रॉ के पूर्व चीफ बोले, कारगिल युद्ध से पहले आडवाणी को दी थी खुफिया जानकारी

Sunday, Dec 09, 2018 - 02:01 PM (IST)

नेशनल डेस्कः रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दौलत ने सैन्य साहित्य उत्सव में शनिवार को चंडीगढ़ में कहा कि 1999 में करगिल संघर्ष से पहले करगिल की चोटियों पर घुसपैठ की खुफिया रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंपी गई थी। पंजाब सरकार की ओर से एक बयान में कहा गया है कि ‘विस्डम ऑफ स्पाइज’ (जासूसी का ज्ञान) विषय पर चर्चा के दौरान दौलत ने कहा कि जंग से पहले सेना द्वारा इकट्ठा की गई जानकारी के साथ खुफिया रिपोर्ट को केंद्र के साथ साझा किया गया था। दौलत संघर्ष के वक्त खुफिया ब्यूरो में थे। उन्होंने कहा कि अहम जानकारियां तत्कालीन गृह मंत्री एल के आडवाणी के साथ साझा की गई थीं, उस वक्त वह देश के उप-प्रधानमंत्री थे।

बयान में बताया गया इससे पहले, ले. जनरल (सेवानिवृत्त) कमल डावर ने तीनों रक्षा इकाइयों को एकीकृत कमान में रखने की अहमियत को रेखांकित किया। खुफिया मामलों में एनएसए के दखल को लेकर आगाह करते हुए डावर ने कहा कि सूचनाएं होना एक चीज है और सभी उपलब्ध जानकारियों पर कार्रवाई करना दूसरी चीज है। ले. जनरल (सेवानिवृत्त) संजीव के लोंगर ने सामूहिक एकीकृत कमान के मुद्दे पर अलग विचार रखते हुए कहा कि भारत जैसे देश में हमें विभिन्न प्रमुखों की जरूरत हैं जो साथ आकर एक अहम फैसले में योगदान दें।

स्वदेशी सूचना उपकरणों का विकास हो
रक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि जंग के मैदान में दुश्मन के खिलाफ बढ़त बनाने के लिए देश में युद्ध संबंधी और स्वदेशी सूचना उपकरणों का विकास हो। सैन्य साहित्य महोत्सव में यहां ‘इनफॉर्मेशन वारफेयर- द न्यू फेस ऑफ वार’ विषय पर चर्चा में भाग लेते हुए लेफ्टिनेंट जनरल (से.नि.) विजय ओबेराय ने कहा कि जंग के मैदान में मजबूती के बावजूद भारत अन्य देशों से आयातित सूचना तकनीकों पर निर्भर है जो बहुत घातक हो सकता है। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि जीपीआरएस तकनीक अमेरिका की है जिसने करगिल युद्ध के दौरान उम्मीद के मुताबिक काम नहीं किया। ओबेराय ने कहा कि ऐसे समय जब सभी प्रकार के हथियारों को कम्प्यूटर द्वारा संभाला जा रहा है, यह सही नहीं है कि हम अब भी दूसरों के द्वारा बनाए गए उपकरणों के भरोसे बैठें।

Seema Sharma

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