कंधार प्लेन हाईजैक की कहानी:  21 साल पहले वाजपेयी सरकार समेत अटक गई थी पूरे देश की सांसे

Thursday, Dec 24, 2020 - 10:41 AM (IST)

नेशनल डेस्क: 21 साल पहले आज ही के दिन पूरा देश एक प्लेन हाईजैक की घटना से थर्रा गया था। जिन लोगों ने इसको करीब से देखा उनके दर्द को शब्‍दों में बयां करना नामुमकिन है। 24 दिसंबर 1999 को नेपाल के त्रिभुवन एयरपोर्ट से इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 ने उड़ान तो दिल्ली के लिए भरी थी लेकिन आतंकवादी फ्लाईट को हाईजैक करके कंधार ले गए, जोकि आगे चलकर कंधार कांड कहलाया। इस हरकत काे अंजाम उल मुजाहिद्दीन के आतंकियों ने दिया था, जिन्होंने अपहृत यात्रियों के बदले में भारतीय जेल में बंद अपने 5 साथियों की रिहाई और बड़ी रकम की मांग की थी। 

तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह को खुद कंधार जाकर जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद को छोड़ना पड़ा था। इसका खामियाजा वाजपेयी सरकार को दो साल बाद भुगतना पड़ा जब 13 दिसंबर 2001 को जैश-ए -मोहम्मद ने संसद भवन पर हमला किया जिसमें 8 सुरक्षा कर्मियों को अपनी जान गवानी पड़ी।  21 साल पूरे होने पर जानते हैं  कंधार कांड की पूरी कहानी:-

 

अमृतसर, लाहौर, दुबई के रास्‍ते पहुंचे कंधार 
इस विमान में 180 यात्री और 15 क्रू मैंबर सवार थे। आतंकियों ने IC-814 विमान को शाम करीब साढ़े पांच बजे हाईजैक किया था। शाम 6 बजे विमान अमृतसर में थोड़ी देर के लिए रुकता है। पाकिस्तान की सरकार के इजाजत के बिना ये विमान रात 8 बजकर 7 मिनट पर लाहौर में लैंड करता है। लाहौर से दुबई के रास्ते होते हुए इंडियन एयरलाइंस का यह हाइजैक विमान अगले दिन सुबह तकरीबन साढ़े 8 बजे अफगानिस्तान में कंधार की जमीन पर लैंड करता है। उस दौरान कंधार पर तालिबान की हुकूमत थी।

27 यात्री किए रिहा 
उस दौरान आतंकियों ने दुबई में 176 यात्रियों में से 27 यात्री रिहा किए थे, इनमें ज़्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। रूपिन कात्याल नाम के एक यात्री को चाकू से बुरी तरह गोदकर मार डाला था जबकि कई अन्य को घायल कर दिया था। आतंकी अपने तीन खूंखार साथियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुस्ताक अहमद जर्गर की  रिहाई चाहते थे। इसके चलते उन्होंने भारत सरकार से 36 चरमपंथी साथियों के साथ 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी। 


विमान चालक दल ने दिखाई थी सूझबूझ
उस वक्‍त इस विमान को चलाने वाले चालक दल के सदस्‍यों ने काफी सूझबूझ दिखाते हुए विमान में तत्‍काल इसके हाईजैक होने की घोषणा कर दी थी। इसके अलावा उन्‍होंने विमान की गति को भी काफी धीमा कर दिया था, ताकि भारत सरकार कोई सही फैसला ले सके। विमान चालक आतंकियों को इस बात को मनाने में भी सफल हो गए थे कि इस विमान में ईंधन काफी कम है और वह केवल दिल्‍ली या अमृतसर ही जा सकता है। 


आतंकियों पर काबू पाने का मौका गंवा दिया
उस वक्‍त सरकार की एक चूक ने सारा मामला खराब कर दिया। इस पूरे ऑपरेशन की कमान संभालने वाले पूर्व रॉ चीफ एएस दुलत ने अपनी एक किताब में 'कश्मीर: द वाजपेयी ईयर्स' में कंधार कांड का विस्‍तार से जिक्र किया है। इसका खुलासा करते हुए पूर्व रॉ चीफ ने लिखा कि 24 दिसंबर, 1999 को जब विमान अमृतसर में उतरा तो केंद्र सरकार और पंजाब सरकार कोई फैसला नहीं कर पाईं। नतीजा यह हुआ कि 5 घंटों तक आपदा प्रबंधन समूह (सीएमजी) की मीटिंग होती रही और प्लेन अमृतसर से उड़ गया और इस तरह आतंकियों पर काबू पाने का मौका देश ने गंवा दिया।


मजबूरन वाजपेयी सरकार को माननी पड़ी मांग
ठीक आठ दिन के बाद साल के आख़िरी दिन यानी 31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया। ये ड्रामा उस वक्त ख़त्म हुआ जब वाजपेयी सरकार भारतीय जेलों में बंद कुछ चरमपंथियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गई। तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह ख़ुद तीन चरमपंथियों अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए चरमपंथियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद ज़रगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे।


 

vasudha

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