बांग्लादेश में बेकाबू हैं कट्टरपंथी

Thursday, Jun 16, 2016 - 02:56 PM (IST)

बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष लोगों पर हमले बढ़ते ही जा रहे हैं। देखने में आया है कि इस्लामी चरमपंथियों द्वारा इन लोगों की लगातार बर्बर हत्याएं भी की जा रही है। पिछले कुछ सालों में ब्लॉगरों, अकादमिक जगत के लोगों, समलैंगिक अधिकार कार्यकर्त्ताओं को भी नहीं छोड़ा जा रहा है। अधिकतर हमनों की जिम्मेवारी आतंकी संगठन आईएसआईएस ने ली है। सरकार इससे इंकार  करती है​ कि बांग्लादेश में इस संगठन का आतंक हैं। सरकार माने या न माने, लेकिन हमलों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है।  इन घटनाओं के कारण वहां से कई हिन्दू भारत में पलायन को मजबूर हैं। इससे वहां हिंदुओं की तादाद तेजी से घट रही है।

हाल में कुछ संदिग्ध लोगों ने एक हिन्दू लेक्चरर के मकान में घुसकर हथियारों से जानलेवा हमला किया और उन्हें गंभीर रूप से घायल कर दिया। लेक्चरर के शोर मचाने पर पड़ोसियों ने एक हमलावर को पकड़ लिया, पर दो अन्य भाग निकले। पकड़ा गया हमलावर कौन है और लेेक्चरर पर हमला क्यों किया गया इसका पता अ​भी तक नहीं चला है। पुलिस ने संदेह जरूर जताया है कि वह किसी आतंकवादी समूह का सदस्य हो सकता है। हाल में सुबह की सैर पर निकले एक हिंदू आश्रमकर्मी की हत्या कर दी गई थी। 

आईएसआईएस से संबद्ध अमाक संवाद एजेंसी का दावा है कि बांग्लादेश में उनके लड़ाकों ने यह हत्या की है। अमरीका स्थित साइट इंटेलिजेंस ग्रुप ने इस हत्याकांड की पुष्टि की है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और धर्मनिरपेक्ष लेखकों पर हो रहे हमलों को रोकने के लिए पुलिस ने देशभर से इस्लामिक आतंकवादी संगठनों के तीन हजार से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया है। इनमें से 37 संदिग्धों आतंकी बताए गए हैं।

पुलिस उप महानिरीक्षक भी स्वीकार कर चुके हैं कि संदिग्ध आतंकवादियों में से 27 चरमपंथी प्रतिबंधित जमातउल मुजाहिदीन बांग्लादेश (जेएमबी) के सदस्य हैं। इन्हीं संगठनों ने हिंदुओं और ईसाइयों सहित धर्मनिरपेक्ष और उदार कार्यकर्त्ताओं और अल्पसंख्यकों पर अधिकतर हमले किए। प्रधानमंत्री शेख हसीना प्रत्येक हत्यारे को पकडऩे की कसम खा चुकी हैं। वे दावा करती हैं कि पुलिस हिंसा को उखाड़ फेंकेगी। उनके इस दावे में कितना दम है यह आने वाले दिनों में पता चल जाएगा।

एक तथ्य और उभर कर सामने आ रहा है कि बांग्लादेश अब इस्लामिक मुल्क नहीं रह जाएगा। वहां सुप्रीम कोर्ट में इस पर बहस शुरू हो गई है कि धर्म को राज्य से अलग कर दिया जाए। अल्पसंख्यकों पर लगातार हो रहे हमलों के मद्देनज़र ऐसा सोचा जा रहा है। गौरतलब है कि पाकिस्तान से टूटकर 1971 में जब बांग्लादेश वजूद में आया तब उसे एक सेकुलर देश घोषित किया गया था, लेकिन 1988 में संविधान में संशोधन करके इस्लाम को राज्य का आधिकारिक मज़हब बना दिया गया। 

सुप्रीम कोर्ट में इस संशोधन को अवैध बताते हुए चुनौती दी गई है। चुनौती देने वाले बांग्लादेश के अल्पसंख्यक समुदाय के नेता हैं। इस बीच अमरीका भी बांग्लादेश को अलर्ट जारी कर चुका है कि इस्लामिक स्टेट के लड़ाके वहां भर्ती की फिराक में हैं। सरकार ने फिर इंकार किया है कि यहां इस्लामिक स्टेट की चुनौती फिलहाल नहीं है। पुलिस सभी हमलों में कार्रवाई होने का दावा करती है। गिरफ्तार किए गए लोगों का संबंध जमात उल मुजाहिद्दीन से बताया जाता है। वे इस्लामिक स्टेट से नहीं जुड़े हैं। इन आरोपियों ने कोर्ट में स्वयं स्वीकार किया था।

एक अनुमान के अनुसार बांग्लादेश में मुसलमानों की आबादी 90 और हिंदू 8 फीसदी हैं। ईसाई और बौद्ध धर्म के 2 फीसदी अनुयायी हैं। खबर आई थी कि पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में इन हत्याओं के मद्देनजर वहां के अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सरकार से दखल करने की अपील की है। वे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए चाहते हैं कि भारत सरकार बांग्लादेश के साथ कोई पहल करे। 

बांग्लादेश हिंदू बुद्धिस्ट क्रिश्चियन यूनिटी काउंसिल के महासचिव और जानेमाने मानवाधिकार कार्यकर्ता राणा दासगुप्ता इस बारे में कह चुके हैं कि बांग्लादेश में सबसे बड़ा अल्पसंख्यक समुदाय निशाने पर है। कट्टरपंथी और जमाती ताकतें यहां हिंदुओं का सफाया कर रही हैं। उन्होंने मोदी से बहुत उम्मीद जतायी है और अपील की है कि मोदी बांग्लादेशी सरकार के समक्ष इस मुद्दे को उठाएं। 

दासगुप्ता द्वारा ऐसा दावा किया गया है कि अगर बांग्लादेश कट्टरपंथी देश में तब्दील होता है तो भारतीय उप महाद्वीप में कभी स्थिर नहीं रहेगा। स्थिरता के लिए भारत को बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमले को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। बांग्लादेश के जानेमाने अभिनेता और फिल्म विकास निगम के पूर्व प्रबंध निदेशक पीयूष बंद्योपाध्याय इसका समर्थन करते हैं। उनका मानना है कि जब तक भारत बांग्लादेश पर दबाव नहीं बनाएगा, कट्टरपंथी काबू में नहीं आएंगे। 

 
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