महाराष्ट्र में बदलते सियासत के रंग में शिवसेना ने जुदा की राह, किंग बनने के लिए तैयार हैं उद्धव ठाकरे

Monday, Nov 11, 2019 - 02:23 PM (IST)

नई दिल्ली: कभी महाराष्ट्र (Maharashtra) में किंग मेकर की भूमिका निभाने वाला ठाकरे परिवार ने भी अब किंग बनने के लिए शिवसेना (Shivsena)-बीजेपी (Bjp) गठबंधन को ताक पर रखकर गुड बॉय फिर से कर दिया है। यह भी कम दिलचस्प नहीं हैं कि ठाकरे परिवार के तीसरी पीढ़ी के आदित्य ठाकरे (Aditya Thackeray) ने विधानसभा चुनाव ऐसे लड़ा जैसे वे ही अगले सीएम होंगे, लेकिन बीजेपी से दूर होने और कांग्रेस (Congress) और एनसीपी (Ncp) के करीब जाते-जाते उद्धव ठाकरे (Udhav Thackeray) के सीएम बनने की अटकलें तेज हो गई हैं।

सियासत के नए खिलाड़ी बने उद्धव
यह संभव हो सकता है कि आदित्य की अनुभवहीनता आड़े आ गई हो, जिस कारण राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी शरद पवार ने उद्धव को सीएम बनने का सलाह दी होगी। ऐसा उन्होंने नए गठबंधन के शर्तों के तहत लिया है या नहीं, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन यह कहा जाए कि उद्धव ठाकरे सियासत के रंग में पूरी तरह घुल चुके है तो गलत नहीं होगा।

 

उद्धव ठाकरे ने खींची नई लाईन
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने समय की नब्ज को पहचानते हुए परिवार के किंगमेकर के चोले को उतार फैंका है, जिसे कभी बाल ठाकरे ने बखूबी सींचा था। महाराष्ट्र को अपनी अंगुली पर नचाने वाले बाल ठाकरे के गुजरने के 7 साल के भीतर ही उद्धव ने किंगमेकर की भूमिका से किंग बनना ज्यादा मुनासिब समझा है। इसके साथ ही बीजेपी के साथ-साथ चलने के अघोषित वायदे को फिर से तोड़ने का फैसला लिया है।



 

नए गठबंधन के साथ शिवसेना ने जाने का किया फैसला
हालांकि राज्य में नए गठबंधन कितने दिन चलेंगे, इस पर संशय बरकरार तब तक रहेगा जब तक कि 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं हो जाता। कर्नाटक का उदाहरण सामने है, जहां सत्ता के समीकरण ने कितनी बार पाला बदला है।लेकिन महाराष्ट्र के लिए पहला मौका होगा जब शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। इन सबके बीच बीजेपी के सरकार न बनाने के फैसले ने सबको जरुर चौंका दिया है। 

बीजेपी-शिवसेना ने 2014 के उलट बदली राह 
माना जा रहा था कि शिवसेना और बीजेपी ने जिस तरह चुनाव से पहले साथ लड़ने के लिए रार पाला था, लेकिन अंततः चुनाव मैदान में सारी तकरार को पीछे छोड़ते हुए फिर से बाजी मार ली। उसी तरह राज्य में सरकार तो बीजेपी-शिवसेना गठबंधन थोड़े मतभेद के बाद बना ही लेगी, लेकिन सरकार बनते-बनते रह गई। जबकि 2019 के ठीक उलट 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और शिवसेना ने अलग-अलग चुनाव लड़ा और बाद में मिलकर एक स्थिर सरकार बनाई। जबकि इस बार के विधानसभा चुनाव में साथ चुनाव लड़े फिर भी परिणाम के बाद साथ नहीं रह सकें। वाह रें राजनीति। इसलिए राजनीति में कहा जाता है कि न कोई कोई स्थायी दोस्त हैं और न ही कोई स्थायी दुश्मन।    

 

गठबंधन के भविष्य पर उठेगा सवाल
खैर, महाराष्ट्र की जनता पर फिर से चुनाव का बोझ न पड़े इसके लिए एक स्थिर सरकार की आवश्यकता है। जिसमें नए गठबंधन के तीनों साथी को अपने तकरार को भूला कर राज्य के हित में अगले 5 साल तक सरकार को चलाना चाहिये। ताकि राज्य का विकास अबाध गति से हो सकें। सौ टके का सवाल है कि नरम-गरम गठबंधन में तकरार को भूलाकर आपसी समझदारी देखने को मिलेगी भी या नहीं, यह तो सरकार के आकार लेने के बाद ही तय होगा। 

Anil dev

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