Election Diary: नेहरू से बड़ी थी रैड्डी की जीत

Thursday, Mar 14, 2019 - 01:38 PM (IST)

जालंधर(नरेश कुमार): लोकसभा चुनाव पर पंजाब केसरी की इस विशेष सीरीज ‘इलैक्शन डेयरी’ में आज हम आजाद भारत के पहले चुनाव के प्रबंधों और उस दौरान पेश आई कठिनाइयों के इलावा दिलचस्प तथ्यों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इस चुनाव के दौरान जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद वैस्ट सीट से चुनाव लड़े थे और उन्हें 2,33,571 मत हासिल हुए थे जबकि उस समय के हैदराबाद की नालगोंडा सीट पर रवि नारायण रैड्डी को 3,09,162 मत हासिल हुए ।



इन चुनावों के दौरान इलाहाबाद और नालगोंडा में लोकसभा की 2-2 सीटें थी और चुनाव आयोग के आंकड़ों में इन दोनों के प्रतिद्धवंदी उम्मीदवार को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है लेकिन यदि  हम इलाहाबाद व नालगोंडा के दूसरे नम्बर पर आए उम्मीदवारों के मत्तों के हिसाब से नतीजा निकाले तो रवि नारायण रैड्डी की जीत जवाहर लाल नेहरू की जीत के मुकाबले बड़ी जीत थी। इसी दौरान देश का संविधान लिखने वाली ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन भीम राव अम्बेदकर बॉम्बे सिटी नॉर्थ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ रहे थे और उन्हें 1,23,576 मत हासिल हुए लेकिन वह चुनाव हार गए थे। 

खेती, गरीबी और विस्थापन के मुद्दे पर लड़ा गया पहला चुनाव
देश जब आजाद हुआ तो देश के सामने कई चुनौतियां थीं लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अपनी जनता को दो वक्त का खाना मुहैया करवाने की थी। लिहाजा कृषि का विकास आजाद भारत के पहले चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा था। दूसरा बड़ा मुद्दा गरीबी था क्योंकि अंग्रेजों के शासनकाल में आम जनता को वित्तीय रूप से सशक्त बनाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया था लिहाजा देश की आबादी का बड़ा हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहा था। 

शरणार्थियों का था तीसरा और सबसे अहम मुद्दा
इसके अलावा एक तीसरा और सबसे अहम मुद्दा शरणाॢथयों का था। देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान की तरफ से बड़ी संख्या में शरणार्थी भारत में आ गए थे। हालांकि इन शरणाॢथयों के भारत में आने की समय सीमा जुलाई 1948 तय की गई थी लेकिन इसके बावजूद सीमाओं के खुले होने के कारण लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत में आए। इन शरणार्थियों के कारण देश में अनाज के अलावा रोजगार का संकट भी खड़ा हुआ और इनका पुनर्वास करने की समस्या भी खड़ी हुई। लिहाजा शरणार्थियों का मुद्दा चुनाव का तीसरा बड़ा मुद्दा था। उस समय देश में व्यापार और उद्योग की स्थापना नहीं हुई थी और न ही जनता वित्तीय रूप से जागरूक थी और न ही शिक्षा व स्वास्थ्य को लेकर जागरूक थी, लिहाजा ये मुद्दे पहले चुनाव के दौरान गौण ही रहे। 

चुनाव आयोग का गठन
जब देश का संविधान लिखा जा रहा था तो कई देशों के संविधान पर स्टडी की गई। उस दौरान कुछ देशों में निष्पक्ष चुनाव के लिए चुनाव आयोग का प्रावधान था और इन्हीं देशों की तर्ज पर देश में चुनाव आयोग की स्थापना का फैसला लिया गया और देश का संविधान लागू होने के एक दिन पहले 25 जनवरी 1950 को चुनाव आयोग का गठन किया गया। उस समय आयोग में सिर्फ एक ही चुनाव आयुक्त बनाने का प्रावधान था और पहली बार 16 अक्तूबर 1989 को देश में 2 अतिरिक्त चुनाव आयुक्त बनाने की व्यवस्था की गई हालांकि यह नियुक्ति महज 3 महीनों के लिए रही और जनवरी 1990 के बाद दोनों अतिरिक्त आयुक्तों का कार्यकाल समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 1 अक्तूबर 1993 को दोबारा से यह प्रावधान जोड़ा गया और उस समय से लेकर अब तक देश में 3 चुनाव आयुक्त काम करते हैं। इनमें से एक को मुख्य चुनाव आयुक्त का दर्जा दिया जाता है। 

सुकुमार सेन ने करवाया पहला चुनाव
26 जनवरी 1950 को देश का संविधान लागू होने के बाद पहला चुनाव अपने आप में चुनाव आयोग के लिए बड़ी चुनौती थी। उस समय चुनाव आयुक्त की एक ही पोस्ट हुआ करती थी और सुकुमार सेन की अगुवाई में देश पहले चुनाव में उतरा था। चुनाव के दौरान वोटर सूचियां बनाने से लेकर बैलेट बॉक्स, सुरक्षा के इंतजाम और चुनाव का सारा प्रशासकीय प्रबंध पहली बार चुनाव आयोग के लिए भी एक नए तजुर्बे की तरह था लेकिन इसके बावजूद देश के 17 करोड़ वोटरों ने लोकतंत्र के इस महायज्ञ में भाग लिया और देश के लिए पहली चुनी हुई सरकार का गठन हुआ। पहले चुनाव के दौरान 489 सीटों पर वोटिंग हुई जिसमें 53 पाॢटयों ने हिस्सा लिया। इस दौरान दुर्गम इलाकों में खच्चरों व ऊंटों की मदद से बैलेट बॉक्स पहुंचाए गए और मौसम की तमाम दुश्वारियों के बावजूद चुनाव को सफलतापूर्वक सम्पन्न करवाया गया। 

Anil dev

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