11 बिंदु जो इस चुनाव में होंगे खास

Tuesday, Mar 12, 2019 - 10:48 AM (IST)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और राजनीतिक दल मैदान में उतर चुके हैं। 11 अप्रैल से 19 मई तक सात चरणों में वोट डाले जाएंगे और 23 मई को देश की नई सरकार का गठन हो जाएगा। 90 करोड़ से ज्यादा लोग वोटिंग करेंगे और दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रित जश्न का हिस्सा बनेंगे। इस चुनाव में मोदी व उनकी टीम फिर से सत्ता में बने रहने के लिए ताकत झोंकेगी और बतौर कांग्रेस अध्यक्ष अपना पहले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी की टीम भी वापसी करने में कोई कमी नहीं छोड़ेगी। इस चुनाव में कुछ खास बातें हैं जिन पर सबका ध्यान होगा:-



सब कुछ नरेंद्र मोदी पर केंद्रित
2014 के चुनाव में मोदी ने भाजपा को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। भाजपा ने 428 सीटों पर चुनाव लड़कर 282 पर जीत हासिल की थी। 1984 के बाद यह पहला मौका था जब किसी राजनीतिक दल ने स्पष्ट रूप से बहुमत हासिल किया था। इस प्रचंड जीत का सारा श्रेय नरेंद्र मोदी के सिर ही था। मोदी ने खुद को भ्रष्टाचार मुक्त सरकार देने वाला प्रचारित किया था और लोगों से अच्छे दिन आने का वायदा किया था। हालांकि उनके द्वारा किए गए वायदों को पूरा करने में वे पूरी तरह से सफल नहीं रहे हैं लेकिन फिर भी वे अपनी पार्टी के लिए वोट खींचने के काम में अव्वल साबित हुए हैं। इसमें उनका सहयोग पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि ये चुनाव मोदी द्वारा किए कार्यों पर जनमत भी साबित होंगे। 



वापसी की आस में कांग्रेस
देश की 133 साल पुरानी पार्टी सत्ता में वापिस आने के लिए प्रयास करेगी। 2014 के चुनाव में इस पार्टी को केवल 44 सीटें ही मिली थी। और यह उसका सबसे खराब प्रदर्शन था। इससे पहले उसकी 206 सीटें थी। 2014 के बाद से इस पार्टी का प्रदर्शन देश में हुए दूसरे चुनावों में भी खराब ही बना रहा। 2018 के मध्य में आकर कांग्रेस को जरूर कुछ सुकून मिला। राजस्थान व मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में उसकी सरकारें बनी। इस समय स्थिति यह है कि भाजपा 20 राज्यों में सरकारें चला रही है और कांग्रेस 3 राज्यों में। पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष राहुल गांधी देश के प्रसिद्ध नेहरू-गांधी परिवार की चौथी पीढ़ी के सदस्य हैं। सोशल मीडिया पर मजाक का केंद्र बनते रहे राहुल गांधी पिछले कुछ समय से तेजी से उभरे हैं। पार्टी ने राहुल को अध्यक्ष के रूप में स्वीकारा है और उनकी बहन प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने से भी पार्टी में नई स्फूर्ति का संचार हुआ है।

पाकिस्तान फ्रंट पर मोदी की ताकत
पाकिस्तान को लेकर भारत की नीति हमेशा ही एक जैसी रही है लेकिन मोदी ने इस मुद्दे पर नजरिए को बदला। कश्मीर का मुद्दा मोदी के पूरे कार्यकाल में गरमाया रहा। मोदी ने साफ तौर पर कहा भी कि हम किसी भी छदम हमले का जवाब खुलकर देंगे। ऐसा किया भी गया। सर्जिकल स्ट्राइक को मोदी सरकार ने अपनी बड़ी उपलब्धि माना। संकेत ये भी मिल रहे हैं कि मोदी देश की सुरक्षा के मुद्दे को चुनावों में जोर शोर से उठाएंगे। हालांकि यह साफ नहीं है कि यह काम करेगा या नहीं? 

