जानिए अमित शाह की करीबी माया कोडनानी की पूरी कहानी

Saturday, Apr 21, 2018 - 05:19 AM (IST)

नेशनल डेस्क: 29 फरवरी, 2002 को नरोदा पाटिया नरसंहार मामले में आरोपी भाजपा की पूर्व मंत्री माया कोडनानी को हाई कोर्ट ने बरी कर दिया है। कोडनानी पर अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में दंगा भड़काने का आरोप था उनके  खिलाफ कोर्ट में 11 चश्मदीदों ने गवाही भी दी थी लेकिन उनमें से 10 तथ्य उन्हें निर्दोष साबित करने में अहम रहे। शुक्रवार को उच्च अदालत ने उन्हें बरी कर दिया। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद राजनीति गलियारों में भी चर्चाएं तेज हो गई। माना जा रहा है कि आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए मोदी सरकार कोडनानी को एक बार फिर मैदान में उतार सकती हैं। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की काफी करीबी भी मानी जाती हैं।

अपने भाषणों से हुई लोकप्रिय 
पेशे से डॉक्‍टर माया कोडनानी स्‍त्री रोग विशेषज्ञ हैं। उनके पिता आरएसएस के सक्रिय कार्यकर्ता थे। ऐसे में डॉक्टर के तौर पर ही नहीं आरएसएस की कार्यकर्ता के तौर पर भी जानी जाती थी। उन्होंने अपनी राजनीति पारी की शुरुआत 1995 में अहमदाबाद के निकाय चुनाव से की थी। 1998 में वो वह नरोदा से विधायक चुनी गई। अपने भाषणों की वजह से वह भाजपा में काफी लोकप्रिय हुई। उन्हें भाजपा के वरिष्ठ नेता एलके आडवाणी का भी करीबी नेता माना जाता था। साल 2002 में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने जीत हासिल की। साल 2007 में भी उन्हे जीत मिली और जल्द ही गुजरात सरकार में मंत्री भी बन गई। 

अमित शाह बने थे कोडनानी के गवाह
माया कोडनानी का नाम 2002 के गुजरात दंगों में सामने आया। 27 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा पाटिया नरसंहार में दिनदहाड़े 97 लोगों को मार दिया गया था। इसी मामले में कोडनानी पर नरोदा में दंगा भड़काने, भड़काऊ भाषण देने का आरोप था। हालांकि 2012 में जब निचली अदालत ने उनको सजा सुनाई तो उन्‍होंने खुद को निर्दोष बताते हुए कहा था कि उनको राजनीतिक षड्यंत्र के तहत फंसाया गया है। उन्‍होंने यह तक कहा था कि वह उस दिन नरोदा में मौजूद ही नहीं थीं। बता दें कि अमित शाह ने भी इस मामले में गवाही दी थी कि माया कोडनानी 29 फरवरी, 2002 को नरोदा गाम में नहीं थी। वह सुबह 8.30 बजे विधानसभा के अंदर थी इस दौरान उन दोनों की मुलाकात भी हुई थी।

2009 में किया था सरेंडर
2009 में जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एसआईटी ने नरोदा पाटिया केस में पूछताछ के लिए बुलाया तो माया कोडनानी उपस्थित नहीं हुईं और उनको भगौड़ा घोषित कर दिया। उसके बाद बढ़ते दबाव के बीच उन्‍होंने सरेंडर किया और अपने मंत्री पद से इस्‍तीफा देना पड़ा। हालांकि जल्द ही वे ज़मानत पर रिहा भी हो गई। इस दौरान वे विधानसभा जाती रहीं और उन पर मुक़दमा भी चलता रहा। 29 अगस्त 2012 में आख़िरकार कोर्ट ने उन्हें नरोदा पाटिया दंगों के मामले में दोषी क़रार दिया।

vasudha

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