कांग्रेस ने सूझबूझ दिखाई होती तो 2008 में ही बन जाती सरकार

Tuesday, Nov 20, 2018 - 11:37 AM (IST)

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव का प्रचार जोर पकड़ चुका है, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह खुद को इस चुनावी शोरगुल से दूर किए हुए हैं। राज्य के दो बार मुख्यमंत्री रह चुके दिग्विजय सिंह फ्रंट में कहीं भी नहीं दिख रहे हैं। पार्टी ने उन्हें समन्वय समिति का चेयरमैन बना रखा है और टिकट बंटवारे में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई। बावजूद इसके वे प्रचार गतिविधियों से अलग-थलग हैं। 10 साल अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के साथ दिग्विजय सिंह ने शिवराज सिंह चौहान के 13 साल के कार्यकाल के साथ मध्य प्रदेश में चल रहे विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव पर नवोदय टाइम्स/पंजाब केसरी के अकु  श्रीवास्तव और शेषमणि शुक्ल के साथ विस्तार से चर्चा की। प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश...

इस बार मध्य प्रदेश में कांग्रेस की क्या स्थिति है?
इस बार तो क्या, मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार तो 2008 में ही बन जाती अगर सूझबूझ से काम करती तो। शिवराज सिंह चौहान तभी चुनाव हार चुके थे। लेकिन कुछ कारणों से कांग्रेस ने मौका गवां दिया। अब उस पर चर्चा करने का वक्त नहीं है, लेकिन इस बार कांग्रेस जीत रही है और सरकार बना रही है।

वरिष्ठ नेताओं की गुटबाजी, खींचतान में भी क्या यह संभव है?
गुटबाजी और खींचतान की बातें तो भाजपा-आरएसएस और मीडिया द्वारा फैलाई हुई हैं। किसी भी नेता के साथ किसी का कोई मतभेद नहीं है। 190 टिकट ऐसे हैं, जिन पर आम सहमति रही। 10-15 फीसद टिकटों पर मतभिन्नता हो सकती है। भाजपा को हटाने के लिए कार्यकर्ता-नेता एकजुट हैं।

मामा के नाम से प्रसिद्ध शिवराज लोगों में इतने लोकप्रिय क्यों हैं?
शिवराज की इमेज एक भोले-भाले आदमी की रही है, जो अब टूट चुकी है। वह जिन लोगों के हाथ खेल रहे हैं, वे भ्रष्टतम अधिकारी-कर्मचारी और पारिवारिक लोग हैं, जिन्होंने मध्य प्रदेश को नोचा-खसोटा है। शिवराज के इर्द-गिर्द एक कोटरी बन गई है, जिन्होंने व्यापमं, ई-टेंडरिंग, पोषण आहार, रेत खनन, कुंभ में भ्रष्टाचार किया और उन्हें बदनाम किया।

व्यापमं जैसा मुद्दा और किसी राज्य में इतनी शांति से निपट जाता?
व्यापमं शांति से नहीं निपटा। धरना-प्रदर्शन, आंदोलन हुए। दुखद पहलू यह है कि न्यायपालिका और सीबीआई की भूमिका निराशाजनक रही। मीडिया ने भी मामले को सही तरीके से नहीं लिया।

राफेल के मुद्दे को किस तरह से देखते हैं?
राफेल निश्चित रूप से इस सरकार का सबसे बड़ा घोटाला है। इस मामले में दसाल्ट गलतबयानी कर रहा है। आंकड़े दीजिए न कि 9 फीसदी कम दर का आधार मूल्य क्या है? कांग्रेस की भी सरकारें रहीं, कभी ऐसे सौदों की कीमत नहीं छिपाई गई। लोकतंत्र में संसद सर्वोपरि है। संसद के प्रति सरकार जवाबदेह होती है। सरकार न तो संसद में और न ही अदालत को रफाल की कीमत बता रही। यह तो संवैधानिक व्यवस्था पर चोट है।

चार राज्यों के चुनावों में राफेल मुद्दे का फायदा मिलेगा?
राफेल मुद्दा इन चुनावों के साथ ही 2019 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को फायदा देगा। लेकिन प्रांत के चुनावों में पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतें, महंगाई, फसल की वाजिब कीमत, किसानों की आत्महत्या मुद्दे होंगे।

उज्ज्वला, शौचालय जैसी भाजपा की पॉपुलर योजनाओं के सामने क्या रणनीति है?
उज्ज्वला जैसी योजना हो या जनधन या फिर पक्के मकान, शौचालय आदि ये सभी पहले की योजनाएं हैं, जो कांग्रेस की सरकार लाई थी। इस सरकार ने तो केवल नाम बदलकर प्रोपेगंडा किया है। रसोई गैस की कीमत इतनी बढ़ा दी है कि उज्ज्वला गैस कनेक्शनधारी रिफिल तक नहीं करवा रहे हैं। नरेंद्र मोदी और शिवराज सपनों के सौदागर हैं, लेकिन धीरे-धीरे लोग इन्हें समझने लगे हैं।

आपकी नर्मदा यात्रा का कांग्रेस को कोई सियासी फायदा मिलेगा?
मेरी नर्मदा यात्रा पूरी तरह गैरराजनीतिक थी। मैंने यात्रा के दौरान न कहीं कोई राजनीतिक बयानबाजी की और न ही कोई भाषण किया। जहां तक कांग्रेस को फायदा मिलने की बात है तो इस बारे में आप सभी ज्यादा बता सकते हैं।

