क्या है 'अश्विनी रडार'... कैसे करता है काम? रक्षा मंत्रालय ने किया 2906 करोड़ का करार
punjabkesari.in Wednesday, Mar 12, 2025 - 08:14 PM (IST)

नई दिल्ली। भारत की सीमाओं की सुरक्षा को और मजबूत करने के लिए भारतीय वायुसेना ने एक नई रडार प्रणाली का हिस्सा बनने का निर्णय लिया है। 12 मार्च को दिल्ली में रक्षा मंत्रालय ने भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) के साथ 2,906 करोड़ रुपये का करार किया। यह रडार प्रणाली DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) द्वारा विकसित की गई है और इसे लो लेवल ट्रांसपोर्टेबल रडार (LLTR) या "अश्विनी" कहा जाता है।
क्या है इस रडार की खासियत?
यह रडार एक एक्टिव इलेक्ट्रॉनिक फेज्ड एरे मल्टीफंक्शन रडार है, जो दुशमन के फाइटर विमान को ट्रैक कर सकता है, साथ ही हाई स्पीड ड्रोन, मिसाइल और धीमी गति से उड़ने वाले हेलिकॉप्टर को भी पकड़ सकता है। इसकी रेंज 200 किलोमीटर तक है और यह 15 किलोमीटर तक की ऊंचाई तक के क्षेत्र को स्कैन कर सकता है।
इस रडार की एक महत्वपूर्ण खासियत यह है कि इसमें आईडेंटिफिकेशन फ्रेंड ऑर फो (IFF) तकनीक है, यानी यह अपने और दुश्मन के विमानों की पहचान कर सकता है। यह रडार मोबाइल है, जिसका मतलब है कि इसे किसी भी इलाके में आसानी से तैनात किया जा सकता है। इसे -20 डिग्री से लेकर 55 डिग्री तक के तापमान में बिना किसी समस्या के चलाया जा सकता है।
कैसे काम करता है यह रडार?
यह रडार ऐरे रडार तकनीक पर आधारित है, जिसमें कई छोटे-छोटे एंटीना मिलकर एक बड़ा एंटीना की तरह काम करते हैं। ये एंटीना एक साथ मिलकर रेडियो तरंगें भेजते हैं, और जब कोई दुश्मन का विमान या मिसाइल इन तरंगों को पार करता है, तो उसका पता तुरंत लग जाता है।
इस रडार को ट्रक के ऊपर लगाया जाता है, जिससे इसे कहीं भी आसानी से ट्रांसपोर्ट किया जा सकता है। इस रडार की एक और खासियत है बीमफॉर्मिंग, जो कई एंटीना का इस्तेमाल करके सिग्नल को एक निश्चित दिशा में फोकस करता है, जिससे डेटा ट्रांसफर अधिक सटीक और भरोसेमंद हो पाता है।