इंदिरा गांधी को पहले ही हो गया था मौत का अंदेशा, आखिरी भाषण में कही थी यह बात

Sunday, Nov 19, 2017 - 01:46 PM (IST)

नेशनल डेस्क: देश की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रही इंदिरा गांधी का आज जन्मदिन है। देश की आयरन लेडी का जन्म 19 नवंबर 1917 को राजनीतिक रूप से प्रभावशाली नेहरू परिवार में हुआ था। इनके पिता जवाहरलाल नेहरू और इनकी माता कमला नेहरू थीं। इन्दिरा गाधी वर्ष 1966 से 1977 तक लगातार 3 पारी के लिए भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री रही और उसके बाद चौथी पारी में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रही।


वह भारत के उन चुनिंदा कद्दावर नेताओं में शुमार थी जिन्होंने कड़े फैसले लेने से कभी परहेज नहीं किया। फिर चाहे वह आपातकाल लागू करने का फैसला हो या फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार का आदेश। उन्होंने बता दिया था कि वह घुटने टेकने वालों में से नहीं हैं। वह ऐसी दमदार नेता थी कि जब बोलती थी तो पूरा भारत उनका भाषण सुनता था। 

31 अक्टूबर 1984 को उन्हीं के दो अंगरक्षकों ने उनके आवास पर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी। हालांकि माना जाता है कि इंदिरा को अपनी मौत का अंदाजा हो गया था जिसका जिक्र उन्होंने इस घटना के एक दिन पहले भुवनेश्वर में किया था। अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि मैं आज यहां हूं कल शायद यहां न रहूं। मुझे चिंता नहीं मैं रहूं या न रहूं मेरा लंबा जीवन रहा है और मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने अपना पूरा जीवन अपने लोगों की सेवा में बिताया है। मैं अपनी आखिरी सांस तक ऐसा करती रहूंगी और जब मैं मरूंगी तो मेरे ख़ून का एक-एक कतरा भारत को मजबूत करने में लगेगा।  इंदिरा के इस भाषण से लोग हैरान रह गए थे। खुद उनकी ही पार्टी के लोग नहीं समझ पाए थे कि आखिर इंदिराजी ने ऐसे शब्द क्यों बोले। 

इंदिरा गांधी ने सत्ता में रहते हुए भारत में परमाणु कार्यक्रम, हरित क्रांति की शुरुआत की। बांग्लादेश के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई। ऑपरेशन ब्लू स्टार और आपातकाल जैसे कई आदेश दिए। इंदिरा गांधी ने सिर्फ प्रधानमंत्री बनने के बाद ही देश के लिए काम नहीं किया था, उससे पहले भी आजादी आंदोलन में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई थी। उन्होंने अपने किशोरावस्था में आजादी आंदोलन में मदद हेतु वानर सेना का निर्माण किया था और वो कांग्रेसी नेताओं की मदद भी करती थी।
 

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