नासा ने रचा इतिहास, 5 साल के लंबे सफर के बाद बृहस्पति की कक्षा में पहुंचा Juno

punjabkesari.in Tuesday, Jul 05, 2016 - 11:53 AM (IST)

नई दिल्ली: पांच साल का सफर तय करने के बाद आज (मंगलवार) को अंतरिक्ष यान जूनो ने बृहस्पति ग्रह की कक्षा में सफलतापूर्वक प्रवेश कर लिया है। इसे अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में ये एक बड़ी कामयाबी मानी जा रही है। बताया जा रहा है कि जूनो बृहस्पति के आसपास ऐसी परिक्रमा कक्षा में स्थान लेगा जो इसे उस ग्रह के ध्रुवों के ऊपर से ले जाया करेगी। इस पर हाइड्रोजन धातु के रूप में मौजूद है।

क्या है जूनो?
-जूनो अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा सौर मंडल के पांचवे ग्रह, बृहस्पति, पर अध्ययन करने के लिए पृथ्वी से 5 अगस्त 2011 को छोड़ा गया एक अंतरिक्ष शोध यान है।

-जूनो यान उस ग्रह की बनावट, चुम्बकीय क्षेत्र और मौसम के बारे में जानकारी बटोरकर पृथ्वी की ओर भेजेगा।

-बृहस्पति एक गैस दानव ग्रह है और जूनो यान यह पता लगाने की कोशिश करेगा कि उस हजारों मील मोटी गैस की परत के नीचे कोई पत्थरीला केंद्र है भी कि नहीं।

-वातावरण में आक्सीजन और हाइड्रोजन की मात्राओं का अध्ययन करके पानी की मात्रा का भी अंदाज़ा लगाने का प्रयास किया जाएगा।

-फरवरी 2018 में, ग्रह की 37 परिक्रमाएं पूरी होने पर इस यान को धीमा कर के बृहस्पति के वायुमंडल में घुसाकर ध्वस्त कर दिया जाएगा।

जूनो बताएगा बृहस्पति ग्रह के राज
जूनो अब बृहस्पति ग्रह के राज बताएगा। वहां के हाल मिशन का उद्देश्य 1 अरब डॉलर से अधिक लागत वाले इस अभियान का उद्देश्य बृहस्पति के विकिरण बेल्ट में प्रवेश करते हुए इस ग्रह का अध्ययन एवं विश्लेषण करना है। जूनो बृहस्पति के कोर का पता लगाने के लिए उसके चुंबकीय और गुरुत्वीय क्षेत्रों का नक्शा खींचेगा। साथ ही यह ग्रह की बनावट, तापमान और बादलों को भी मापेगा और पता लगाएगा कि कैसे इसकी चुंबकीय शक्ति वातावरण को प्रभावित करती है। इसका द्रव्यमान पृथ्वी की तुलना में 300 गुना अधिक है इसलिए इसका गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र अत्यंत प्रबल है। जिसके कारण यह इस पर मौजूद सभी सामग्रियों को धारण किए हुए है। इसके अध्ययन से हमारे सौर तंत्र के विकास के विषय में जानकारी मिल सकती है।

टेनिस कोर्ट जैसा आकार है जूनो का
जूनो टेनिस कोर्ट के आकार जैसा एक अंतरिक्ष यान है। इसका भार लगभग साढ़े तीन टन है। जूनो के सामने चुनौती बृहस्पति ग्रह के भयानक बादलों को घेरे हुए इसके विकिरण बेल्ट में सही दशा-दिशा में बने रहने की है। यह इस मिशन का सबसे खतरनाक प्वाइंट है। इस पोलर ऑर्बिट से सफलतापूर्वक गुजरने के बाद ही इसकी सफलता के प्रति आशान्वित है। उल्लेखनीय है कि इस अभियान से 20 साल पहले 1996 में गेलेलियो मिशन को बृहस्पति ग्रह पर भेजा गया था।


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