ऑफ द रिकार्ड: संघ मोदी की वापसी के लिए लगाएगा जोर

Saturday, Aug 25, 2018 - 09:43 AM (IST)

नई दिल्ली: अटल-अडवानी के समय 2004 में हुए लोकसभा चुनावों में जहां संघ के कार्यकत्र्ताओं ने तहे दिल से काम नहीं किया था लेकिन पी.एम. मोदी के मामले में स्थिति उलट है। उनके साथ समूचा संघ पूरी तरह से खड़ा है। उस समय के संघ प्रमुख के.सी. सुदर्शन और अटल के बीच कई बार तलवारें तनीं और यहां तक कि उनकी रिटायरमैंट के बाद भी वह अटल से नाराज ही रहे। लेकिन अब के संघ प्रमुख मोहन भागवत के अलावा संघ के उच्च पदाधिकारी जिनमें महासचिव दत्तात्रेय होसबोले, कृष्ण गोपाल, मनमोहन वैद्य और बाकी सब मोदी की जीत के लिए बैठकों में हिस्सा ले रहे हैं। 


संघ की बैठकों में जितने भी अधिकारी हिस्सा ले रहे हैं उन सब का मानना है कि संघ मोदी सरकार की वापसी के लिए पूरे जोर-शोर से काम करेगा। संघ प्रतिनिधि सभा जो बड़े निर्णय लेती है, की बैठक मार्च में हुई थी जिसमें भाजपा अध्यक्ष अमित शाह समेत सभी अनुषांगिक संगठनों ने अपना प्रस्तुतिकरण दिया था, लेकिन मोदी सरकार को पूरी तरह से समर्थन पर मोहर सही तरीके से जुलाई माह में सोमनाथ में हुई संघ की बैठक में लगी जिसमें करीब 200 के करीब प्रांत प्रचारक  आए थे। 
 

 मोदी से कोई मतभेद नहीं
संघ के उच्चपदस्थ अधिकारियों जो संघ की उच्चस्तरीय बैठकों में हिस्सा लेते हैं, ने इस बात से इंकार किया है कि मोदी और संघ में किसी तरह का मतभेद है। संघ के कुछ नेताओं को लगता है कि पार्टी में मोदी भक्तों द्वारा ‘व्यक्ति पंथ’ को प्रोत्साहित किया जा रहा है, बावजूद इसके वे यह समझते हैं कि सत्ताधारी दल किसी तरह के वंशवाद को बढ़ावा नहीं दे रहा है। कुछ राज्यों में कुछ मुख्यमंत्री अपने बेटों और बेटियों को राजनीति में स्थापित करने में सफल हो गए हैं लेकिन यह सब इन राज्यों में मोदी को विरासत में मिला है लेकिन मोदी ने केंद्र में किसी प्रकार के वंशवाद को पनपने नहीं दिया है। 

किसी भी शीर्ष नेता के पुत्र व बेटी को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया है जबकि शीर्ष नेताओं के करीब 10 बेटे- बेटियां कैबिनेट में प्रवेश के लिए ऐड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। हालांकि संघ नेतृत्व इस बात को लेकर थोड़ा नाराज है कि मोदी ने मुरली मनोहर जोशी द्वारा अध्यक्ष और कुछ नेताओं को दी जाने वाली जिम्मेदारियों के संबंध में दिए गए सुझावों को नहीं माना।

Anil dev

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