November 20, 2016: सोते रहे यात्री, टूट गया कोच: इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे में 150 की मौत!

punjabkesari.in Thursday, Nov 20, 2025 - 01:23 PM (IST)

नई दिल्ली: आज 20 नवंबर पर हम 2016 के दर्दनाक रेल हादसे को याद कर रहे हैं, जब इंदौर से पटना जा रही ट्रेन 19321, यानी इंदौर-पटना एक्सप्रेस, कानपुर देहात के पुखरायां में डिरेल हो गई थी। इस भयानक हादसे में 150 से अधिक लोगों की मौत हुई थी और कई घायल हुए थे।

बता दें कि मध्य प्रदेश के इंदौर से पटना जा रही ट्रेन 19321, जिसे आमतौर पर इंदौर-पटना एक्सप्रेस कहा जाता है, आज ही के दिन 20 नवंबर 2016 में  रात को कानपुर देहात के पुखरायां इलाके में भयावह हादसे का शिकार हो गई। हादसे की वजह से 150 से ज्यादा लोगों की मौत हुई और दर्जनों लोग गंभीर रूप से घायल हुए। रात लगभग 3 बजे की घटना थी। ट्रेन झांसी-कानपुर लाइन पर मलासा और पुखरायां के बीच अपनी तेज गति 106 किमी/घंटा में दौड़ रही थी। तभी AC-1 स्लीपर कोच की वेल्डिंग टूटकर पटरी पर गिर गई थी। कमजोर वेल्डिंग और जंग ने हादसे को न्योता दिया। गिरे हुए टुकड़े ने पटरी को बाधित कर दिया, जिससे ट्रेन की एस-1 और एस-2 बोगियां पटरी से उतर गईं थी।

हादसे के झटके इतने जोरदार थे कि ट्रेन की बोगियां एक-दूसरे से टकरा गईं, कई यात्री ऊपर की ओर उछलकर कोच की छत से टकराए और नीचे गिर गए थे। सबसे अधिक मौतें और चोटें एस-1 और एस-2 कोच में हुईं, जहां यात्री सोए हुए थे और कंबल या चादर में ढके हुए थे।

रेस्क्यू ऑपरेशन:
स्थानीय ग्रामीणों ने तुरंत बचाव कार्य शुरू किया, लेकिन कई यात्री मलबे में फंस गए थे। NDRF, स्थानीय पुलिस और मेडिकल टीम ने रातभर रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। भारी मशीनरी का इस्तेमाल कर मलबा हटाया गया और रेल मोबाइल मेडिकल यूनिट्स तैनात की गई थी। हेल्पलाइन नंबर जारी कर यात्रियों के परिजनों को सहायता दी गई थी।

जांच रिपोर्ट:
रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस) की रिपोर्ट (2020) में हादसा मैकेनिकल फेलियर के कारण बताया गया था। एस-1 कोच की पुरानी वेल्डिंग टूटने के कारण पटरी में बाधा आई। ट्रैक फ्रैक्चर की संभावना को खारिज किया गया, क्योंकि हादसे से पहले चार ट्रेनें सुरक्षित गुजरी थीं।

सुरक्षा में सुधार:
भारतीय रेलवे ने हादसों को रोकने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं।

  • ‘कवच’ स्वदेशी एंटी-कोलिजन सिस्टम लागू किया गया है, जो ट्रेन को टकराने, सिग्नल पार करने या खतरनाक गति में अपने आप रोक देता है।

  • ऑटोमैटिक ब्लॉक सिग्नलिंग और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को अपग्रेड किया जा रहा है।

  • लोको पायलटों के लिए एयर-कंडीशनिंग के साथ आरामदायक केबिन और रेस्ट रूम अनिवार्य किए गए हैं।

  • सभी ट्रेनों में ऑटोमैटिक फायर डिटेक्शन और सप्रेशन सिस्टम लगाए जा रहे हैं।

  • ड्रोन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मॉनिटरिंग से पटरी की नियमित जांच शुरू की गई है।

  • पुराने ICF कोचों को सुरक्षित LHB कोचों से बदलने का काम तेजी से चल रहा है, जिससे डिरेलमेंट के समय जान का खतरा काफी कम हो जाता है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर कोचों की वेल्डिंग और मैकेनिकल हिस्सों की नियमित जांच समय पर होती, तो इस तरह के हादसों में काफी कमी आ सकती थी।

 


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Content Editor

Anu Malhotra

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