सपा, बसपा और जीजीपी से गठबंधन न होने का नुकसान होगा?
सपा-बसपा का उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे कुछ विधानसभा क्षेत्रों में वोट है। लेकिन, ऐसा नहीं कि वहां कांग्रेस का अपना वोट नहीं है। वह वोट तो कांग्रेस को मिलेगा ही। बसपा के साथ हमारी बातचीत भी चल रही थी, उसी दौरान बसपा ने अपने 22 टिकट घोषित कर दिए। यह तो ठीक बात नहीं। सब जानते हैं कि गोंडवाना गणतंत्र पार्टी भाजपा पोषित है। कांग्रेस पर इसका कोई असर नहीं होगा।  

दलित एक्ट से सवर्णों में जो नाराजगी है, उसका क्या फायदा मिलेगा?
दलित एक्ट पर कोर्ट के फैसले को जिस तरह से पलटा गया है, उससे सवर्ण डरा हुआ है। उसे लगता है कि इस एक्ट का इस्तेमाल अनावश्यक रूप से सवर्णों को परेशान करने के लिए किया जाएगा। सवर्ण अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है। इसके चलते उनमें नाराजगी है और यह साफ दिख भी रहा है। 

कमलनाथ के नेतृत्व को किस रूप में देखते हैं?
कमलनाथ अनुभवी व्यक्ति हैं। मध्य प्रदेश से पिछले 40 साल से जुड़े हैं। डायनमिक हैं। बतौर सांसद छिंदवाड़ा का विकास उन्होंने जिस तरह से किया है, आज देश का कोई भी सांसद ऐसा नहीं कर पाया है। शिवराज के विकास के मॉडल पर कमलनाथ का विकास मॉडल भारी है। 

लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं से आपके डिफरेंस की बातें आती रहती हैं?
यह गलत प्रचार है। ऐसा कहते हैं  कि कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ मेरे डिफरेंस हैं। कमलनाथ के साथ हमारी करीबी और प्रगाढ़ मित्रता है। ज्योतिरादित्य सिंधिया तो पुत्रवत हैं। उनके पिता माधवराव सिंधिया को मैं ही 1979-80 में कांग्रेस में लेकर आया था। मेरा किसी से कोई डिफरेंस नहीं है और न ही इसकी कोई संभावना है। सभी एक-दूसरे के बहुत करीब हैं। मुझे समन्वय समिति का चेयरमैन बनाया गया तो मैंने व्यक्तिगत रूप से दो लाख कार्यकर्ताओं से वन-टू-वन मुलाकात की। बाकी नेताओं से  बातचीत की और जो ग्राउंड रिपोर्ट दी, उसी पर 90 फीसदी टिकट आमसहमति से बांटे गए। कोई डिफरेंस होता तो ऐसा क्यों होता? 

भाजपा के 15, अपने 10 साल के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
मैं तो शिवराज सिंह चौहान को चुनौती दे चुका हूं कि मेरे कार्यकाल के 10 साल के आंकड़े निकलवा लें और अपनी सरकार के 15 साल के, तुलना कर लें। आंकड़ों के साथ मुझसे चर्चा करें। क्यों नहीं करते? देखिए, आरएसएस और भाजपा ने गलत प्रचार करके  मेरे कार्यकाल के बारे में एक भ्रांति (परसेप्शन) बनाई। दुखद बात यह है कि इस भ्रांति को कांग्रेस के भी कुछ नेता सही मान बैठे। लेकिन आज तक भाजपा-आरएसएस ने यह नहीं बता सकी कि मेरी सरकार की कौन सी नीति गलत थी। बजट के किस मद में हमने कटौती की या कम बजट दिया। दिग्विजय पर आज तक भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगा क्या?

तो मिस कॉन्सेप्ट तोडऩे में 15 साल क्यों लगे?
मैं तो आंकड़ों के साथ सारी बातें कहता रहा, मीडिया में किसी ने छापा ही नहीं। सभी जानते हैं कि मीडिया में आजकल किसकी पकड़ है। बिजली-पानी, सड़क को लेकर मेरे कार्यकाल की आलोचना की जाती है। लेकिन कौन सी सड़क? स्टेट हाईवे या नेशनल हाईवे? लोगों ने सारी सड़के हमारे खाते में डाल दी। 

नहीं चाहता था, जयवर्धन राजनीति में आएं
मैं नहीं चाहता था कि मेरा बेटा राजनीति में आए। मैंने मना भी किया था। वे जब कोलंबिया यूनिवर्सिटी से पढ़ कर आए और उनकी मंशा जानी तभी मैंने अपना इरादा जता दिया था। मैंने यह भी कहा था कि बाद में मत कहना कि कहां फंसा दिया। उन्होंने राजनीति ज्वाइन की और जब विधानसभा चुनाव लड़े तो पहली बार मैंने उनका प्रचार भी किया, लेकिन इस बार उनका प्रचार नहीं कर रहा। मैंने उनसे कह भी दिया है कि केवल वोट डालने जाऊंगा।

संघ पर प्रतिबंध लगाने की बात, गलत प्रचार
सरकारी परिसरों में आरएसएस की शाखा और इन शाखाओं में सरकारी कर्मियों के शामिल होने पर प्रतिबंध जब से मध्य प्रदेश बना, तब से है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकारों में भी यह प्रतिबंध बना रहा। कांग्रेस ने अपने वचन पत्र में कहीं भी यह नहीं कहा कि वह आरएसएस पर प्रतिबंध लगाएगी। केवल सरकारी परिसरों में शाखा और सरकारी कर्मियों की भागीदारी प्रतिबंधित करने की  बात कही है। भाजपा और संघ गलत तरीके से इसे प्रचारित कर रहे हंै।

Anil dev

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