परिवार संग 14 दिनों के लिए अस्वस्थ हो जाएंगे भगवान जगन्नाथ, 6 जुलाई को करेंगे दर्शन

punjabkesari.in Wednesday, Jun 26, 2024 - 04:01 PM (IST)

नेशनल डेस्क: वाराणसी, जिसे काशी के नाम से भी जाना जाता है, विश्व की सबसे प्राचीन नगरी मानी जाती है। यहाँ भगवान शिव का वास होने के साथ ही कई अन्य देवी-देवताओं से जुड़ी प्राचीन परंपराएं भी विद्यमान हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण परंपरा है भगवान जगन्नाथ रथयात्रा, जो हर वर्ष श्रद्धालुओं के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा से शुरू होकर 14 दिनों तक चलने वाला यह उत्सव, भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से जुड़ा हुआ है।

मान्यता है कि इस दौरान भगवान जगन्नाथ अस्वस्थ हो जाते हैं और उन्हें स्वस्थ करने के लिए काढ़े का सेवन कराया जाता है। इस अवधि के बाद, 6 जुलाई को, भगवान जगन्नाथ अपने भाई और बहन के साथ श्रद्धालुओं को दर्शन देते हैं। काशी के विद्वान पंडित विश्वकांताचार्य बताते हैं कि काशी में भगवान जगन्नाथ का उत्सव उड़ीसा से आए भक्तों द्वारा आरंभ किया गया था। वाराणसी के अस्सी क्षेत्र स्थित मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा का दर्शन भक्तों के लिए एक अनोखा अनुभव होता है। इस दौरान, भगवान जगन्नाथ को लौंग, इलायची, जायफल, तुलसी, और काली मिर्च का काढ़ा दिया जाता है, ताकि वे शीघ्र स्वस्थ हो सकें।

इस उत्सव की एक अन्य महत्वपूर्ण परंपरा यह है कि भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा लगातार सृष्टि के पालन के लिए अपने कार्य में संलग्न रहते हैं। 14 दिनों की इस अवधि में, उनके स्वस्थ होने के बाद, काशी में विशाल रथयात्रा मेला का आयोजन होता है, जिसमें दूर-दराज से श्रद्धालु पहुंचते हैं। काशी में भगवान जगन्नाथ का यह उत्सव, न केवल धार्मिक आस्था और विश्वास को प्रदर्शित करता है, बल्कि इसे एक सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। श्रद्धालुओं के बीच यह पर्व एकता और भाईचारे का प्रतीक बनकर उभरता है, जो काशी की सांस्कृतिक विरासत को और भी समृद्ध बनाता है।


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Content Editor

Mahima

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