एशिया के कई देशों में सूखे की मार

Thursday, May 05, 2016 - 11:33 PM (IST)

भारत के अलावा एशिया प्रशांत के कई देश सूखे की चपेट में आ गए हैं। इसकी वजह अल-नीनो बताया जा रहा है। ताजा खबर कंबोडिया की है। वहांं 100 साल में भयंकर सूखा पड़ा है। बताया जा रहा है कि देश के 100 जिलों में सूखे से 25 लाख लोग प्रभावित हैं। देश में तापमान बढ़ने से इंसान ही नहीं अन्य प्राणी भी प्रभावित हैं। अब तक बड़ी संख्या में मछलियां और गाय-भैंसों ने दम तोड़ दिया है। प्रशांत महासागर में जलधाराओं के गर्म होने से वैश्विक मौसम तंत्र पर असर होता है। इंडोनेशियाई से 80 डिग्री पश्चिमी देशान्तर यानी मैक्सिको और पेरू तट तक, यह क्रिया होती है। इससे अल-नीनो की स्थिति बनती है। सबसे गर्म समुद्री हिस्सा पूरब में खिसक जाता है। समुद्र तल के 8 से 24 किमी ऊपर बहने वाली जेट स्ट्रीम प्रभावित हो जाती है। भारत में भी असर होता है।

इस साल पाकिस्तान में सिंध प्रांत के सूखा ग्रस्त थारपारकर में 200 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। इनमें से ज़्यादतर मौतों का कारण कुपोषण और पानी से जुड़ी बीमारियों को बताया जाता है। वहां के एक एनजीओ, पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ़ लेबर एड्यूकेशन एंड रिसर्च (पीआईएलईआर) के मुताबिक़ सूखे से पौने दो लाख से ज़्यादा परिवार पीड़ित हैं। पाकिस्तान के अलावा दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य देश वियतनाम, थाईलैंड, फ़िलीपींस, लाओस, म्यांमार और मलेशिया भी सूखे की चपेट में हैं।

वियतनाम का मेकांग डेल्टा में चावल की खेती होती है, उसके सूखे की चपेट में आने से क़रीब दस लाख लोग प्रभावित हैं। वर्ष 1926 के बाद से मेकांग नदी के पानी का स्तर सबसे नीचे चला गया है और खारा भी अधिक हो गया है। थाईलैंड में हालत यह है कि वहां के सबसे प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में स्थित होटलों में पानी के बचत का अभियान चलाया गया है। थाई सरकार ने स्थानीय फ़ेस्टिवल के दौरान लोगों से पानी की बचत करने का आग्रह किया। इस फ़ेस्टिवल में बुद्ध की प्रतिमा पर पानी डाला जाता है। सरकार ने आग्रह किया कि वे बाल्टी भर पानी की जगह कटोरी भर पानी डालें। मदद के लिए आगे आया चीन मेकांग नदी में पानी छोड़ रहा है,ताकि कंबोडिया, लाओस, म्यांमार, थाईलैंड और वियतनाम में सूखे का असर कम हो। 

एशिया में सूखे का बड़ा कारण संसाधनों की कमी माना गया है। इसके देशों ने विकास के लिए प्राकृतिक संसाधनों का जमकर दोहन किया है। जिसका दुप्रभाव सामने आ गया है। इस महाद्वीप की ज्यादातर नदियां विभिन्न देशों की सीमाओं को पार कर जाती हैं,जिससे ये देश सीमा पार से आने वाले पानी पर निर्भर हैं। पानी की कमी का दूसरा कारण एशिया में बांधों का अधिक होना माना गया है। इसमें चीन पहले स्थान पर है। उसके यहां पानी के भंडार लबालब भरे रहते हें, बाकी देश संकट झेलते हैं। तीसरा कारएा है,हिमाचल और तिब्बत। यहां से बड़ी-बड़ी नदियां निकल कर आती हैं,लेकिन वन साफ कर दिए जाने से पर्यावरण असंतुलित हो गया है। चौथा कारण,अधिक सिंचाई वाली फसलें है। यदि इन सभी कारणों पर गहन विचार करके बचाव का रास्ता निकाला जाए तो सूखे से निपटा जा सकता है। दिसंबर 2015 में पेरिस में आयोजित जलवायु वार्ता में चिंता व्यक्त की गई ​कि भारत और चीन में कोयले अधिक इस्तेमाल होने से मानसून प्रणाली कमजोर हो गई,इसका परिणाम सूखे की मार है।

कुछ अरसा पहले खबर आई कि अल-नीनो के प्रभाव से म्यांमार में तापमान में तेजी से वृद्धि हुई है। इससे वहां कुएं, तालाब और नदियां सूख गई हैं। देश के 10 क्षेत्रों में पानी की समस्या पैदा हो गई है। मौसम और जल विज्ञान विभाग ने अनुमान जाहिर किया है कि म्यांमार और यंगून के बाहरी इलाकों में मार्च से मई तक दैनिक आधार पर तापमान 47.2 डिग्री सेल्सियस बना रहेगा। इससे फसलों को नुक्सान होने की आशंका है। यहां जीवकोपार्जन कार्यक्रम चला रहे युनाइटेड चर्च ऑफ क्राइस्ट (यूसीसी) के अनुसार, 54 हजार किलोमीटर क्षेत्र में फैले ''शुष्क जोन'' में करीब एक हजार परिवारों को जनवरी महीने के मध्य से ही पानी के संकट से जूझना पड़ रहा है। इस शुष्क क्षेत्र में म्यांमार के मागवे, मंडालय और निचले सैगेइंग के इलाके शामिल हैं। यंगून के बाहरी हिस्से में स्थित शहरों में रहने वाले लोग भी पानी संकट से जूझ रहे हैं और बाहर से पानी ले रहे हैं। 

म्यांमार के शुष्क क्षेत्र में करीब 5.8 करोड़ लोग रहते हैं। वे खेती पर निर्भर हैं। 2016 में वर्षा कम होने के कारण इनकी तिल, मटर और सेम की फसलें काफी प्रभावित हुई हैं। पिछले साल एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अल-नीनो के प्रभाव से तापमान में अत्यधिक वृद्धि होने से 21 अरब डॉलर का नुकसान हुआ था। सूखे से किसान सबसे अधिक प्रभावित होता है,इससे समूची अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है।

 
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