चेहरा बनवाने के लिए दाव चला है। उन्हें पता है कि यदि चुनाव के बाद कांग्रेस सरकार बनाने की स्थिति में न हुई तो उन्हें इस सद्भाव का फायदा मिल सकता है।
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ममता के नाम पर भी सहमति के आसार
ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस 34 लोकसभा सदस्यों के साथ मौजूदा समय में लोकसभा की चौथी सबसे बड़ी पार्टी है। ममता की पार्टी ने इस लोकसभा चुनाव दौरान राज्य की सारी 42 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। यदि ममता यह लक्ष्य हासिल करने में सफल हुई तो वह खुद-ब-खुद तीसरी बड़ी पार्टी के तौर पर उभर सकती हैं और उनके नाम पर आसानी से सहमति भी बन सकती है। ममता बनर्जी अपनी जीत को लेकर इतनी आश्वस्त हैं कि वह राज्य में किसी के साथ गठजोड़ नहीं करना चाहतीं। हालांकि उनकी पार्टी के कांग्रेस के साथ गठजोड़ की अटकलें हैं लेकिन ममता ने बीते दिनों साफ कर दिया था कि वह राज्य में किसी पार्टी के लिए 2 सीटें भी नहीं छोड़ेंगी। खुद को कांग्रेस से दूर दिखाने की रणनीति तहत ही उन्होंने 3 राज्यों में कांग्रेस की जीत पर पार्टी हाईकमान को औपचारिक बधाई तक नहीं दी। पश्चिम बंगाल में लैफ्ट पार्टियां इस समय हाशिए पर हैं। लिहाजा उम्मीदें बढ़ गई हैं लेकिन यदि लैफ्ट का कांग्रेस के साथ गठबंधन हुआ तो ममता के लिए मुश्किल हो सकती है।
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1996 में क्या हुआ था
1996 में  भारतीय जनता पार्टी 161 लोकसभा सीटें जीती थी। सबसे बड़ी पार्टी के नेता होने के नाते उस समय अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी लेकिन वह संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाए। 13 दिन में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार गई थी। इसके बाद जे.डी.एस. के नेता और कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा को 13 पार्टियों ने समर्थन दिया और इन 13 पार्टियों ने कांग्रेस के समर्थन के साथ थर्ड फ्रंट की सरकार बनाई थी लेकिन यह सरकार ज्यादा लंबा समय नहीं चल सकी और 1998 में सरकार गिर गई थी। मौजूदा दौर में क्षेत्रीय दलों को एक बार फिर 1996 जैसे हालात बनते नजर आ रहे हैं लिहाजा सारे क्षेत्रीय नेताओं की महत्वकांक्षाएं हिलोरे मारने लगी हैं।
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शरद पवार भी रेस में
हालांकि शरद पवार की पार्टी एन.सी.पी. महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ तालमेल में आधी सीटों पर चुनाव लड़ेगी और पार्टी के हिस्से महज 24 सीटें ही आएंगी लेकिन शरद पवार सियासत के अनुभवी खिलाड़ी हैं और सारी पार्टियों के साथ उनका बेहतर तालमेल है और चुनाव के बाद यदि किसी पार्टी के साथ बहुमत न हुआ तो ऐसे में देश की कई पार्टियां शरद पवार के नाम पर भी सहमति बना सकती हैं।
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मायावतीेे के बड़े सपने
उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी तीसरे नंबर की पॉजीशन हासिल करने के लिए दौड़ में हैं। इसी रणनीति तहत मायावती ने कांग्रेस से मध्य प्रदेश, राजस्थान व छत्तीसगढ़ में लोकसभा सीटें छोडऩे की मांग की थी। बसपा का लक्ष्य इस चुनाव के दौरान कम से कम 50 सीटों पर जीत हासिल करने का था और वह अपनी पार्टी का दायरा उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी बढ़ाना चाहती थीं। हालांकि बसपा का कांग्रेस के साथ गठजोड़ नहीं हो सका लेकिन अब मायावती ने उत्तर प्रदेश में ही ज्यादा से ज्यादा सीटें हासिल करने की रणनीति तय की है। इसी के तहत बहुजन समाज पार्टी उत्तर प्रदेश में सपा से ज्यादा सीटें हासिल करने के लिए दबाव बना रही हैं और वह राज्य की 80 सीटों पर तीसरे किसी सहयोगी के लिए जगह नहीं छोड़ना चाहतीं। यही कारण है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस के मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह से सपा और बसपा दोनों ने दूरी बनाकर रखी है। हालांकि पिछले चुनाव दौरान मायावती की पार्टी को एक भी सीट हासिल नहीं थी लेकिन मायावती को लग रहा है कि सपा के साथ गठजोड़ के बाद यदि लोकसभा चुनाव में बसपा तीसरे नंबर की पार्टी बनी तो प्रधानमंत्री पद के लिए उनके नाम पर भी सहमति बन सकती है।
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चंद्रबाबू नायडू की भागदौड़ भी जारी
आंध्र प्रदेश के मुख्यमत्री चंद्रबाबू नायडू भी अगले लोकसभा चुनाव के बाद खुद को अहम भूमिका में देख रहे हैं। इसी राजनीति के तहत चंद्रबाबू नायडू भाजपा के खिलाफ बनाए जा रहे गठबंधन के लिए विपक्षी दलों में तालमेल का काम करने की भागदौड़ में जुटे हैं। 10 दिसम्बर को दिल्ली में विपक्षी दलों की हुई बैठक भी चंद्रबाबू नायडू की पहल पर ही हुई थी। नायडू पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के अलावा बड़े राज्यों में मजबूत आधार रखने वाले सभी राजनीतिक दलों के साथ बातचीत कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि उन्हें महागठबंधन का संयोजक बनाने की भी तैयारी हो गई थी लेकिन किन्हीं कारणों से फिलहाल यह मामला टल गया है। कांग्रेस को भी आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में नायडू की अहमियत का पता है। लिहाजा नायडू आंध्र प्रदेश में चुनाव परिणाम के बाद ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर अन्य सहयोगी दलों के समर्थन से अपना चेहरा पी.एम. पद के लिए आगे कर सकते हैं।

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Naresh Kumar

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