ममता ने अपनी पार्टी को खुद ही नुक्सान में पहुंचाया

Wednesday, Jun 19, 2019 - 08:44 AM (IST)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस (टी.एम.सी.) को मिली हार के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी बहुत परेशान हैं। उन्होंने चुनाव नतीजों के बाद कई ऐसे विवादास्पद बयान दिए, जिससे उनकी पार्टी को नुक्सान हुआ, जिसका उन्होंने गठन किया था। ममता की सभी समस्याएं उनके खंडित संगठन के मामले से उपजी हैं। आम चुनावों के परिणामों के एक सप्ताह बाद मई महीने के अंतिम गुरुवार को ममता ने सार्वजनिक रूप से यह बात स्वीकार की। 


उन्होंने कहा कि आज तक मैंने तृणमूल कांग्रेस की ट्रेड यूनियनों को उचित रूप से काम करने की अनुमति नहीं दी ताकि उद्योग काम कर सके अब मैं ट्रेड यूनियनों को मजबूत करूंगी। उन्होंने अपने कल्याणकारी और सशर्त नकदी स्थानांतरित योजनाओं का उल्लेख किया, जिनकी संख्या 4 दर्जन के लगभग है और इसी तरह की दलील देते हुए स्वीकार किया कि उन्होंने 1998 में स्थापित अपने संगठन को पूरा समय नहीं दिया। उनके सहयोगियों की दलील है कि ममता ने गलती की क्योंकि सभी समस्याएं खंडित संगठन के मामले से उपजी हैं। मुख्यमंत्री के एक करीबी जिला मैजिस्ट्रेट ने बताया कि सरकार की कारगुजारी को बढ़ावा देने के लिए पार्टी को कमजोर करना गलती हो सकती है। जिला मैजिस्ट्रेट ने कहा कि माकपा ने स्थानीय कमेटियों या ग्राम पंचायतों के जरिए सेवाओं को संचालित किया था जोकि दैनिक जीवन में पार्टी की प्रासंगिकता को रेखांकित करता है। 


टी.एम.सी. के मामले में पार्टी की जगह प्रशासन को अधिमान दिया गया। आज एक व्यक्ति सशर्त नकदी स्थानांतरित योजनाओं को प्राप्त करने के लिए पार्टी कार्यालय के चक्कर लगाने की जरूरत महसूस नहीं करता। जिला मैजिस्ट्रेट ने कहा कि उक्त व्यक्ति सरकारी अधिकारियों से मिल सकता है जो इस राशि के वितरण में तालमेल करते हैं। इस बड़े पैमाने पर सुधार सेवा वितरण ने संयुक्त राष्ट्र जैसी निष्पक्ष अंतर्राष्ट्रीय एजैंसियों को संकेत दिया कि काम अच्छा है मगर इससे पार्टी कमजोर हुई है। टी.एम.सी. को समॢपत एक कार्यकत्र्ता मुमताज बेगम ने स्पष्ट किया कि कैसे मुफ्त सेवाएं देने से पार्टी कमजोर हुई है। यह लाभ जी.पी. सदस्यों द्वारा उपलब्ध नहीं करवाए गए जो पार्टी से और चुनाव के मार्शल से संबंधित हैं लेकिन सरकारी अधिकारियों द्वारा पार्टी के संगठन चुनाव नहीं करवाए गए। बेगम कूच विहार जिला में नयारत जी.पी. की टी.एम.सी. प्रमुख हैं। 49 वर्षीय बेगम ने दलील दी कि जब एक सरकारी अधिकारी लोगों को लाभ की राशि देता है तो मतदाता महसूस करते हैं कि यह सरकारी परियोजना है और उन्हें बिना शर्त इसे स्वीकार करने का अधिकार है। 



उन्होंने कहा कि इससे पार्टी को क्या लाभ होगा, सभी सुविधाएं अंधाधुंध रूप से देना भी एक गलती है। उन्होंने आगे कहा कि हर व्यक्ति यह महसूस करता है कि अगर वह टी.एम.सी. को वोट नहीं देगा तो भी उन्हें यह लाभ मिलते रहेंगे और हम राजनेता शक्तिविहीन साबित होंगे। उन्होंने इस बात को स्वीकार करने से इंकार कर दिया कि भ्रष्टाचार के डर ने ममता को इन योजनाओं के अधिकारियों के जरिए लागू करने को बाध्य किया है। उन्होंने कहा-अगर आप घर में मछली पकाएंगे तो बिल्लियां तो आएंगी। क्या आप मछली पकाना बंद कर देंगे। संगठन के कमजोर होने के साथ 3 समस्याएं उबर कर सामने आईं पहली जमीनी स्तर पर पार्टी का प्रबंध कमजोर हुआ, जिसके परिणामस्वरूप गांव या वार्ड स्तर पर पार्टी कमजोर हुई। चुनावों के एक सप्ताह पहले टी.एम.सी. के एक पार्षद ने जादवपुर क्षेत्र के एक प्रोफैसर को उनके निवास के बाहर धमकी दी थी कि वह टैलीविजन टॉक शो में भाग न लें। पार्षद ने प्रोफैसर को बताया कि वह टैलीविजन चैनल पर टी.एम.सी. की आलोचना बंद कर दे क्योंकि उसे बंगाल के बारे में कोई जानकारी नहीं और उसके परिवार के कुल 13 वोट टी.एम.सी. को जाने चाहिएं। अंत में प्रोफैसर को छोड़कर सभी वोट भाजपा को गए जिस कारण टी.एम.सी. गहरे संकट में फंस गई। प्रोफैसर ने कहा कि अगर वह कोलकाता में धमकी दे सकते हैं तो इस बात का अंदाजा लगाएं कि वह गांवों में क्या करेंगे। 


दूसरा कारण यह है कि टी.एम.सी. ने माकपा वर्करों के खिलाफ एक के बाद एक केस दायर किए। बहुत सी हत्याएं भी हुईं और ऐसा शून्य पैदा किया जिसे भाजपा ने लाभ उठाते उसे भर दिया। हाल ही में माकपा के आंकड़ों के अनुसार मई, 2011 और मई, 2019 के बीच वामदलों के कम से कम 213 समर्थक मारे गए थे। ममता बनर्जी द्वारा बनाए गए संगठन की सभी समस्याएं पार्टी को नुक्सान पहुंचा रही हैं।

Anil dev

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