अमेरिका की व्‍यूह रचना तैयार,  हिंद प्रशांत क्षेत्र में 13 देश एक साथ मिलकर चीन को देंगे मात !

Tuesday, May 31, 2022 - 06:06 PM (IST)

इंटरनेशनल डेस्कः हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव न सिर्फ बल्कि दुनिया के कई देश टेंशन में हैं। हिंद प्रशांत  में चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच टोक्यो में 13 देशों के इंडो-पैसिफिक इकोनमिक फ्रेमवर्क (IPEF) नाम के नए आर्थिक मंच की घोषणा की गई जिसमें अमेरिका, भारत, जापान और आस्ट्रेलिया के अलावा प्रमुख आसियान देश भी शामिल हैं।  अमेरिका के इस कदम पर भड़के चीन ने इसे इकोनमिक नाटो बताया है। इससे पहले वह क्‍वाड को भी एशियाई नाटो कह चुका है। विशेषज्ञों के अनुसार IPEF चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम लगाएगा और भारत की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी

 

 क्‍वाड के बाद IPEF के माध्यम से अमेरिका हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी व्यापारिक और रणनीतिक उपस्थिति को और मजबूत करेगा। IPEF में दक्षिण पूर्व एशिया के कई देश शामिल हैं, लेकिन चीन के करीबी माने जाने वाले कुछ देश इसमें शामिल नहीं हुए हैं। लाओस, कंबोडिया और म्यांमार इसमें शामिल नहीं हैं। सतर्कता बरतते हुए अमेरिका ने IPEF में फिलहाल ताइवान को नहीं रखा है। वजह साफ है, वह अपनी ‘एक चीन की नीति’ पर ही अप्रत्यक्ष रूप से कायम रहना चाहता है।


 
विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका के लिए ऐसा करना इसलिए आवश्यक है क्योंकि विश्व की नंबर दो अर्थव्यवस्था यानी चीन एशिया में बहुत तेजी से अपने पांव पसार रहा है। मंच के गठन को लेकर कहा गया है कि कोरोना काल में सप्लाई चेन बाधित होने पर चीन ने अपनी शर्ते थोपीं थी। अब विश्व इसके लिए ठोस विकल्प तैयार करना चाहता है और IPEF इसी क्रम में उठाया गया पहला बड़ा कदम है। दरअसल, अमेरिका पहले ट्रांस पैसिफिक पार्टनरशिप (TPP) के माध्यम से एशिया में अपने व्यापारिक और कूटनीतिक हित साधता था, लेकिन 2017 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका को इससे अलग कर लिया था।

 

इसकी वजह राजनीतिक है, क्योंकि 2001 में चीन के WTO में शामिल होने के बाद से अमेरिका में निर्माण क्षेत्र में नौकरियों में संकट आया था। अमेरिकी कंपनियों ने सस्ते श्रम के कारण चीन में फैक्टियां खोली थीं और अमेरिका में निर्माण क्षेत्र में रोजगार कम हो गए थे। इसका अमेरिका में विरोध हुआ था और ट्रंप का राजनीतिक कद बढ़ने के पीछे एक वजह यह मुद्दा भी रहा है। अब अमेरिका को चीन के बढ़ते वर्चस्व के बीच एशिया में अपनी पैठ भी मजबूत करनी थी और अमेरिकी लोगों के विरोध के कारण वह TPP में भी शामिल नहीं हो सकता था।

 

इसी कारण बाइडेन ने IPEF का रास्ता चुना है। अमेरिका के टीपीपी से हटने के बाद से चीन का रुतबा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ा है। चीन TTP का सदस्य है। TTP के अलावा एक और आर्थिक सहयोग मंच क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) भी है, यह हिंद प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय है और चीन इसमें भी अग्रणी भूमिका में हैं। अमेरिका इसका सदस्य नहीं है और भारत ने कुछ समय पहले ही इसकी सदस्यता से खुद को अलग किया है।
  

सवाल है कि भारत को IPEF  में शामिल होने के मुद्दे पर सतर्क क्यों होना चाहिए? तो जवाब होगा कि भारत जोखिम से बचना चाहेगा, क्योंकि यह आसियान के नेतृत्व वाले क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) का भागीदार देश नहीं है। उल्लेखनीय है कि क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी एशिया-प्रशांत क्षेत्र के 15 देशों के बीच एक मुक्त व्यापार समझौता है। लेकिन चीन के साथ अपने तनाव और आर्थिक नीतियों पर अपने संरक्षणवादी स्टैंड के कारण भारत इसमें शामिल नहीं हुआ।

 

Tanuja

Advertising