जामिया की 22 वर्षीय छात्रा चला रही कैब, कर रही भविष्यनिधि का निर्माण

Wednesday, Aug 24, 2016 - 08:35 PM (IST)

नई दिल्ली: मंजिल उन्ही को मिलती है, जिनके हौसलों से उड़ान होती है... इस कहावत को सच्चाई में बदल रही हैं दिल्ली जामिया मालिया इस्लामिया में बीए में पढऩे वाली जमरूद परवीन। जमरूद परवीन दिल्ली में एक कैब ड्राइवर हैं। परिवार की आर्थिक स्थिती ठीक न होने के कारण उन्होंने यह कदम उठाया। परवीन उस शहर में टैक्सी ड्राइवर है जहां बेटियां असुरक्षित हैं। ऐसे में परवीन का यह कार्य काबिल-ए-तारीफ है। परवीन के इस हौसले की गाथा पढि़ए जमरूद परवीन की जुबानी।
 
मैं 13 साल पहले अपने परिवार के साथ दिल्ली आई थी। जब मैं केवल 9 वर्ष की थी। यह मेरे अब्बू का निर्णय था कि हम उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव को छोड़कर अपने परिवार के साथ दिल्ली रहें। ताकि अन्य की भांति हमें भी रोजगार के अच्छे अवसर मिलें।  मैं अपने पिताजी को धन्यवाद करती हूं, मैंने जामिया मालिया इस्लामिया में 9वीं कक्षा में प्रवेश लिया और वहां 12 वीं तक पढ़ी। मैं जानती थी कि मुझे आगे और आगे पढऩा है। लेकि न घर की अर्थिक स्थिती ठीक ने होने के चलते घर से धन मिलना आसान नहीं था। 
 
यह मेरी अम्मी का सपना था कि वह खुद ड्राइविंग करें। हमें पता चला कि आजाद फाउंडेशन एक एनजीओ है, जो वंचित महिलाओं को ड्राइविंग सिखाता है। तब अम्मी ने कहा कि मैं हमेशा से ड्राइविंग करना चाहती थी, लेकिन अब मैं चाहती हूं कि तुम ड्राइविंग सीखो। एक हमेशा दूसरे का नेतृत्व करता है, वही हुआ, हम आजाद फाउंडेशन गए, दोनों ने वहां एक साथ छह माह तक ड्राइविंग सीखी। मैं 18 वर्ष की हुई तो मेरा ड्राइविंग लाइसेंस बन गया। 
 
अब वो समय दूर नहीं था कि जब मैं ड्राइविंग करूं। मुझे एक प्राइवेट कंपनी मैं काम शुरू कर दिया, जहां मैंने तीन साल लगातार काम किया, और अब एक साल से उबर कैब में काम कर रही हूं। अल्लाह मेहरबान रहा- और माता पिता ने मेरा खूब समर्थन किया। मेरे तीन छोटे भाई बहन भी हैं जो माता पिता की देखरेख में हैं, जहां तक का समर्थन संभव है उन्होंने किया, जिससे मेरे आत्मविश्वास की कड़ी मजबूत होती है।
 
ड्राइविंग ने जो मुझे तोहफा दिया है वह है शिक्षा- अब मैं बीए 3rd year (जामिया मालिया इस्लामिया) में हूं। कार्य की इन पंक्तियों का मैं हमेशा धन्यवाद करती हूं कि- इस काम में मुझे पढ़ाई के लिए पर्याप्त धन और पर्याप्त समय मिला, जो मेरे अजीविका और पढ़ाई के लिए काफी था।
 
हरेक को लगता था कि एक सोचता है कि लड़की होने के नाते दिल्ली जैसे शहर में ऐसे समय में ड्राइविंग करना जहां लड़की सुरक्षित नहीं हैं, कुछ अजीब है। लेकिन ईमानदारी से, ऐसा कुछ नहीं था, मेरे लिए ये चार साल बुहत अच्छे रहे। असल में, लोग मुझसे पूछते थे कि मैं कितने वर्ष की हूं और जीवन के लिए क्या कर रही हूं, तो ड्राइविंग के अंतिम क्षण तक वे मेरे लिए दुआ करते थे। इस शहर के बारे में सुरक्षा  को लेकर कुछ पुर्वाग्रह हैं लेकिन पुर्वाग्रह को भूलकर हम अपनी भविष्यनिधि का निर्माण करें तो यह काफी बेहतर है।
 
दस साल में मैं अपने आपको जामिया मालिया इस्लामिया में प्रोफसर देखना चाहती हूं। 
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