केजरीवाल की सुरक्षा प्राथमिकता या सुरक्षा हटाना?
punjabkesari.in Saturday, Jan 25, 2025 - 04:24 PM (IST)
नेशनल डेस्क: दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पर दिल्ली में चुनाव प्रचार के दौरान हमले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। पिछले साल 24 अक्टूबर, 30 नवंबर, इस साल 18 जनवरी और 23 जनवरी को हुए हमलों को देखते हुए कहना मुश्किल है कि आगे भी ये हमले रुकेंगे या नहीं। ऐसे में अरविन्द केजरीवाल से पंजाब पुलिस की अतिरिक्त सुरक्षा वापस लिए जाने का औचित्य सवालों में है। हमले बढ़ रहे हैं, सुरक्षा घट रही है। यह आश्चर्य की बात है!
नियम यह है कि 72 घंटे तक सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस को सूचित करने की आवश्यकता किसी भी राज्य की पुलिस को नहीं होती। मगर, इससे ज्यादा समय होने पर इसकी सूचना स्थानीय पुलिस प्राधिकरण को देनी होती है। पंजाब पुलिस ने अरविन्द केजरीवाल पर हमले होने की खुफिया सूचनाओं के आलोक में सुरक्षा उपलब्ध करायी थी। अच्छी प्रैक्टिस यह है कि इन सूचनाओं को केंद्रीय गृहमंत्रालय या दिल्ली पुलिस से साझा करके सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत किया जाता। मगर, ऐसा नहीं हुआ। यह स्थिति बनी क्यों?
केजरीवाल पर हमलों की चिंता क्यों नहीं?
औपचारिकताओं से ज्यादा पंजाब पुलिस ने अरविन्द केजरीवाल की सुरक्षा को महत्व दिया। इसके औचित्य पर बहस हो सकती है। मगर, जेड प्लस की सुरक्षा के बीच दिल्ली पुलिस अरविन्द केजरीवाल की सुरक्षा में सेंधमारी को रोक नहीं पा रही है, हमलावर लगातार सुरक्षा व्यवस्था को तोड़ रहे हैं और फिर भी चुनाव आयोग और दिल्ली पुलिस पंजाब पुलिस की चिंता और सतर्कता को खारिज कर रही है- इसके औचित्य पर चर्चा अधिक महत्वपूर्ण और गंभीर है।
चुनाव आयोग, केंद्रीय गृहमंत्रालय और दिल्ली पुलिस की प्राथमिकता अरविन्द केजरीवाल की सुरक्षा होनी चाहिए या पंजाब पुलिस की इस सुरक्षा की जरूरत को महसूस करते हुए अतिरिक्त सतर्कता की वैधानिकता पर सवाल प्राथमिकता होनी चाहिए? चाहे दिल्ली पुलिस हो या पंजाब पुलिस- ये सरकारों की इच्छा का पालन करती हैं। दिल्ली पुलिस केंद्रीय गृहमंत्रालय के अधीन है और पंजाब पुलिस पंजाब की सरकार के मातहत। दिल्ली देश की इकलौती सरकार है जिसके पास अपनी पुलिस नहीं है। मुख्यमंत्री, पूर्व मुख्यमंत्री तक को केंद्रीय गृहमंत्रालय के मातहत वाली दिल्ली पुलिस की सुरक्षा पर उन्हें निर्भर रहना होता है।
चुनाव आयोग और दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल
आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग को चिट्ठी लिखी है, उसमें साफ तौर पर केंद्र की सत्तारूढ़ बीजेपी और उनकी सरकार के गृहमंत्रालय के अधीन दिल्ली पुलिस की मंशा पर सवाल उठाए गये हैं। ‘अरविन्द केजरीवाल की जान लेने का षडयंत्र’ करने की बात कही गयी है। इसलिए यह सामान्य मामला नहीं है। इस शक की बुनियाद पर ही पूरे मामले को देखा जाना चाहिए। यहां चुनाव आयोग की भूमिका अगर तटस्थ ना हो तो फरियाद बेदम हो जाती है। मगर, चुनाव आयोग तो स्वयं वही कदम उठा रहा है जो दिल्ली पुलिस उठा रही है! अरविन्द केजरीवाल को पंजाब पुलिस की सुरक्षा मिली हुई है तो इसकी वैधानिकता का सवाल एक ही समय में एक ही साथ दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग दोनों के मन में क्यों पैदा हुआ?
