मनीषा कोइराला और विक्रमादित्य मोटवानी की ''बड़े पर्दे से ओटीटी तक'' गहरी चर्चा
punjabkesari.in Monday, Nov 25, 2024 - 10:31 AM (IST)
नेशनल डेस्क। गोवा में चल रहे 55वें अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (IFFI) के दौरान सोमवार को एक शानदार सत्र हुआ जिसमें अनुभवी अभिनेत्री मनीषा कोइराला और प्रसिद्ध फिल्म निर्माता विक्रमादित्य मोटवानी ने अपनी बात रखी। इस सत्र में फिल्म इंडस्ट्री के दो दिग्गजों ने ‘बड़े पर्दे से ओटीटी तक’ विषय पर गहरी चर्चा की। यह सत्र कला अकादमी के खचाखच भरे सभागार में हुआ, जिसमें फिल्म प्रेमी, छात्र, मीडिया कर्मी और प्रशंसक शामिल हुए।
मनीषा कोइराला का अनुभव और ओटीटी पर विचार:
मनीषा कोइराला ने इस सत्र में अपने 30 साल के फिल्म करियर के अनुभवों को साझा किया। उन्होंने बताया कि चाहे फिल्म हो या ओटीटी शो दोनों में अभिनय करने के लिए समान स्तर की मेहनत, तैयारी और ईमानदारी की आवश्यकता होती है। उन्होंने यह भी कहा, "मेरे करियर में ‘हीरामंडी’ सबसे बड़ा सेट था जिस पर मैंने कभी काम किया।" इसके अलावा मनीषा ने यह स्वीकार किया कि वह ओटीटी सामग्री को बहुत पसंद करती हैं और इसे नियमित रूप से देखती हैं।
मनीषा ने ओटीटी के बढ़ते प्रभाव को स्वीकार किया और कहा, "यह एक गेम चेंजर साबित हो रहा है। यह नए अवसरों को खोल रहा है और उभरते फिल्म निर्माता, लेखक और अभिनेता इस माध्यम के माध्यम से अधिक मौके पा रहे हैं।" उन्होंने यह भी बताया कि पहले फिल्मों में उम्रदराज अभिनेत्रियों को सीमित भूमिकाएं मिलती थीं लेकिन ओटीटी ने अब उन्हें अधिक सशक्त भूमिकाओं के लिए प्लेटफॉर्म दिया है।
विक्रमादित्य मोटवानी का दृष्टिकोण:
निर्देशक विक्रमादित्य मोटवानी ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने बताया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर काम करना और सिनेमा में काम करना दोनों अलग-अलग अनुभव होते हैं। "ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आप अधिक स्वतंत्रता महसूस करते हैं। नाटकीय रिलीज में बजट और समय की सीमाएं होती हैं लेकिन ओटीटी पर आपको कहानियों को विस्तार से पेश करने का मौका मिलता है।"
वहीं विक्रमादित्य ने यह भी बताया कि ओटीटी शो में रचनात्मक दृष्टिकोण से चुनौतियां होती हैं जैसे कि कई सीज़न को बनाए रखना और प्रवाह बनाए रखना। उन्होंने कहा, "शूटिंग प्रक्रिया अब तेज हो गई है जैसे ‘जुबली’ के 10 एपिसोड 90 दिनों में शूट किए गए थे और ‘सेक्रेड गेम्स’ 80 दिनों में शूट हुआ था।"
बड़े पर्दे और ओटीटी का संतुलन:
मनीषा और विक्रम दोनों ने इस बात पर जोर दिया कि बड़े पर्दे और ओटीटी के बीच संतुलन होना चाहिए। इस मौके पर विक्रम ने कहा, "ओटीटी के लिए लिखने की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग होती है। आपको एपिसोड्स और समय को ध्यान में रखकर काम करना होता है।" दोनों ने इस बात पर सहमति जताई कि ओटीटी प्लेटफॉर्म भारत में एक नई चीज़ है और इसे और बेहतर बनाने की आवश्यकता है।
सिनेमाघरों का अनुभव:
सत्र के अंत में विक्रमादित्य ने यह भी कहा कि सिनेमाघरों में फिल्म देखने के अनुभव में सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि लंबे अंतराल और विज्ञापनों के कारण दर्शकों का अनुभव खराब हो सकता है लेकिन फिर भी बड़े पर्दे पर सिनेमा का जादू हमेशा बना रहेगा। ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की तुलना में सिनेमाघरों का अनुभव अलग होता है लेकिन दोनों का अपना महत्व है।