फिर उसी मोड़ पर येदियुरप्पा
Friday, May 18, 2018 - 03:22 PM (IST)
नेशनल डेस्क (संजीव शर्मा ): कर्नाटक के मुख्यमंत्री बूकनाकेरे सिद्धालिंगप्पा येदियुरप्पा जिन्हें चाहने वाले येदि के नाम से भी बुलाते हैं, एकबार फिर से उसी मोड़ पर खड़े हैं जहां वे अपने पिछले कार्यकालों के दौरान थे। कर्नाटक के नाटक के ताजा घटनाक्रम में उन्हें शनिवार शाम तक बहुमत साबित करना है।
अदालत के ताजा फैसले ने पलट कर रख दिए समीकरण
आदेश कर्नाटक मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की खंडपीठ ने दिया है। हालांकि राज्यपाल वुजुवाला ने उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया था ,बावजूद इसके कि येदियुरप्पा ने महज सात दिन ही मांगे थे, लेकिन अदालत के ताजा फैसले ने समीकरण पलट कर रख दिए हैं। उनके पास 104 विधायक हैं। चूंकि दो सीटों पर चुनाव नहीं हुआ था इसलिए उनको बहुमत साबित करने के लिए 112 विधायक चाहियें। यानी अभी 8 कम हैं। ये 8 कहां से और कैसे आएंगे इसपर देश दुदुनिया की नजर है। शनिवार शाम तक यह साफ भी हो जाएगा। लेकिन इस बहाने येदियुरप्पा के पिछले कार्यकाल स्मरण हो उठे हैं।
2007 में भी येदियुरप्पा बने थे CM
वर्ष 2007 में भी येदियुरप्पा मुख्यमंत्री बने थे। तब उन्हें इन्हीं कुमारस्वामी ने समर्थन दिया था जो अब कांग्रेस के समर्थन से खुद सी एम बनना चाह रहे हैं, लेकिन वो दोस्ती हफ्ता भर भी नहीं चली और सात दिन बाद ही येदियुरप्पा की सरकार गिर गई थी। कुमार स्वामी ने समर्थन वापस ले लिया था। यानी येदियुरप्पा महज सात दिन के सी एम् साबित हुए। बाद में जब 2008 में दोबारा चुनाव हुआ तो बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी। लेकिन पूर्ण पहुंत तब भी नहीं मिला था, लेकिन इसबार दूध का जला छाछ को भी फूंक मार कर चल रहा था। तब बीजेपी के पास 110 सीटें थीं। यानी उसे बहुमत के लिए तीन लोग चाहिए थे। विपक्ष एकबार फिर से उनकी सरकार गिरने के इंतज़ार में था। लेकिन येदियुरप्पा ने अतीत से सबक लेते हुए कमाल की जुगत लगाकर कर्नाटक में कमल खिला दिया। उन्होंने कांग्रेस के दो और जीडीएस के चार विधायकों को पटा लिया।
जेल में गए थे येदियुरप्पा
दलबदल कानून में ये लोग न फंसें इसके लिए उन सबसे इस्तीफे दिलाए गए। संख्या कम हुई तो बहुमत साबित हो गया। बाद में उन सबको उन्हीं जगहों पर उपचुनाव में बीजेपी की टिकट दी गई। सात में से पांच लोग दोबारा चुनकर आऐ। इस तरह बीजेपी 110 से 115 पहुंच गई। उसने राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार बना ली, लेकिन येदियुरप्पा की किस्मत खराब निकली। उनकी सरकार पर जबरदस्त भ्रष्टाचार के आरोप लगे। लोकायुक्त ने येदियुरप्पा को उसमे दोषी करार दिया। नतीजतन येदियुरप्पा को तीन साल दो माह बाद ही न सिर्फ पद छोडऩा पड़ा बल्कि जेल भी हुई। कुलमिलाकर मिसरा यह कि येदियुरप्पा दूसरी बार भी कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। अबके वे कॉन्फिडेंट लग रहे थे। उन्होंने न सिर्फ चुनतीजों से पहले ही 17 मई को शपथ की तारिख घोषित कर दी थी बल्कि बाद में राज्यपाल से सात दिन में बहुमत साबित करने का भी लिखित दावा किया था। लेकिन हालात ने सुप्रीम के फैसले के बाद पलटी मार दी है। अब देखना यह है कि क्या येदियुरप्पा इस चुनौती से पार पा सकेंगे और क्या इसबार कार्यकाल पूरा कर पाएंगे।