उत्तर प्रदेश होगा निर्णायक
2014 के चुनाव और 2019 के चुनाव में सबसे बड़ा बुनियादी फर्क साबित हो सकता है उत्तर प्रदेश। देश का हर छठा नागरिक इसी राज्य में रहता है। देश की संसद में यहां से 80 सांसद चुनकर जाते हैं। पिछली बार भाजपा ने यूपी में 71 सीटें जीतकर इतिहास रच दिया था। भाजपा के इस प्रभाव को यूपी के विधानसभा चुनावों में भी 2017 में देखा गया। भाजपा यहां से प्रचंड बहुमत के साथ जीतकर आई। यहां के प्रमुख दलों समाजवादी पार्टी व बहुजन समाज पार्टी ने इस बार गठबंधन कर लिया है। दलित मतदाता बसपा के साथ रहता है तो मुस्लिम मतदाता सपा के साथ। इस गठबंधन को निर्णायक माना जा रहा है। ये दोनों दल 50 सीटें जीतने का दावा कर रहे हैं और अगर ऐसा होता है तो यह केंद्र में बनने वाली सरकार के लिहाज से निर्णायक साबित हो सकता है। हालांकि भाजपा ने इसे मौका परस्त गठबंधन करार दिया है। 

यूरोप व आस्ट्रेलिया से भी बड़ा 
भारत के आम चुनावों में कुछ भी छोटा नहीं होता। बड़ा क्षेत्र, 500 से ज्यादा लोकसभा सीटें। लगभग 90 करोड़ से भी ज्यादा लोगों की सीधी भागीदारिता। लाखों की संख्या में बूथ। इसमें मतदान करने वाले लोगों की संख्या यूरोप व आस्ट्रेलिया की संयुक्त जनसंख्या से भी अधिक है। यहां के वोटर हैं भी जोशीले 1951 के पहले लोकसभा चुनाव में जहां केवल 45 प्रतिशत मतदान हुआ था वहीं 2014 के चुनाव में यह आंकड़ा 66 प्रतिशत पार कर गया। 464 दलों के 8250 प्रत्याशियों ने 2014 के चुनाव में भाग लिया था। 

महीनों चलने वाला शो 
इस बार का चुनाव सबसे लंबे समय तक चलेगा। 11, 18, 23, 29 अप्रैल व 6, 12, 19 मई को सात चरणों में वोट डाले जाएंगे। एक एक राज्य में कई कई चरणों में मतदान होने जा रहा है। वैसे यह पहली बार नहीं है जब चुनाव की प्रक्रिया दो महीने से भी ज्यादा समय तक चलेगी। 1951-52 में हुए आम चुनाव की प्रक्रिया भी तीन महीने तक चली थी। हालांकि बीच में 1962 से 1989 तक लोकसभा चुनाव 4 से 10 दिन में भी पूरे हुए हैं। 1980 में हुआ चुनाव तो चार दिन ही चला था। ये देश का सबसे छोटी अवधि वाला चुनाव था। अब पोलिंग केंद्रों की सुरक्षा की वजह से प्रक्रिया को लंबा चलाया जाता है। 

पैसा बोलता है
पिछले लोकसभा चुनावों  में पार्टियों व प्रत्याशियों ने लगभग 5 बिलियन अमरीकी डालर खर्च किए थे। विशेषज्ञों का मानना है कि यह खर्च इस बार दोगुने से भी ज्यादा बढ़ सकता है। इसकी तुलना अगर अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव पर हुए खर्च से करें तो उसमें 6.5 बिलियन डालर खर्च हुए थे। आप समझ सकते हैं कि भारतीय चुनाव कितने महंगे हैं। भारत में राजनीतिक दलों की आय को लेकर भी काफी सवाल उठते रहे हैं। पिछले साल मोदी सरकार ने इलेक्टोरेल बांड जारी किए थे। इसके माध्यम से कारोबारी व कोई भी व्यक्ति किसी की भी मदद कर सकता है। जानकारी के अनुसार पिछले साल दानकर्ताओं ने 150 मिलियन डॉलर के बांड खरीदे और इसका बड़ा हिस्सा भाजपा को गया। 

