Mahakumbh 2025: नागा साधु किस प्रकार की हथियारों की ट्रेनिंग लेते हैं, दिगंबर मनिराज पुरी ने किया खुलासा

punjabkesari.in Wednesday, Jan 08, 2025 - 05:20 PM (IST)

नेशनल डेस्क: प्रयागराज में होने वाला महाकुंभ 2025 एक बार फिर से पूरे देश और दुनिया के श्रद्धालुओं और पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करेगा। इस विशाल धार्मिक आयोजन के दौरान लाखों भक्त संगम पर पहुंचकर पुण्य की गंगा में स्नान करेंगे, लेकिन इस आयोजन में एक और विशेष आकर्षण होता है - नागा साधुओं का तप, साधना, और उनके जीवन के अद्वितीय पहलू। महाकुंभ के दौरान हर साल विभिन्न अखाड़ों में हजारों नागा साधु अमृत स्नान करते हैं, और इस बार भी यही दृश्य देखने को मिलेगा। लेकिन नागा साधु सिर्फ अपने धार्मिक अनुष्ठानों के लिए ही नहीं, बल्कि अपनी शस्त्र कला और युद्ध कौशल के लिए भी प्रसिद्ध हैं। दसनाम नागा अखाड़े के साधु दिगंबर मनिराज पुरी ने खुलासा किया कि नागा साधु किस प्रकार के हथियारों की ट्रेनिंग लेते हैं और उनका जीवन किस प्रकार की तपस्या, शस्त्र कला और कठिन साधना से गुजरता है।

भगवान की सेवा में समर्पण, नागा साधुओं का जीवन
दिगंबर मनिराज पुरी ने बताया कि नागा साधु अपने जीवन को भगवान की सेवा में समर्पित कर देते हैं। उन्होंने कहा, "हमने अपना जीवन भगवान को दे दिया है, और हमारे यहां जो लोग गहन ज्ञान में पारंगत होते हैं, उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी जाती है, और इसके बाद जो लोग अखाड़ों की व्यवस्था संभालते हैं, उन्हें महंत कहा जाता है।" मनिराज पुरी के अनुसार, नागा साधुओं का एक समूह तैयार किया जाता है, जो अपने धर्म की रक्षा और इसकी सुरक्षा के लिए प्रशिक्षित होते हैं। उनका उद्देश्य किसी भी स्थिति में धर्म पर आंच न आने देना है। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने महज 13 साल की उम्र में घर छोड़ दिया था और सनातन धर्म के उद्देश्य के लिए अपने जीवन को समर्पित कर दिया था। "अब मेरा जीवन केवल धर्म, कल्याण और तपस्या के लिए समर्पित है," वह कहते हैं।

लाठी, भाला, गोली और कुश्ती नागा साधुओं की शस्त्र कला
दिगंबर मनिराज पुरी ने यह भी बताया कि नागा साधुओं को अपने जीवन में योद्धा की तरह प्रशिक्षित किया जाता है। उनका प्रशिक्षण शस्त्र कला, शारीरिक शक्ति और मानसिक दृढ़ता पर आधारित होता है। उन्होंने कहा, "हमें योद्धाओं की तरह तैयार किया जाता है। अखाड़ों में हम लाठी चलाना, भाला चलाना, गोली चलाना और कुश्ती करना सीखते हैं। ये सभी कला हमें सामरिक दृष्टि से सिखाई जाती हैं, ताकि हमारे धर्म और अखाड़े पर किसी भी प्रकार का आक्रमण न हो सके।" इसके अलावा, दिगंबर मनिराज ने बताया कि नागा साधु अपने शरीर को कठोर बनाने के लिए शमशान की भभूत (विशेष राख) का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया ठंड से बचने के लिए भी होती है, और शरीर को शारीरिक रूप से मजबूत बनाने में मदद करती है। नागा साधु इस भभूत को अपने शरीर पर मलते हैं, ताकि वे कड़ाके की ठंड से बच सकें और उनकी शारीरिक शक्ति बढ़ सके।

गृहस्थ जीवन से परे, ​​​​​​​गुरु के आदेश पर जीवन
नागा साधु बनने के बाद साधु का जीवन पूरी तरह से बदल जाता है। दिगंबर मनिराज पुरी ने बताया कि वे भौतिक सुखों और मोह-माया से ऊपर उठ चुके हैं और अब उनके लिए भगवान शिव ही सर्वोपरि होते हैं। उन्होंने कहा, "हमने अपना परिवार छोड़ा, लेकिन अब पूरी दुनिया हमारा परिवार है। हम गुरु के शरणागत होते हैं और उनके जो मार्गदर्शन होते हैं, उसी पर चलते हैं।"उन्होंने यह भी बताया कि राष्ट्रीय महाकाल सेना का हिस्सा होने के नाते, वे और उनके साथी साधु धर्म की रक्षा, प्रचार और विस्तार के लिए काम करते हैं। "हम गुरु से मिले मार्गदर्शन के अनुसार धर्म को जोड़ने का काम करते हैं, ताकि लोगों के बीच एकता और सामूहिकता बनी रहे।" उनका यह बयान इस बात का संकेत है कि नागा साधु केवल धार्मिक अनुष्ठानों में ही नहीं, बल्कि समाज के सामूहिक कल्याण में भी अपनी भूमिका निभाते हैं।

महाकुंभ 2025 की तैयारी
महाकुंभ 2025 में अब कुछ ही दिन बाकी हैं, और इस धार्मिक आयोजन के दौरान सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। संगम और आसपास के क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश पुलिस ने सुरक्षा को लेकर विशेष रूप से सतर्कता बरती है। पुलिस ने मेला क्षेत्र में सघन जांच अभियान शुरू किया है, ताकि किसी भी प्रकार की अव्यवस्था या अपराध को रोका जा सके। महाकुंभ के दौरान 13 जनवरी से लेकर 26 फरवरी तक लगभग 40 से 45 करोड़श्रद्धालु और पर्यटक संगम नगरी आएंगे, जिनमें से कई विदेशी श्रद्धालु भी शामिल हैं। इस बार सुरक्षा व्यवस्था को और भी कड़ा किया गया है, खासकर संगम क्षेत्र में। पुलिस ने ट्रैफिक नियंत्रण, सार्वजनिक स्थानों पर निगरानी और अन्य सुरक्षा उपायों के लिए पूरी योजना बनाई है।

क्या है महाकुंभ का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आस्था और भाईचारे का प्रतीक है। यह आयोजन लाखों लोगों को एक साथ लाकर धर्म, एकता और सांस्कृतिक मेलजोल का संदेश देता है। इस आयोजन में हर धर्म, पंथ और जाति के लोग एकजुट होकर प्रभु का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक साथ आते हैं। महाकुंभ के दौरान धार्मिक चर्चा, पूजा-अर्चना, और तात्त्विक ज्ञान का आदान-प्रदान होता है, जो इस आयोजन को और भी विशेष बनाता है। महाकुंभ 2025 की तैयारियाँ अब अंतिम चरण में हैं और यह आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से इतिहास रचने जा रहा है। इस बार के महाकुंभ में नागा साधुओंकी तपस्या, शस्त्र कला और उनके जीवन के अद्वितीय पहलू एक बार फिर से श्रद्धालुओं और पर्यटकों को आकर्षित करेंगे। साथ ही, उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा किए गए कड़े सुरक्षा इंतजामों से यह सुनिश्चित होगा कि महाकुंभ एक शांतिपूर्ण और सुरक्षित वातावरण में संपन्न हो। 


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Content Editor

Mahima

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