इंदिरा की 1971 जैसी जीत के बराबर कैसे पहुंचे मोदी

Wednesday, Jun 12, 2019 - 10:54 AM (IST)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिली बम्पर जीत ने राजनीतिक विशेषज्ञों को अपने ‘समीकरणों’ पर फिर से विचार करने पर मजबूर कर दिया है। भाजपा ने भी इस जीत के लिए कई नए कदम उठाए। राज्यवार इलाकों पर ध्यान दिया और मजबूत पकड़ बनाई। भाजपा शुरू से ही इस रणनीति पर काम कर रही थी कि राज्य स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करेंगे तो केंद्र में बड़ी जीत मिल सकती है।  पहली बार ऐसा हुआ है कि जब किसी गैर-कांग्रेसी सरकार को इतना बड़ा जनादेश मिला हो। भाजपा की यह जीत इंदिरा गांधी की 1971 की जीत के लगभग बराबर है। भाजपा ने 13 राज्यों में खुद के दम पर और 3 राज्यों (यू.पी, महाराष्ट्र और बिहार) में सहयोगियों के दम पर 50 प्रतिशत से भी ज्यादा वोट हासिल किए हैं। इन चुनावों में जैसी जीत भाजपा को मिली है वैसी जीत अब तक इतिहास में सिर्फ तीन बार देखने को मिली। 1971 में जब कांग्रेस को 12 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और पार्टी 518 में से 352 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। 


1980 में इंदिरा कांग्रेस ने 542 में से 353 सीटें हासिल कीं और 13 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए थे। और इसके बाद 1984 में जब राजीव गांधी के नेतृत्व में आज तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस 404 सीटों पर विजयी रही थी और 17 राज्यों में उसे 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। अब स्थिति काफी उलट नजर आ रही है। भाजपा इस बड़ी जीत के साथ अपने अब तक के राजनीतिक शीर्ष पर है, वहीं कांग्रेस की हालत 1990 की भाजपा जैसी हो गई है। जिन क्षेत्रीय दलों ने 1990 से 2014 तक काफी दबदबा कायम किया, अब संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उनके पुराने समीकरण अब काम करते नजर नहीं आ रहे हैं। 


भाजपा के लिए बड़ा टॄनग प्वाइंट 
2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को पूरे देश से समर्थन मिला। ऐसा समर्थन कांग्रेस को 1984 में मिला था जबकि उस दौरान भाजपा महज 2 सीटें जीत पाई थी। पार्टी को 6 राज्यों में 10 प्रतिशत वोट मिल थे जो इस बात का इशारा था कि यदि पार्टी मेहनत करे तो इन राज्यों में होने वाले चुनाव में उसे बढ़त मिल सकती है। 1989 में भाजपा को पहला बड़ा टॄनग प्वाइंट मिला और पार्टी को देश भर में 85 सीटें मिलीं। राज्यों पर ध्यान देते हुए देश में बड़ा समर्थन हासिल करने का फार्मूला भाजपा को तभी मिला था। पार्टी ने 1993 में नारा भी दिया था, ‘‘आज चार प्रदेश, कल सारा देश’’। उस दौरान भाजपा ने मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और हिमाचल में जीत हासिल की थी।



हिल गए समीकरण
इसमें अब कोई संदेह नहीं रह गया है कि सपा-बसपा गठबंधन अपने खात्मे की ओर है। दोनों पाॢटयां वोटरों पर अपनी पकड़ खत्म कर चुकी हैं। महागठबंधन का पहला प्रयोग लालू प्रसाद यादव ने बिहार में किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में राजग को 39 प्रतिशत वोट मिले जिसमें भाजपा को 30 प्रतिशत, एल.जे.पी. को 6 प्रतिशत और आर.एल.एस.पी. को 3 प्रतिशत वोट मिले। दूसरी तरफ यू.पी.ए. को 28 प्रतिशत वोट मिले जिसमें राजद को 20 प्रतिशत और कांग्रेस को 8 प्रतिशत वोट मिले। उस चुनाव में जे.डी.यू. अकेले मैदान में उतरी थी और उसने 16 प्रतिशत वोट हासिल किए थे। लालू यहां थोड़े आगे निकले और अपने साथ जे.डी.यू. को मिलाकर वोट प्रतिशत के मामले में राजग से आगे हो गए। इस फार्मूले ने 2015 के विधानसभा चुनाव में जबरदस्त काम किया और राजद, जे.डी.यू., कांग्रेस के महागठबंधन ने 243 में से 178 सीटों पर जीत दर्ज की। राजग ने 30 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 58 सीटें जीतीं। 2019 के चुनाव ने इन सभी समीकरणों को हिलाकर रख दिया और क्षेत्रीय पाॢटयों को अलग हटकर रणनीति पर विचार करने को मजबूर कर दिया। 


 

अब तक के इतिहास में सिर्फ तीन बार देखने को मिली ऐसी जीत

  • 1971: कांग्रेस को 12 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले और पार्टी 518 में से 352 लोकसभा सीटें जीतने में कामयाब रही। 
  • 1980: इंदिरा कांग्रेस ने 542 में से 353 सीटें हासिल कीं और 13 राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल किए थे।
  • राजीव गांधी के नेतृत्व में आज तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। इस चुनाव में कांग्रेस 404 सीटों पर विजयी रही थी और 
  • 1984:17 राज्यों में उसे 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे। 
  • 2014: भाजपा 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट हासिल कर 282 सीटें जीतने में सफल रही।
  • भाजपा 303 सीटें जीतने में सफल।
  • 2019: बंगाल और ओडिशा में क्रमश: 40 प्रतिशत और 38 प्रतिशत वोट शेयर भाजपा का।

Anil dev

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