लंबे इंतजार के बाद मैदान में उतरने को तैयार स्वदेशी लड़ाकू विमान: DRDO

Sunday, May 29, 2016 - 12:35 PM (IST)

नई दिल्ली: कावेरी इंजन का इस्तेमाल भारतीय मानवरहित युद्धक विमानों में किया जा रहा है और यह अपने अंतिम पड़ाव है। बहुत ही जल्द स्वदेशी लड़ाकू विमान मैदान में उतरेंगे। बता दें कि डीआरडीओ द्वारा विकसित एरो इंजन द्वारा हल्के युद्धक विमान को अपेक्षित ऊर्जा देने में विफल रहने के बाद भारतीय मानवरहित लड़ाकू विमान को ऊर्जा देने के लिए कावेरी डेरिवेटिव इंजन (ड्राई इंजन) के इस्तेमाल करने का फैसला किया गया है।

डी.आर.डी.ओ. की गैस टरबाइन रिसर्च एस्टैबलिशमेंट (जीटीआरई) द्वारा विकसित किए जा रहे कावेरी का विकास शुरुआत में हल्के युद्धक विमान के लिए किया जा रहा था, लेकिन अब इसका इस्तेमाल के एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) में होगा। इसके 2016-17 तक तैयार होने की संभावना है। एएमसीए एक दोहरे इंजन वाला स्वदेशी लड़ाकू विमान कार्यक्रम है जिसके लिए रक्षा मंत्रालय ने साल 2015 में इसके लिए मंजूरी दे दी थी। इसके लिए 2,600 करोड़ की ग्रांट मंजूर हुई थी और अब तक इसके पर कुल 2,000 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।

वहीं माना जा रहा है कि कावेरी और इसमें इस्तेमाल इंजन को आने वाले समय में संभव है कि नया नाम दिया जाए। माना जा रहा है कि इसका नया नाम ''घातक'' हो सकता है। कावेरी पर प्रारंभिक अध्ययन दो वैमानिक बेंगलुरू में स्थित प्रयोगशालाओं में किया गया है और जल्द ही इसे अंतरिम रूप दिया जाएगा। डीआरडीओ के महानिदेशक K.Tamilmani जो कि 31 मई को कार्यमुक्त हो रहे हैं ने बताया कि "कावेरी इंजन के डेरिवेटिव के लिए संभावित रणनीतिक उद्देश्यों और अन्य कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि वर्तमान में कावेरी इंजन में 50 किलो न्यूटन का आवेग पैदा करने में सक्षम है, लेकिन वायु सेना और अन्य हिस्सेदारों को 90-95 किलो न्यूटन की क्षमता की जरूरत है। बता दें कि स्वदेशी लड़ाकू विमान इंजन कार्यक्रम की शुरुआत सबसे पहले 1986 में की गई थी, लेकिन इसकी शुरुआत में विलंब हुआ तथा इस पर आने वाली लागत बढ़ गई। फिर 1990 के दशक में विदेशों द्वारा प्रौद्योगिकी नहीं दिए जाने की व्यवस्था के कारण भी इसका विकास बाधित हुआ। इसके बाद युद्धक विमान के लिए उपयुक्त क्षमता का इंजन हासिल नहीं कर पाने के बाद डीआरडीओ ने अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए फ्रांसीसी इंजन निर्माता कंपनी स्नेक्मा से समझौता किया है।

इसकी खासियत
-स्नेक्मा के साथ संयुक्त उपक्रम की व्यवस्था हो जाने के बाद भविष्य में इन मानदंडों को हासिल करने में सफलता मिल सकती है।

-कावेरी इंजनों को वायु सेना को दिए जाने वाले पहले 40 हल्के युद्धक विमानों में लगाया जाएगा।

-इसे एलसीए में तब लगाया जाएगा जब ये इस दशक के उत्तरार्ध में समुन्नयन के लिए डीआरडीओ के पास लाए जाएंगे।

-कावेरी का पहला परीक्षण पिछले वर्ष नवंबर में मास्को में ग्रोमोव फ्लाइट रिसर्च इंस्टीट्यूट में फ्लाइंग टेस्ट बेड (एफटीबी) परीक्षण के दौरान सफल रहा था।

-भविष्य में इंजन की विश्वसनीयता, सुरक्षा और उड़न योग्यता की जांच के लिए 50 से 60 परीक्षण उड़ान आयोजित की जाएंगी।

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