पंजाब पुलिस के लिए चुनाव आयोग की बात मानना वैधानिक है। दो स्टेट की पुलिस परस्पर विरोधी राय रखें, इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए। नतीजा यही है कि पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की पंजाब पुलिस वाली सुरक्षा वापस ले ली गयी है और अब सिर्फ जेड प्लस वाली सुरक्षा व्यवस्था है जो केंद्रीय गृहमंत्रालय और दिल्ली पुलिस के नियंत्रण में है। अब दो राज्यों के मुख्यमंत्री चुनाव आयोग से गुहार लगा रहे हैं कि अरविन्द केजरीवाल की सुरक्षा की चिंता की जाए और पंजाब पुलिस की अतिरिक्त सुरक्षा बहाल की जाए और इसके पीछे दिल्ली पुलिस पर केजरीवाल की सुरक्षा को लेकर अविश्वास है क्योंकि दिल्ली पुलिस की सुरक्षा के बावजूद अरविन्द केजरीवाल पर लगातार हमले हो रहे हैं।
दो राज्यों के मुख्यमंत्रियों की चिंता गंभीर क्यों नहीं?
दो राज्य सरकारों के मुख्यमंत्री की राय का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए? इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सत्तारूढ़ दल के मुखिया आम आदमी पार्टी के संस्थापक अरविन्द केजरीवाल की फिक्र है। अरविन्द केजरीवाल दोनों ही राज्यों में सुरक्षा व्यवस्था के प्रोटोकॉल से भी जुड़े हैं। उनकी जान को खतरा है, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। आम आदमी पार्टी की इस चिंता को भी नकारना मुश्किल है कि अरविन्द केजरीवाल पर लगातार हमले रोक पाने में दिल्ली पुलिस नाकाम रही है। यह चिंता चुनाव आयोग के लिए बड़ी चिंता क्यों नहीं होनी चाहिए?
चुनाव आयोग ने सुरक्षा व्यवस्था हटाने की जरूरत देखी लेकिन अरविन्द केजरीवाल पर हमलों को रोकने के लिए या अरविन्द केजरीवाल को सुरक्षित रखने के लिए कोई दिशा निर्देश देना जरूरी नहीं समझा। ऐसा क्यों? जब हमलों से बेफिक्र हैं तो कल को अगर कोई अनहोनी हुई तो उससे भी ये बेफिक्र ही रहेंगे, ऐसा क्यों न समझा जाए? यह बेफिक्री आम आदमी पार्टी क्यों बर्दाश्त करे? आम आदमी पार्टी की सरकार पंजाब में है और पंजाब की सरकार इस बेफिक्री को समझते हुए अहतियात बरतती है और अरविन्द केजरीवाल को सुरक्षा उपलब्ध कराती है तो यह गलत कैसे है?
राजनीति कौन कर रहा है?
बीजेपी की ओर से प्रवेश वर्मा ने पूरे मामले में आम आदमी पार्टी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। इसमें संदेह नहीं कि राजनीति हो रही है। मगर, सवाल यह है कि राजनीति व्यक्तिगत सुरक्षा को सुनिश्चित करने के नाम पर हो रही है तो वह स्वीकार्य होना चाहिए या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरे में डालने वाली सियासत को स्वीकार किया जाना चाहिए? यह उदाहरण भी दिया जाता है कि यूपी के सीएम दिल्ली आते हैं तो वे दिल्ली की सुरक्षा लेते हैं। तब भी यूपी पुलिस की सुरक्षा बनी रहती है। दोहरी सुरक्षा यूपी के सीएम ले सकते हैं तो यही सुरक्षा दिल्ली के पूर्व सीएम क्यों नहीं ले सकते?
सुरक्षा व्यवस्था क्या इस बात से तय होगी कि पसंद की सरकार है या नहीं? अगर केंद्र में गैर बीजेपी सरकार हो तो क्या यूपी के सीएम को दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था नहीं मिलनी चाहिए? इससे इतर गंभीर बात यह है कि दिल्ली पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर अरविन्द केजरीवाल और उनकी पार्टी को यकीन नहीं रह गया है। पुलिस पर राजनीतिक पक्षपात या भेदभाव का आरोप लगना या उसी नजरिए से पुलिस का इस्तेमाल होने की स्थिति संघीय ढांचे और लोकतांत्रिक व्यवस्था के टूटने का संकेत है। एक ख़तरनाक स्थिति की ओर बढ़ रहा है देश।
प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार व टीवी पैनलिस्ट
(Disclaimer : यह लेखक के निजी विचार हैं।)