कर्नाटक चुनाव में पाटिलों की बहार

Tuesday, May 08, 2018 - 10:53 AM (IST)

नई दिल्ली: उत्तर कर्नाटक में ‘पाटिल फैक्टर’ चुनावों में हमेशा से अहम किरदार निभाता रहा है और इस बार तो पाटिलों की बहार की कह सकते हैं। उत्तर कर्नाटक में 50 से ’यादा पाटिल उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। वहीं सिर्फ विजयपुरा जिले में 12 पाटिल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, ये अलग-अलग राजनीतिक दलों या फिर निर्दलीय रूप से चुनाव में उतरे हैं। इस चुनाव में नहीं, विजयपुरा जिले में पहले भी पाटिल उम्मीदवारों की संख्या सर्वाधिक रही है। 2008 के विधानसभा चुनाव में 17 पाटिल चुनाव मैदान में थे, वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में 15 पाटिल उम्मीदवार थे।

 इस जिले की खासियत है कि ग्राम पंचायत, ताल्लुका से लेकर जिला पंचायत तक में पाटिल जनप्रतिनिधि हैं। पाटिलों उम्मीदवारों के समान नामों की वजह से मतदाताओं के बीच भ्रम की स्थिति भी पैदा होती है, पर इसका रास्ता उम्मीदवारों ने यह निकाला है कि वे अपने नाम के साथ गांव का नाम भी जोड़ लेते हैं। स्थानीय पत्रकार गोपाल नाइक का कहना है कि उत्तर कर्नाटक में उपनाम की समानता आम बात है। वह कहते हैं, पहले आर्थिक रूप से संपन्न, जमींदार या इलाके के प्रमुख अपने नाम के साथ पाटिल जोड़ते थे।

उनका कहना है, ‘धन और नेतृत्व ये दो ऐसे तथ्य ऐसे हैं, जिनके बल पर वे दशकों से अपना दबदबा बनाए हुए हैं। आजादी के बाद से ही हर चुनाव में वे अहम भूमिका निभाते रहे हैं।’ ’यादातर पाटिल लिंगायत हैं, पर दूसरी जातियों मसलन, ब्राह्मण भी यहां अपने नाम के साथ पाटिल लगाते हैं। यहां तक कि मुस्लिम भी नाम में पाटिल जोड़ते हैं। गोपाल नाइक के मुताबिक, पाटिलों के पास पर्याप्त संसाधन रहे हैं, जिनसे वे मतदाताओं को प्रभावित करते हैं, ऐसे में दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में पाटिलों का चुनाव जीतना आसान रहा है।
 

Anil dev

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