कालभैरव जयंती: इस शुभ मुहूर्त में करें पूजा, मिलेगी हर बाधा से मुक्ति

Tuesday, Nov 19, 2019 - 07:52 AM (IST)

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आज 19 नवंबर, मंगलवार मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि है। मध्याह्न में भगवान शिव के अंश से पैदा हुए भैरव बाबा की उत्पत्ति हुई थी इसलिए ये दिन कालभैरव जयन्ती के रुप में मनाया जाता है। बाबा काल भैरव भगवान शिव का पांचवां अवतार माने गए हैं। आज के दिन जो व्यक्ति भगवान शिव के इस रुप की पूजा-अर्चना और व्रत-उपवास करता है, उसके जीवन की हर बाधा समाप्त हो जाती है। भैरव बाबा के दो रुप हैं पहला बटुक भैरव, ये अपने भक्तों को अभय फल प्रदान करते हैं। दूसरा रुप भयंकर दंडनायक का है,  ये आपराधिक प्रवृतियों पर नियंत्रण रखते हैं। जिस घर में हर रोज़ इनकी पूजा होती है, वहां से जादू-टोने और भूत-प्रेत से लेकर सभी प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

शिव पुराण के अनुसार, ''भैरवः पूर्णरूपोहि शंकरस्य परात्मनः। मूढास्तेवै न जानन्ति मोहितारूशिवमायया।'' 

अर्थात- भैरव परमात्मा शंकर के ही रूप हैं लेकिन अज्ञानी मनुष्य शिव की माया से ही मोहित रहते हैं।  

ये है पूजा का शुभ मुहूर्त:
काल भैरव अष्टमी का आरंभ 19 नवंबर को शाम 3 बजकर 35 मिनट से हो जाएगा और 20 नवंबर की दोपहर 1 बजकर 41 मिनट पर समापन होगा।

कालभैरव व्रत की पूजा विधि:
व्रतधारी व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पहले नहा-धोकर भगवान काल भैरव की पूजा करनी चाहिए। 

सारा दिन साधक को मन ही मन 'ओम कालभैरवाय नम:' मंत्र का जाप करना चाहिए।

रात को धूप, दीप, धूप, काले तिल, उड़द और सरसों के तेल का दिया बनाकर सारा परिवार मिलकर भगवान काल भैरव की आरती करे।

बाबा काल भैरव का वाहन कुत्ता है, अत: व्रत खोलने से पहले तेल से बने पकवान अपने हाथ से कुत्ते को खिलाएं। 

आज के दिन जो सच्चे ह्रदय से पूजा करता है, उसके जीवन से भूत, पिचाश, प्रेत और जीवन में आने वाली सभी बाधाएं अपने आप ही दूर हो जाती हैं।

इस मंत्र का कम से कम 1 माला जाप करें: अतिक्रूर महाकाय कल्पान्त दहनोपम्, भैरव नमस्तुभ्यं अनुज्ञा दातुमर्हसि!!

Niyati Bhandari

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