ऑफ द रिकॉर्डः लोकसभा और राज्यसभा टी.वी. का विलय चाहते हैं नरेन्द्र मोदी
Saturday, Nov 23, 2019 - 04:00 AM (IST)
नेशनल डेस्कः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा जोर दिए जाने के बाद राज्यसभा के स्पीकर एम. वेंकैया नायडू ने लोकसभा टी.वी. और राज्यसभा टी.वी. के विलय के लिए 6 सदस्यीय समिति गठित की है। मोदी जब पहली मई 2014 में सत्ता में आए थे तब भी उन्होंने दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों सुमित्रा महाजन (लोकसभा) और डा. हामिद अंसारी (राज्यसभा) को समझाने की कोशिश की थी कि एक साथ 2 चैनलों को चलाने का कोई तुक नहीं है।
लोकसभा टी.वी. की शुरूआत यू.पी.ए. के शासन के दौरान सोमनाथ चटर्जी ने की थी और उसके बाद राज्यसभा टी.वी. आया लेकिन दोनों ही चैनल संसदीय कवरेज के ऊंचे मानक स्थापित करने में नाकाम रहे। यहां तक कि इन चैनलों ने फीचर फिल्में और अन्य मनोरंजक कार्यक्रम दिखाने शुरू कर दिए तथा निजी चैनलों और दूरदर्शन से प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी। यह इन दोनों चैनलों को शुरू करने का मकसद नहीं था लेकिन उस समय पीठासीन अधिकारियों को यह बताने वाला कोई नहीं था। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी से इसके कारणों की जांच शुरू करवाने में प्रधानमंत्री मोदी ने भी करीब 5 साल लगा दिए।
अगर सूत्रों पर यकीन किया जाए तो कमेटी को अपनी रिपोर्ट 6 सप्ताह में सौंपनी होगी क्योंकि मोदी चाहते हैं कि दोनों चैनलों के विलय के बाद बना नया चैनल अगले बजट सत्र से शुरू हो जाए। नए चैनल के नाम पर अभी कोई फैसला नहीं किया गया है। प्रसार भारती के चेयरमैन ए. सूर्य प्रकाश, राज्यसभा सचिवालय के अतिरिक्त सचिव ए.ए. राव, लोकसभा सचिवालय के गणपति भट्ट, संयुक्त सचिव शिखा दरबारी जोकि राज्यसभा टी.वी. की वित्तीय सलाहकार हैं और राज्यसभा व लोकसभा टी.वी. के सी.ई.ओ. मनोज कुमार पांडे और आशीष जोशी इस 6 सदस्यीय समिति के सदस्य हैं।
इस समिति के समक्ष सबसे बड़ा मुद्दा है कि दोनों सदनों की कार्रवाई के लाइव प्रसारण की अनुमति दी जाए या केवल प्रश्रकाल या अन्य बड़ी बहसों का टैलीकास्ट किया जाए। हो सकता है कि इस पर शून्यकाल का नहीं बल्कि प्रश्रकाल के दौरान कार्रवाई का ही प्रसारण किया जाए और संसदीय चैनल पर नियमित न्यूज बुलेटिन भला क्यों दिखाए जाएं। सरकार को इस पर भी फैसला लेना होगा कि क्या नया चैनल लोकसभा के स्पीकर की निगरानी में होगा?