सेना को मिला इसरो का साथ, अब दुश्मन की हर हरकत पर रहेगी पैनी नजर
punjabkesari.in Saturday, May 10, 2025 - 05:23 PM (IST)

नेशनल डेस्क. भारत ने पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमले किए। उनमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की एक महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसरो के सैटेलाइट नेटवर्क से मिले सटीक इनपुट की मदद से भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तान के सैन्य राडार सिस्टम को नष्ट करने और उनके ड्रोन व मिसाइल हमलों को नाकाम करने में सफलता हासिल की।
इसरो के सैटेलाइट से कैसे मदद मिली?
भारतीय सेनाओं को आतंकियों के ठिकानों की सही पहचान करने, हमलों के लिए लक्ष्य तय करने और पाकिस्तान की सेना के ठिकाने, हथियार, सैनिकों की आवाजाही, राडार स्टेशन और उनकी इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों जैसी हर संवेदनशील हरकत पर नज़र रखने और खुफिया जानकारी जुटाने में इसरो का सैटेलाइट नेटवर्क बहुत मददगार साबित हो रहा है। इस समय इसरो के कम से कम 7 सैटेलाइट ऐसी संवेदनशील और खुफिया जानकारी जुटा रहे हैं।
इन 7 सैटेलाइट की खासियतें
इसरो के 7 निगरानी उपग्रह सेनाओं को बहुत अच्छी क्वालिटी की तस्वीरें दे रहे हैं। कार्टोसैट जैसे सैटेलाइट से 0.35 मीटर तक की बहुत हाई रिज़ॉल्यूशन वाली इमेज मिल सकती है। इससे पाकिस्तान के आतंकी लॉन्च पैड, सैन्य ठिकानों की सही जगह और उनकी मूवमेंट की साफ तस्वीरें मिल पाई हैं। अच्छी रोशनी में ये सैटेलाइट सीमावर्ती इलाकों की रियल टाइम तस्वीरें और वीडियो भी भेज सकते हैं।
आरआईसैट-2वी (राडार इमेजिंग सैटेलाइट): यह सैटेलाइट बादलों, रात के अंधेरे और धूल भरे मौसम में भी निगरानी कर सकता है। इसमें सिंथेटिक अपर्चर राडार तकनीक है। यह भारतीय तटों के पास समुद्र में आने वाले किसी भी संदिग्ध जहाज को ट्रैक कर सकता है, जो नौसेना के लिए बहुत उपयोगी है।
आरआईसैट-बीआर1: यह भी सिंथेटिक अपर्चर राडार पर आधारित सैटेलाइट है। इसने पाकिस्तान की छिपी हुई गतिविधियों की जानकारी दी और लक्ष्यों की पुष्टि करने में मदद की। यह इतना शक्तिशाली है कि सिर्फ 35 सेंटीमीटर की दूरी पर रखी दो चीजों को भी पहचान सकता है।
कार्टोसैट-3: यह भारत के रिमोट सेंसिंग प्रोग्राम का हिस्सा है। इसमें थर्मल इमेजिंग की क्षमता है और यह 25 सेंटीमीटर तक की छोटी वस्तुओं की भी हाई रिज़ॉल्यूशन इमेज ले सकता है। यह मिशन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
इमिसैट: इसे डीआरडीओ ने 'कौटिल्य प्रोजेक्ट' के तहत 8 साल में बनाया है। यह सीमा पार दुश्मन के राडार के इलेक्ट्रॉनिक संकेतों को पकड़ सकता है और 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगाता है। इमिसैट से इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस मिली, जिससे पाकिस्तान के राडार स्टेशनों, संचार सिग्नलों और इलेक्ट्रॉनिक गतिविधियों को ट्रैक किया जा सका। इससे यह भी पता चला कि कहां कौन से सैन्य उपकरण चालू किए जा रहे हैं। पाकिस्तान के राडार सिस्टम को खत्म करने में इसकी बड़ी भूमिका रही।
जीसैट-7 (जियो स्टेशनरी सैटेलाइट): यह सैटेलाइट भारतीय सेना और तट रक्षक बल के संचार के लिए उपलब्ध है। यह पूरे महासागर क्षेत्र में रियल टाइम कम्युनिकेशन कर सकता है और एक साथ 60 जहाजों और 75 विमानों से जुड़ सकता है। इससे सेना के कमांड और यूनिट्स के बीच सुरक्षित संचार बनाए रखने में मदद मिल रही है। नौसेना इसका इस्तेमाल समुद्री निगरानी में करती है। वायुसेना और थलसेना इसका इस्तेमाल ड्रोन और एयरबॉर्न अर्ली वार्निंग एंड कमांड सिस्टम को चलाने में भी कर रही हैं। पाकिस्तान से आने वाली किसी भी चीज को ट्रैक करने में यह मदद करता है।
जीसैट-7ए (एंग्री बर्ड): इस सैटेलाइट की क्षमता का 30% भारतीय सेना और वायुसेना के लिए है। इसने वायुसेना के सभी विमानों, एयरबॉर्न अर्ली वार्निंग कंट्रोल सिस्टम और ड्रोन को आपस में और जमीनी स्टेशनों से जोड़ने की क्षमता दी है। इससे वायुसेना को नेटवर्क-आधारित युद्ध क्षमता मिली है।
52 नए सैटेलाइट लॉन्च होंगे
अब भारत अपनी अंतरिक्ष आधारित निगरानी क्षमता को और बढ़ाने के लिए एक या दो नहीं, बल्कि 52 सैटेलाइट का एक समूह लॉन्च करने की योजना बना रहा है। इसरो के चेयरमैन के अनुसार, ये सभी सैटेलाइट अगले पांच साल में लॉन्च किए जाएंगे। इस काम को समय पर पूरा करने के लिए, 52 में से आधे उपग्रह निजी क्षेत्र विकसित करेगा और आधे इसरो खुद बनाएगा।