लालू की रैलियों के एेसे नाम कभी भुलाए नहीं भूले जाते, कभी ''लाठी'' तो कभी ''चेतावनी''

punjabkesari.in Sunday, Aug 27, 2017 - 05:22 PM (IST)

पटना: बिहार ही नहीं देश की राजनीति में भी अपने अनौखे अंदाज की बदौलत आरजेडी मुखिया लालू प्रसाद यादव ने अपनी अलग छवि बना रखी है। यही छंटा उनकी रैलियों में भी देखने को मिलती है। वे अपनी हरेक रैली का नाम इस अंदाज में रखते हैं कि वो सीधे आम जनता के दिमाग पर क्लिक करे। यही वजह है कि उनकी रैलियां भीड़ से ज्यादा उनके रैली नाम की बदौलत हमेशा सुर्खियों में रहती हैं। रविवार(27 अगस्त) को भी पटना के एेतिहासिक गांधी मैदान में लालू ने रैली का आयोजन किया। लालू ने इस रैली का नाम रखा 'भाजपा भगाओ देश बचाओ' रैली। आइए हम बताते हैं लालू यादव की पिछली कुछ रैलियों के बारे में, जो देशभर में अपने नाम की वजह से भी सुर्खियों में रहीं। 
PunjabKesariगरीब रैली (1995): राष्ट्रीय जनता दल सुप्रीमो ने यह रैली उस वक्त की थी जब वे जनता परिवार से अलग अपनी पहचान बनाने में जुटे थे। जानकारों के अनुसार, रैली के नाम में गरीब शब्द लाने के पीछे का मकसद था कि वे बिहार के लोगों को समझा सकें कि जनता परिवार के सभी नेताओं के बीच वे ही इकलौते ऐसे नेता हैं जो गरीबों के हमदर्द हैं।

गरीब रैला (1996): इस दौर में केंद्र में बीजेपी सत्ता में आ गई थी। राम मंदिर मुद्दे पर लोगों को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही थी। तभी लालू ने अपने वोटरों को एकजुट करने के लिए रैली की जगह रैला शब्द जोड़ दिया। रैला शब्द के पीछे का मकसद यह था कि वे गरीब वोटरों को बता सकें कि लोग रैली करते हैं। वे गरीबों के लिए रैला कर रहे हैं। लालू की यह सोच काफी हद तक सफल भी रही। वे अपने वोटरों को समझाने में सफल रहे कि उनकी रैली तभी रैला में तब्दील होगी। लोग ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनी रैली में शामिल होंगे।

महागरीब रैला (1997): इस दौरान बीजेपी और नीतीश कुमार दोनों ही लालू के खिलाफ मुखर हो चुके थे। इन परिस्थतियों में लालू ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए गरीब में 'महा' शब्द जोड़ दिया। वे इसके जरिए बताने की कोशिश कर रहे थे वे ओबीसी के अलावा समाज के बेहद निचले तबके के भी नेता हैं। 
PunjabKesariलाठी रैला (2003): जब लालू को लगने लगा कि बिहार की राजनीतिक हवा में उनका असर कम हो चुका है। ऐसे में अपने जनाधार बचाने के लिए लालू ने लाठी रैला किया। लाठी उस वर्ग का भी प्रतीक है, जो खेती-किसानी और पशुपालन से जुड़ा है। 

चेतावनी रैली (2007): इस दौर में नीतीश-बीजेपी यानी एनडीए गठबंधन के सामने लालू अपनी लोकप्रियता गंवा चुके थे। इसके चलते उन्होंने अपने कोर वोटरों को फिर से एकजुट करने की तैयारी की। इस रैली के माध्यम से आरजेडी अध्यक्ष संदेश देने की कोशिश कर रहे थे कि वे नीतीश राज में यादव और मुस्लिम वोटरों के साथ भेदभाव बर्दाश्त नहीं करेंगे।

परिवर्तन रैली (2012): नीतीश कुमार और बीजेपी दोनों हम राही नहीं रहे थे। दोनों के बीच गठबंधन टूट चुका था। लालू यादव बिहार की राजनीति में नए गठबंधन की संभावनाएं तलाशना चाहते थे। इसके चलते उन्होंने संदेश देने की कोशिश की, कि अब बिहार में नई सरकार बनने जा रही है।
PunjabKesari'भाजपा भगाओ देश बचाओ' रैली (2017): आज यानी रविवार को पटना के एेतिहासिक गांधी मैदान में लालू प्रसाद यादव ने भाजपा भगाओ देश बचाओ रैली का आयोजन किया। इस रैली का मकसद आम जनता और अपने वोटरों को ये समझाना कि किस तरीके से महागठबंधन तोड़ा गया और रेल से जमीन तक के तमाम स्कैनों में उनका और उनके परिवार जोड़ा गया।
 


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