महिलाओं के हाथ में कुंजी
भारत में मतदान करने वालों में महिलाओं की संख्या सबसे ज्यादा है। समझा जा रहा है कि महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों के बराबर ही रहेगी। 2014 के चुनाव में दोनों के बीच फासला काफी कम हुआ है। पुरुष मतदाता 67.1 प्रतिशत थे तो महिलाएं 65.3 प्रतिशत थी वोट डालने वालों में। 2012 से 2018 के बीच कई चुनाव हुए देश में और दो तिहाई राज्यों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों से अधिक थी। राजनीतिक दलों ने भी महिलाओं को तवज्जो देने की शुरूआत की है। महिलाओं के लिए एजुकेशन लोन, फ्री गैस सिलेंडर, साइकिल आदि देने पर जोर दिया जा रहा है। 

इकॉनोमी का इकॉनोमिक्स 
मोदी के कार्यकाल में देश की अर्थ व्यवस्था ने कई हिचकोले खाए हैं। फसलों की कीमत को लेकर किसान लगातार संघर्ष करते रहे हैं। नोटबंदी के बाद से देशभर से आवाजें उठी हैं कि इसने छोटे रोजगारों को तबाह कर दिया। कई तरह के व्यापार बंद हो गए। इससे बेरोजगारी बढ़ी है। इसके अलावा नई कर प्रणाली के रूप में लागू किए गए जीएसटी ने भी व्यापारियों व कारोबारियों की दिक्कतें बढ़ाई हैं। इसकी वजह से भी माना जा रहा है कि छोटे व्यापारियों की दिक्कतें बढ़ रही हैं और रोजगार पर इसका भी विपरीत असर पड़ा है। निर्यात में गिरावट आई है और बेरोजगारी बहुत बढ़ी है। इन मुद्दों को लेकर मोदी सरकार पर सवाल उठाए जाएंगे। इसके  बावजूद मोदी सरकार ने भारी पैमाने पर इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करके विकास की दर को 7 प्रतिशत पर बनाए रखा है। 

लोकलुभावन वादों पर भरोसा
मोदी सरकार हो या फिर विरोधी दल, सभी ने लोकलुभावन मुद्दों पर जोर रखा है। किसानों को ऋण माफी का मुद्दा काफी जोर शोर से उछला और सभी ने इसे लेकर मुद्दा बनाया। कांग्रेस शासित राज्यों में दस दिन के भीतर कर्जा माफ कराया गया। इसे राहुल गांधी ने अपनी पार्टी की बड़ी यूएसपी के रूप में प्रचारित किया। साथ ही इसे लेकर दूसरे दलों पर भी दबाव बनाया कि वे भी अपने द्वारा शासित राज्यों में ऐसा ही करें। मोदी सरकार भी इस तरह के फैसलों से पीछे नहीं रही। लाभकारी योजनाओं से मिलने वाला फैसला सीधे खातों में ट्रांसफर कराए जाने को जोर शोर से प्रचारित किया गया। किसानों के खातों में भी सीधे पैसा ट्रांसफर किए जाने की प्रक्रिया शुरू की गई। ऊंची जाति के लोगों को भी आरक्षण देने की मुहिम भी इसी तरह का लोकलुभावन फैसला है। 

कट्टरपंथ के एजेंडे का सहारा 
मोदी ने पांच साल में राष्ट्रवाद के एजेंडे को  कसकर पकड़े रखा। इसे लेकर कई तरह की राय बनी लेकिन इसके बावजूद मोदी ने इस एजेंडे को बनाए रखा। हिंंदू राष्ट्र का एजेंडा भी साथ-साथ ही चलता रहा। यह बात और है कि इस मुद्दे के चलते कई स्थानों पर लिंचिंग हुई और भीड़ द्वारा मुसलमानों को मारने की कई घटनाएं हुई। गौवंश हत्या का मामला बड़ा मुद्दा बना रहा। कई तरह के सख्त नए नियमों को लागू किए जाने की वजह से गौ हत्या एक बड़ा मुद्दा बन गया। कट्टर हिंदूवाद को लेकर आलोचनाएं भी की गई। उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में से एक भी मुस्लिम सांसद चुनकर लोकसभा नहीं पहुंचा। कैराना के उपचुनाव में पहली बार मुस्लिम सांसद चुना गया। 


 

Anil dev

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