तेजी से पिघल रहे एशिया के ग्लेश्यिर, वैज्ञानिकों को सता रहा बड़े खतरे का डर

Monday, Oct 22, 2018 - 05:29 PM (IST)

बीजिंगः ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते बढ़ रहे तापमान का बुरा असर ग्लेशियरों पर पड़ रहा है। यही कारण है कि आज दुनिया के ग्लेश्यिरों पर खतरा मंडरा रहा है। ग्लेशियर पिघलने की यदि यही रफ्तार जारी रही तो वह दिन दूर नहीं, जब 21वीं सदी के आखिर तक एशिया और 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर गायब हो जाएंगे और उनका नाम केवल किताबों में ही रह जाएगा। जलवायु परिवर्तन का बुरा प्रभाव चीन में भी सामने आया है, जहां जीपीएस डिवाइस के संचालन के बाद बाईशुई नं. 1 ग्लेशियर पर भयानक विस्फोट हुआ। ये धमाका इतना जोरदार था कि  इस ग्लेशियर में दरार पड़ गई और यह तेजी से पिघलना शुरू हो गया। पर्यावरण वैज्ञानिकों का मानना है कि यह तेजी से पिघलने वाले ग्लेशियरों में से एक है। 


गंगा सहित एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियां बाईशुई ग्लेशियर पर निर्भर  
गौरतलब है कि हर वर्ष लाखों पर्यटक तीसरे ध्रुव के दक्षिणी किनारे पर स्थित बाईशुई ग्लेशियर की सुंदरता से आकर्षित होकर यहां आते हैं। मध्य एशिया में अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के बाद बाईशुई दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ग्लेशियर है, जो टेक्सास और न्यू मेक्सिको के संयुक्त आकार जितना बड़ा है। वैज्ञानिकों के अनुसार, तीसरे ध्रुव का ये ग्लेशियर अफगानिस्तान के  लिए बहुत महत्वपूर्ण है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस ग्लेशियर के पिघलने से एशिया की 10 सबसे बड़ी नदियों - यांग्त्ज़ी, पीला, मेकांग और गंगा आदि को ताजा व स्वच्छ पानी मिलता है, जो अरबों लोगों के लिए एक वरदान है। 

दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ताजा और स्वच्छ जल का स्रोत
एक अमेरिकी थिंक टैंक नेशनल ब्यूरो अॉफ एशियन रिसर्च में ऊर्जा प्रबंधक एेश्ले जॉनसन का कहना है कि हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े ताजा व स्वच्छ जल स्रोत के बारे में बात कर रहे हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि बाईशुई ग्लेशियर कैसे पिघल रहा है और इसका स्वच्छ जल क्षेत्र से गुजर कर समुद्र में गिरेगा, जिसका पानी और खाद्य सुरक्षा पर प्रभाव पड़ेगा। जर्नल अॉफ जियोफिजिकल रिसर्च वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, बाईशुई ग्लेशियर ने अपने द्रव्यमान का 60 फीसदी हिस्सा गंवा दिया है और वर्ष 1982 से ये 250 मीटर तक सिकुड़ चुका है। 

चीन के लिए सबसे अधिक खतरा
2015 में किए गए एक सर्वेक्षण के बाद वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी थी कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव के चलते 82 फीसदी ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जो चीन के लिए सबसे अधिक चिंता का विषय है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, विश्व की 20 प्रतिशत आबादी वाला देश चीन हमेशा से ताजे व स्वच्छ जल की समस्या का सामना करता रहा है और ये इसके ताजे पानी के स्रोत का मात्र 7 फीसदी हिस्सा ही है।

 ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार भयावह खतरे का संकेत
ग्लोबल वॉर्मिंग का ही असर है कि आर्कटिक में लाल बर्फ तेजी से बन रही है और उसके परिणामस्वरूप वहां ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार और तेज हो गई है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हमारे उच्च हिमालयी इलाके में जहां पर एक समय केवल बर्फ गिरा करती थी, वहां अब बारिश हो रही है। यह स्थिति भयावह खतरे का संकेत है। देखा जाए तो 1850 के आसपास औद्योगिक क्रांति से पहले की तुलना में धरती एक डिग्री गर्म हुई है। वैज्ञानिकों की मानें तो उन्हें इस बात का भय सता रहा है कि उनके द्वारा निर्धारित तापमान में बढ़ोत्तरी की दो डिग्री की सीमा को 2100 तक बचा पाना संभव नहीं दिख रहा है। उनका मानना है कि यदि ऐसा होता है तो एशिया में ग्लेशियरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।


 

Tanuja

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