चीन को रोकेंगे हमारे लौह यौद्धा

Tuesday, Jul 19, 2016 - 05:57 PM (IST)

इलाका लद्दाख बॉर्डर। तापमान माइनस 45 डिग्री। जिसे सुनते ही ठंड के आतंक से शरीर सुन्न हो जाए। भारतीय सीमा में घुसपैठ रोकने के लिए ड्यूटी पर तैनात हैं टीपू सुल्तान, महाराणा प्रताप और औरंगजेब। भारतीय इतिहास में चर्चित इन नामों को पढ़ कर चौकना स्वाभाविक है। भारत-चीन की सीमा पर यही यौद्धा तैनात हैं। ये कोई सैनिक नहींं, बल्कि भारत के टैंक हैं। 

विशेष ईंधन पीते हैं

भारतीय सीमा में चीन की घुसपैठ को रोकने के लिए इन 100 टैंकों की इस इलाके में तैनाती की गई है। इस तापमान में इन टैंकों को चलाने के लिए इनमें विशेष ईंधन डाला जाता है। यहां के ऊंचे पहाड़ और घाटियों को आसानी से रौंदते हुए हमारे ये वीर आगे बढ़ जाते है। 
 
बाज नहीं आ रहा चीन
इन टैंकों की मौजूदगी से चीन आसानी से घुसपैठ नहीं कर पाएगा। भारत के इस हिस्से पर अपना हक जमाने की जोर जबरदस्ती नहीं कर पाएगा। तीन साल पहले चीन लद्दाख में घुसपैठ के प्रयास कर चुका है। अप्रैल 2013 में उसकी पीपल्स लिबरेशन आर्मी ने तंबू लगा लिए थे। दोनों देशों में इससे गतिरोध बना रहा था। 

चाल नाकामयाब
बताया जाता है कि ओल्ड पैट्रोल प्वाइंट भारतीय सेना द्वारा स्थापित अंतिम अड्डा है। चीनी सेना ने सुरक्षा बलों को यहां से हटाने का प्रयास किया। लेकिन उसकी यह चाल कामयाब नहीं हो पाईं। भारतीय सेना ने इस मौके पर होशियारी दिखाई। उसने चीनी भाषा में लिखे बैनर उसे दिखाए और वहां से उसे लौटने को मजबूर कर दिया। अगस्त 2014 में भी चीनी सैनिक लद्दाख के बुर्तसे क्षेत्र में भारतीय बॉर्डर में 25 किलोमीटर अंदर घुस गए थे। बाद में चले गए थे। भारत और चीन के बीच 4 हजार किलोमीटर का इलाका विवादित है। चीन इसे 2 हजार किलोमीटर ही बताता है। कई बार बातचीत के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकला है।

भारत की गलती
भारतीय क्षेत्रों में पाकिस्तान और चीन के सैन्य हस्तक्षेप को रोकने के लिए हमारी सरकार द्वारा प्रभावशाली कदम उठाने की कभी कोशिश ही नहीं की गई। भारतीय को ही बार-बार घुटने टेकने के लिए मजबूर होना पड़ा। वर्ष 2009 में लद्दाख के दमचोक में भारत की ओर से बनाई जा रही सड़क पर जब चीन ने आपत्ति जताने लगा तो सरकार ने इसका निर्माण ही रुकवा दिया। जुलाई 2009 को चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में लगभग दो किलोमीटर अंदर घुसकर पहाड़ी चट्टानों पर 'चाईना-9' लिख दिया तब भी भारत सरकार चुप ही रही। 

विस्तारवादी मंसूबे
भारत ने 1950 में तिब्बत पर चीन के कब्जे का विरोध न करके जो भयंकर भूल की थी उसने चीन के विस्तारवादी मंसूबे मजबूत होते गए। बताया जाता है कि देश भर में फैल रहा माओवादी आतंक भी चीन की रणनीति का हिस्सा है। चीन की नजरें भारत के पंजाब, राजस्थान और गुजरात पर भी  हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान के जैसलमेर से लेकर गुजरात में कच्छ के रण तक के लंबे-चौड़े राजस्थानी क्षेत्र में गैस और तेल के भूमिगत भंडार मौजूद हैं। 

कोई हल नहीं निकल पाया
भारत-चीन के बीच आर्थिक संबंधों के बावजूद वास्तविक नियंत्रण रेखा का पिछले 50 वर्षों से कोई तार्किक हल नहीं खोजा जा सका है। चीन की तरफ से कई बार इसका उल्लंघन करने से दोनों देशों के बीच अविश्वास की खाई को और चौड़ा हो रही है। लद्दाख में घुसपैठ की चीनी हिमाकत के चलते इस पर गंभीर मंत्रणा होनी चाहिए।

लद्दाख का परिचय
यह उत्तरी नेपाल के जम्मू और कश्मीर राज्य में एक धरातल है, जो उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। लद्दाख का क्षेत्रफल 97,776 वर्ग किमी है। उत्तर में चीन तथा पूर्व में तिब्बत की सीमाएं हैं। यहां की जलवायु अत्यंत शुष्क व कठोर है। यहां नदियां दिन में कुछ ही देर तक प्रवाहित हो पाती हैं, फिर उनमें बर्फ जम जाती है। सिंधु मुख्य नदी है। जिले की राजधानी और प्रमुख नगर लेह है। लद्दाख की जनसंख्या की प्रकृति, संस्कार और रहन-सहन तिब्बत व नेपाल से प्रभावित है। 
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