संघर्ष की कहानी, इस पिता के लिए सरकार को बदलने पड़े नियम!

Saturday, Jan 02, 2016 - 06:46 PM (IST)

भोपाल: पुणे में एक मल्टीनेशनल कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर 28 वर्षीय आदित्य तिवारी का संघर्ष आखिर खत्म हो गया। डेढ़ साल से एक स्पेशल चाइल्ड को गोद लेने के लिए संघर्ष कर रहे आदित्य अब देश के पहले ऐसे सिंगल पेरेंट बन गए हैं, जिन्होंने इतनी कम उम्र में बिन्नी जैसे स्पेशल चाइल्ड को गोद लिया। 

दरअसल, इस स्पेशल चाइल्ड को गोद लेने के लिए आदित्य को इसलिए संघर्ष करना पड़ा, क्योंकि बिन्नी स्वास्थ्य की कई समस्याओं से ग्रस्त है। बिन्नी डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। उसे आंखों और दिल में छेद जैसी गंभीर समस्याएं हैं। सितंबर 2014 में इंदौर में अपने एक परिजन के जन्म दिन के मौके पर मिशनरीज ऑफ चैरिटी के ज्योति निवास में मौजूद तमाम बच्चों में से एक बिन्नी पर आदित्य की नजर पड़ी, तब से ही वह उसे गोद लेने की कोशिश में थे। 

आदित्य ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री से लेकर सौ से ज्यादा सांसदों और मंत्रियों को अपनी ख्वाहिश के बारे में बताया। एक हजार से ज्यादा मेल किए, चिट्ठियां लिखीं, लगातार फोन करते रहे। तमाम सरकारी खानापूर्तियों के बाद आखिरकार उन्हें एक जनवरी को भोपाल बुलाया गया, जहां उनका ये सपना पूरा हो गया। बिन्नी का नया नाम अवनीश रखा गया है। आदित्य का कहना है कि अब बिन्नी ही मेरी जिंदगी है। उसके चेहरे पर मुस्कान ही मेरा मकसद है।

आदित्य के संघर्ष के चलते कारा को गोद लेने के नियम तक सरल करने पड़े। यह फैसला आदित्य के लिए पहली बड़ी जीत था। अब सिंगल पेरेंट की उम्र न्यूनतम 25 से 55 साल कर दी गई। वे अविवाहित थे। कम उम्र के थे। जेजे एक्ट और केंद्रीय दत्तक अभिकरण कारा की गाइडलाइन के मुताबिक 30 साल की उम्र तक गोद नहीं ले सकते थे। भोपाल से दिल्ली तक आदित्य और बिन्नी का नाम इस कदर आम हो गया कि अगस्त 2015 में जब केंद्रीय महिला बाल विकास मंत्री मेनका गांधी भोपाल आईं तो उन्होंनेे भी बिन्नी को गोद देने की प्रक्रिया जल्दी पूरा करने के निर्देश भी अफसरों को दिए।

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