Delhi के प्राचीन और भव्य 'गंगा टोली मंदिर' का जानें इतिहास, जहां राजनेता भी होते हैं नतमस्तक

Thursday, Jul 14, 2022 - 07:15 PM (IST)

नई दिल्ली: दिल्ली देहात के सबसे सुंदर और हरियाली भरे “गंगा टोली मन्दिर” का इतिहास आज हम आपके सामने रखेंगे। दिल्ली के बवाना इंडस्ट्रियल इलाके के सेक्टर-4 में बना 'गंगा टोली मंदिर' बवाना ही नहीं बल्कि बवाना के आसपास के 20 से ज्यादा गांव की पूजा का स्थल है। इस गांव से निकलकर जो लोग देश के अलग-अलग हिस्सों में गए हैं वह लोग भी यहां आकर इस मंदिर में पूजा करते हैं। बवाना स्थित गंगा टोली मंदिर न केवल दिल्ली के ग्रामीण इलाके बल्कि हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। यहां साल भर भक्तों का आना जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्री और सावन के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। मंदिर के प्रति लोगों की आस्था सावन में खूब देखने को मिलती है। राजनेता भी मंदिर में भगवान शिव का आशीर्वाद लेने के लिए आते हैं।


'गंगा टोली मंदिर' का क्या है प्राचीन इतिहास?

'गंगा टोली मंदिर' की स्थापना सन 1850 में हुई थी। मंदिर की स्थापना साधु 'गंगा महाराज' जी द्वारा की गई थी। पहले यहां पर काफी सुनसान जंगल था और जंगली जानवर बड़ी संख्या में रहते थे।  गांव वासी एक बार जंगल में गाय चराते हुए आए तो उन्होंने देखा कि गांव के जंगल में कुटिया बनाकर एक साधु रह रहे हैं और वहां तपस्या करते हैं।  गांव के लोगों द्वारा बताई गई बातें और एक पुस्तक की भी मानें तो वह साधु 'गंगा महाराज' जी थे। 

अंग्रेजी सेना में अधिकारी रहे शख्स ने क्यों धारण किया वैराग्य

जानकारी के मुताबिक 'गंगा महाराज' जी शुरुआत में अंग्रेजी सेना में अधिकारी थे। अंग्रेजी शासन का दुराचार और दमन देखकर वे इतने व्यथित हुए कि उन्होंने वैराग्य धारण कर लिया। उन्होंने नौकरी ही नहीं छोड़ी बल्कि अपना घर परिवार सब छोड़कर इस वन में आकर तपस्या करने लगे। इसलिए महाराज जी के परिवार की किसी को जानकारी नहीं है।


मंदिर का नाम 'गंगा टोली' कैसे पड़ा?

गंगा महाराज जी के पास साधु सन्यासी आने लगे और सभी उस टोली में रहते थे और यहां प्रभु की पूजा करते थे। गंगा महाराज की इस टोली के कारण गांव वासियों ने उस मंदिर को 'गंगा टोली मंदिर' बोलना शुरू कर दिया और आज यह 'गंगा टोली मंदिर' पूरे भारत में प्रसिद्ध हो रहा है। यहाँ पर बाबा का धूना है जिसमें 24 घंटे अग्नि जलती है, कहते हैं कि यह अग्नि उस जमाने से जलती आ रही है। पास में एक छोटा-सा तालाब और एक छोटा-सा कमरा बनाया गया था।

श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र

1990 के बाद यहां गांव के लोगों ने अपनी श्रद्धा की जगह पर भव्य मंदिर बनाया जिसमें अभी भी काम लगातार जारी है। मंदिर का स्ट्रक्चर देखकर सभी इस मंदिर की दिल से तारीफ करते हैं।  पांच एकड़ में फैले मंदिर परिसर में दुर्गा मंदिर, श्रीराम मंदिर, शिव सरोवर, गीता उपदेश वाटिका, परशुरामजी का मंदिर भी श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र हैं। इस मंदिर के भव्य बनाने का श्रेय बवाना के पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार को जाता है। जब यहां इस जंगल में बवाना इंडस्ट्रियल एरिया बसाया गया उस समय यहां खेत और झाड़ जंगल थे।  उस वक्त यहां के विधायक सुरेंद्र कुमार थे। उन्होंने दिन-रात यहां प्रयास किया।  यहां कुछ जमीन ग्रामसभा की थी तो कुछ डीडीए द्वारा एक्वायर कर ली गई थी।

सुरेंद्र कुमार के प्रयासों से यहां करीब 5 एकड़ जमीन मंदिर को दिलाई गई।  इस मंदिर को 5 एकड़ जमीन देने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का आभार यहां के स्थानीय निवासी करते हैं। मंदिर में भगवान परशुराम की प्रतिमा, गीता उपदेश, जटा गंगा छोड़ते हुए भगवान शिव भोले बाबा की प्रतिमा के साथ-साथ और भी बड़ी संख्या में प्रतिमाएं बनाई गई है जिन्हें देखने के लिए लोग यहां पहुंचते हैं। यह मंदिर बवाना इंडस्ट्रियल इलाके के बीच में है। यहां निरंजनी अखाड़े के महंत और फिर उनके शिष्यों के माध्यम से परंपरा चलती आ रही है जो मंदिर की देखरेख करते हैं और पूजा करते हैं। फिलहाल इस तरह की आस्था बेहद ही सराहनीय है। जरूरत है यह आस्था नई पीढ़ी में भी लगातार बनी रहे।

rajesh kumar

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