जब शास्त्री जी ने कश्मीर जाने से कर दिया था इंकार, पढ़िए...उनके बारे में कुछ रोचक बातें

Monday, Oct 02, 2017 - 12:25 PM (IST)

नई दिल्ली: 'जय जवान, जय किसान' का नारा देने वाले भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का आज जन्मदिन है। देश आज उनकी 113वीं जयंती मना रहा है। देशभक्ति और ईमानदारी का प्रतीक माने जाने वाले शास्त्री जी का जन्म 2 अक्तूबर1904 को उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में हुआ था। शास्त्री जी ने अपने विचारों और सादगी के जरिए देशवासियों के मन में अमिट छाप छोड़ी। उन्हें आज भी देश के सर्वश्रेष्ठ प्रधानमंत्री के रूप में याद किया जाता है। 1966 में उन्हें मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया था।

कठिनाइयों में बीता जीवन
शास्त्री जी का काफी छोटे थे जब उनके पिता का निधन हो गया था। जिससे उनका बचपन बड़ी ही गरीबी में बीता। बचपन में पढ़ाई के दौरान शास्त्री जी कई मील की दूरी नंगे पांव ही तय कर विद्यालय जाते थे, यहां तक की भीषण गर्मी में जब सड़कें अत्यधिक गर्म हुआ करती थीं तब भी उन्हें ऐसे ही जाना पड़ता था। उनके पास नदी पार करने के लिए पैसे नहीं होते थे तो वह तैरकर गंगा नदी पार करते और स्कूल जाते पहुंचते थे।

बदल ली थी अपनी जाति
कायस्थ परिवार में जन्में लाल बहादुर शास्त्री के बचपन का नाम नन्हे था। इसके बाद काशी विद्यापीठ से उन्होंने 'शास्त्री' की उपाधि हासिल की और अपने उपनाम श्रीवास्तव को हटाकर शास्त्री कर लिया।

गांधी जी से प्रभावित थे शास्त्री
गांधी जी ने असहयोग आंदोलन में शामिल होने के लिए अपने देशवासियों से आह्वान किया था, इस समय लाल बहादुर शास्त्री केवल 16 साल के थे। उन्होंने महात्मा गांधी के इस आह्वान पर अपनी पढ़ाई छोड़ देने का निर्णय कर लिया था। उनके इस निर्णय ने उनकी मां की उम्मीदें तोड़ दीं। उनके परिवार ने उनके इस निर्णय को गलत बताते हुए उन्हें रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वे इसमें असफल रहे। लाल बहादुर ने अपना मन बना लिया था। उनके सभी करीबी लोगों को यह पता था कि एक बार मन बना लेने के बाद वे अपना निर्णय कभी नहीं बदलेंगें क्योंकि बाहर से विनम्र दिखने वाले लाल बहादुर अन्दर से चट्टान की तरह दृढ़ थे। जीवन में अनेक संघर्षों के बावजूद 09 जून 1964 को शास्त्री जी भारत के प्रधामंत्री बने।

कश्मीर जाने से कर दिया ता मना
यह बात 1962 के करीब की है। उस समय शास्त्री जी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव थे। उस समय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। उन्हें पार्टी के किसी महत्वपूर्ण काम से कश्मीर जाना था। पंडित नेहरू ने शास्त्री जी से चलने के लिए कहा तो उन्होंने वहां जाने से मना कर दिया। काफी बार कहने पर भी जब शास्त्री जी नहीं माने तो पंडित नेहरू भी चकरा गए कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। पंडित नेहरू उनका बहुत सम्मान करते थे, इसलिए उन्होंने शास्त्री जी को अफने पास बुलाया और कश्मीर न जाने का कारण पूछा। पहले तो शास्त्री जी कुछ भी बताने के लिए राजी नहीं हुए, मगर बहुत कहने पर उन्होंने जो कुछ कहा उसे सुनकर पंडित नेहरू की भी आंखों में आंसू आ गए। शास्त्री जी ने बताया कि कश्मीर में ठंड बहुत पड़ रही है और मेरे पास गर्म कोट नहीं है। पंडित नेहरू ने उसी समय अपना कोट उन्हें दे दिया और यह बात किसी को नहीं बताई। लाल बहादुर शास्त्री जब प्रधानमंत्री बने तो इसी कोट को पहनते रहे।

पत्नी ने पेंशन के रुपयों से अदा की कार की किश्त
शास्त्री जी की ईमानदारी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिन्होंने 1965 में अपनी फीएट कार खरीदने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से पांच हजार ऋण लिया था। मगर ऋण की एक किश्त भी नहीं चुका पाए। 1966 में शास्त्री जी का देहांत हो गया। देहांत हो जाने के बाद बैंक ने नोटिस भेजा तो उनकी पत्नी ने अपनी पेंशन के पैसे से कार के लिए लिया गया ऋण चुकाने का वायदा किया और फिर धीरे-धीरे बैंक के पैसे अदा किए।

उनके शासनकाल में 1965 का भारत-पाक युद्ध हुआ। इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी। जय जवान-जय किसान का नारा भी इसी दौरान दिया गया। ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी, 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई। देश के लोग शास्त्री जी की नेतृत्व क्षमता पर गर्व करते हैं। राष्ट्रभक्ति के लिए लाल बहादुर शास्त्री देश के हर दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।

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