इस महिला IPS के सामने दी गई थी कसाब-याकूब को फांसी, ये थे आतंकियों के आखिरी शब्द

Sunday, Oct 01, 2017 - 04:09 PM (IST)

नई दिल्लीः 1993 मुंबई ब्लास्ट का दोषी याकूब मेमन और मुंबई में 26/11 हमलों का दोषी अजमल आमिर कसाब को मीरन सी बोरवंकर के सामने फांसी दी गई थी। मीरन देश की इकलौती महिला आईपीएस ऑफिसर रहीं जिनके सामने दोनों आतंकियों को फांसी पर चढ़ाया गया। वे शनिवार को पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर हो गईं। आईपीएस मीरन ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए इंटरव्यू में कहा है कि जब उनसे सरकार ने इन दोनों की फांसी को सुपरवाइज करने के बारे में पूछा तो उन्होंने इसलिए न नहीं कहा क्योंकि इससे यह माना जाता कि महिला होने की वजह से उन्होंने ऐसा किया।

कसाब और याकूब की फांसी में अंतर
मीरन ने बताया कि कसाब और याकूब को फांसी देने के मामले में अंतर था। "कसाब को फांसी के मामले में कई एजेंसियां शामिल थीं और इसमें गोपनीयता प्राथमिकता थी, जबकि याकूब के मामले को पूरा देश देख रहा था।" उन्होंने बताया कि कसाब मुंबई की आर्थर रोड जेल में आईटीबीपी की हिरासत में था और उसे फांसी देने के लिए पुणे ले जाया गया था। कसाब को ले जाने वाली टीम को 36 घंटे तक एक जगह रखा गया और उनसे फोन ले लिए गए ताकि बाहर कोई बात न जाए लेकिन पता नहीं कैसे एक मीडियाकर्मी को कसाब के मुंबई से निकलने की खबर पता चल गई। ख़बर मीडिया को पुख्ता तौर पर पता नहीं चल पाई।

डरा हुआ था कसाब
कसाब के आख़िरी पलों के बारे में बात करते हुए मीरन ने बताया कि वह डरा हुआ था लेकिन उसे मालूम नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है। 21 नवंबर की सुबह हम उसे फांसी के लिए लेकर गए। नियमों के अनुसार डॉक्टरों, मजिस्ट्रेट और पुणे कलेक्टर फांसी के समय वहां मौजूद थे। कसाब को फांसी लगाने के बाद हमने उसके धर्म के हिसाब से उसका अंतिम संस्कार किया। जब मीरन से पूछा गया कि क्या किसी ने कसाब की बॉडी का दावा किया था तो उन्होंने इससे इनकार किया। पाकिस्तान ने भी उसको अपना नागरिक मानने से इंकार कर दिया था।

जब याकूब ने कहा मुझे कुछ नहीं होगा
मीरन के मुताबिक वह याकूब से पहले भी दो-तीन बार पहले मिल चुकी थीं, लेकिन जब वह उसे फांसी देने के लिए नागपुर सेंट्रल जेल पहुंची तो याकूब ने कहा था, "मैडम फिक्र मत करो, कुछ नहीं होने वाला है। मुझे कुछ नहीं होगा।" 

चुनौतीपूर्ण थी दोनों की फांसी
मीरन के मुताबिक 36 साल के कैरियर में 2012 में कसाब और 2015 में मेनन की फांसी चुनौतीपूर्ण थी। जिस दिन कसाब को फांसी दी जानी थी उस दिन राकेश और आर.आर पाटिल सर ने मुझे फोन किया था जिसके बाद मैंने यरवदा जेल जाने का फैसला लिया। मैं अपनी गाड़ी नहीं ले सकती थी क्योंकि मीडिया को भनक हो जाती इसलिए मैं अपने गनर के साथ उसकी मोटरसाइिल पर बैठकर जेल पहुंची। एसपी और डीआईजी भी बिना सरकारी गाड़ी के जेल पहुंचे और हम सभी ने वो रात जेल में ही बिताई। हमने कसाब को बेहोश करके क्राइम ब्रांच टीम को सौंपा गया था। मीरन ने बताया कि दोनों का अंतिम संस्कार उनके धर्म के हिसाब से किया गया था।

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