कश्मीर में कई बार जवानों की जिंदगी बचा चुकी है लैला, जमीन के अंदर से ढूंढ लेती है IED

Sunday, Feb 24, 2019 - 12:14 PM (IST)

श्रीनगर: पुुलवामा आतंकी हमले में पिछले दिनों सीआरपीएफ के 40 जवान शहीद हो गए थे। जवानों की शहादत पर लोगों के मन में आज भी आक्रोश और गुस्सा है। इसी बीच उन खोजी कुत्तों की भी चर्चा हो रही है जिन्होंने न जाने कितनी बार आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेरा है और जवानों की रक्षा की। सीआरपीएफ की अलग-अलग बटालियन के लिए काम करने वाली 8 साल की लैला ने आईईडी को ढूंढ कर कई बार बड़े हादसों को टाला है। लैला सीआरपीएफ बटालियन 130 से जुड़ी है। लैला की देखरेख करने वाले संदीप बताते हैं कि 8 साल की लैब्राडोर प्रजाति की लैला सीआरपीएफ की कई बटालियन के लिए अपनी सेवाएं देती रही है। इसमें बटालियन 110, 130, 90 और 146 बटालियन शामिल है। मजाकिया लहजे में बोलते हुए संदीप ने कहा कि कश्मीर में लैला के मजनू ज्यादा नहीं है।
 

सीआरपीएफ के एक अधिकारी ने कहा कि लैला के लिए जमीन के अंदर छिपे आईईडी को ढूंढना मुश्किल नहीं है और शायद इसीलिए आतंकी विस्फोटक को गांड़ी में लेकर आया और इतने बड़े हमले को अंजाम दे दिया। लैल के अलावा 45 से अधिक खोजी कुत्ते हैं जो कि एनएच 44 पर करीब 135 किलोमीटर का दायरा कवर करते हैं। लैल के अलावा कॉडी और रोजर भी आईईडी को ढूंढने में सीआरपीएफ की मदद कर चुके हैं। यह दोनों भी काफी फुर्तीले हैं। इन कोजी कुत्तों की ट्रेनिंग कर्नाटक में हुई है, इसके बाद इन्हें कश्मीर लाया गया। लैला की केयर करने वाले संदीप बताते हैं कि यह खोजी कुत्ते पहले उस पूरे रूट का निरीक्षण करते हैं, जिन पर सीआरपीएफ की टुकड़ियां भेजी जाती हैं।

खास होती है ट्रेनिंग
इन खोजी कुत्तों की ट्रेनिंग भी बेहद खास होती है। उनके इंतजार करने से लेकर विस्फोटक ढूंढने, सैल्यूट करने और भौंकने तक की ट्रेनिंग दी जाती है। इनको खाने में कम से कम 4 अंडे और 650 ग्राम गोश्त हर रोज जरूर दिया जाता है। यह खोजी कुत्ते इतने एक्टिव होते हैं कि अपने ट्रेनर के ऑर्डर के बिना कोई हरकत नहीं करते।

Seema Sharma

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