नजरिया: पाकिस्तान से कुछ सीखना भी जरूरी

Saturday, Jul 28, 2018 - 06:15 PM (IST)

नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा): रामायण में एक प्रसंग मिलता है जब लंकापति रावण दम तोड़ रहे थे तो श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि जाओ रावण से कुछ शिक्षा लेकर आओ। आपको याद आ ही गया होगा। यह प्रसंग वास्तव में यही बताता है कि दोस्त तो दोस्त शत्रु में भी कुछ गुण होते हैं, कोई अच्छी बात होती है और उसे जानना जरूरी है, ग्रहण कर लेना चाहिए। यही बात पाकिस्तान के चुनाव पर भी लागू होती है।

पाकिस्तान के चुनाव में इस समय सभी पार्टियां इमरान खान और सेना पर चुनावों में धांधली के आरोप लगा रही हैं। चुनावी हिंसा में वहां 178 लोग मारे गए। लेकिन इसके बावजूद पाकिस्तान के चुनाव में भी कुछ बातें ऐसी रही हैं जिनपर हमें ध्यान देने और उनसे सीख लेने की जरूरत है। पाकिस्तान नेशनल असेंबली में 270  सीटों के लिए चुनाव हुआ। ख़ास बात यह रही कि सारा चुनाव एक ही चरण में यानि एक ही दिन हुआ। जबकि हिंदुस्तान में पिछ्ला चुनाव 9 चरणों में हुआ था। हालांकि यहां यह तर्क दिया जा सकता है कि हिंदुस्तान में पाकिस्तान के मुकाबले आठ गुना ज्यादा मतदाता हैं।  लेकिन फिर यहां आधारभूत ढांचा भी तो उसी अनुपात में बड़ा है।


यही नहीं पाकिस्तान में मतदान के तुरंत बाद मतगणना शुरू हो गयी। जबकि अपने यहां 35 दिन तक हार-जीत को लेकर शर्तें लगती रहीं। इस लम्बी अवधि में ईवीएम की सुरक्षा पर भारी भरकम खर्च हुआ। इस काम में सुरक्षाबलों की आधी से अधिक नफरी तैनात रही और खुदा ना खास्ता उस दौरान देश पर कोई संकट आ जाता तो क्या होता? जवान ईवीएम की सुरक्षा करते या मोर्चा संभालते? यही नहीं पाकिस्तान में जिस दिन नेशनल असेंबली के चुनाव हुए उसी दिन प्रांतीय असेंबलियों के लिए भी मतदान हुआ। नेशनल अअसेंबली की  270  और प्रांतीय असेम्ब्लियों की 577 सीटों के  मतदान हुआ। वहा चार प्रांत हैं पंजाब, सिंध,खैबर पख्तूनवा और बलूचिस्तान। इसे भारत के लिहाज़ से यूं देखा जा सकता है कि मानो लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। इससे भी भारी खर्च बचता है। 

देश में इस मसले पर लम्बे समय से चर्चा हो रही है लेकिन नतीजा अभी भी सिफर ही है। एक और मसला लम्बे अरसे से चर्चा मैं है। वह है महिला आरक्षण का। दो दशक से हमारे यहां इसकी चर्चा है पर नतीजा नहीं निकल पाया है ।  उधर पाकिस्तान में तमाम चीजों के बावजूद 60 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इन्हें सभी पार्टियों में समान अनुपात के फार्मूले से भरा जाता है। यही नहीं इसके अतिरिक्त भी  सभी पार्टियों के लिए पांच फीसदी टिकट महिलाओं को देना जरूरी बनाया गया है। इस बार वहां एक और नियम  लागू हुआ है। सभी उम्मीदवारों को अपनी और अपने रिश्तेदारों की संपत्ति का ब्यौरा देना जरूरी बनाया गया है और अगर शुरूआती तौर पर संपत्ति और स्त्रोत में कोई तालमेल नज़र नहीं आता तो नामांकन रद हो जाएगा । मुशर्रफ और  प्रधानमंत्री अब्बासी तक के नामांकन इसी आधार पर रद हो गए।  तो  क्या हम, जो पाकिस्तान से कहीं बड़ा और साधन संपन्न राष्ट्र हैं, अपने यहां ऐसी व्यवस्था नहीं कर सकते ?

vasudha

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