मदनलाल खुराना नहीं होते तो दिल्ली में आज तक नहीं बन पाती भाजपा की सरकार
Monday, Oct 29, 2018 - 12:39 AM (IST)
नई दिल्ली : अपने जुझारू तेवर के चलते दिल्ली का शेर कहा जाने वाले मदनलाल खुराना का शनिवार को निधन हो गया। वो 1993 से लेकर 1996 तक दिल्ली के सीएम रहे। उनका सीएम होना दिल्ली के इतिहास व भाजपा के लिहाज से अहम माना जाता है। उसके बाद एक-एक साल के लिए साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज दिल्ली की सीएम रहीं।
लेकिन दो दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी दिल्ली में भाजपा कांग्रेस का विकल्प नहीं बन पाई। न दिल्ली में खुराना जैसा मुख्यमंत्री दे पाई। जिस समय खुराना दिल्ली के मुख्यमंत्री थे उस समम प्याज की कीमत ने दिल्ली के लोगों को बहुत रुलाया था। इसके साथ ही पार्टी के अंदर नेताओं से असहमति ने उन्हें मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के लिए मजबूर किया था।
पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के फैसलाबाद (ब्रिटिश काल के लायलपुर) में 15 अक्टूबर 1936 में उनका जन्म हुआ था। जब वो 12 साल के थे, तब वो अपने परिवार के साथ दिल्ली आ गए थे और रिफ्यूजी कॉलोनी कीर्ति नगर में रहने लगे थे।
मदन लाल खुराना ने अपने दम पर दिल्ली में भाजपा को खड़ा किया और चुनाव कराकर दिल्ली में सरकार बनार्इ। जिस समय वो दिल्ली के सीएम बने उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और पीवी नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री थे।
अपने बंगले को बनाया भाजपा का दफ्तर
1989 में मदनलाल खुराना ने साउथ दिल्ली सीट से बीजेपी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था और पहली बार सांसद बने थे। हालांकि, तब केंद्र में सरकार तो बीजेपी की नहीं बनी थी, लेकिन दिल्ली का सांसद होने के नाते उन्हें रकाबगंज गुरुद्वारे के पास पंडित पंत मार्ग पर एक बंगला अलॉट हुआ था। उस वक्त दिल्ली बीजेपी का अपना कोई बड़ा दफ्तर नहीं था। इसे देखते हुए खुराना ने अपने उस बंगले को पार्टी का दफ्तर बनाने के लिए दे दिया और खुद यह घोषणा कर दी कि उन्हें बंगले की जरूरत नहीं है और वह कीर्ति नगर में अपने घर पर रहकर काम करेंगे।
1993 में दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस को पटखनी देकर मदल लाल खुराना सीएम बन गए। भाजपा को दिल्ली की सत्ता तक पहुंचाने में खुराना का अहम योगदान था। उन्होंने ही विपक्ष में रहकर सरकार के सामने मांग उठार्इ थी कि दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए और चुनाव कराकर दिल्ली में सरकार बनार्इ जाए।