Russia-Ukraine War: विदेश गए भारतीय मेडिकल छात्र यूक्रेन में फंसे सहपाठियों की मदद के लिए आगे आए

Sunday, Mar 06, 2022 - 08:18 PM (IST)

नेशनल डेस्क: कीव में चार लोगों के लिए कैब चाहिए? क्या हम पोलैंड में किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं, जो यूक्रेन सीमा पर खाने के पैकेट पहुंचा सकता है? खारकीव से एक समूह चल रहा है, क्या ट्रेन के बारे में कोई जानकारी है? विदेश में रह रहे भारतीय मेडिकल छात्रों द्वारा व्हाट्सएप, टेलीग्राम सहित अन्य सोशल मीडिया ऐप पर बनाए गए ग्रुप में रोजाना ऐसे हजारों संदेश आते रहते हैं। ये छात्र रूसी हमले के बीच यूक्रेन में फंसे सहपाठी विद्यार्थियों की मदद के लिए स्वेच्छा से आगे आए हैं। स्वयंसेवी छात्र चीन, उज्बेकिस्तान और फिलीपींस जैसे देशों में पढ़ाई कर रहे हैं। इनमें से कई जहां अपने विश्वविद्यालय परिसर से मदद कर रहे हैं, वहीं कुछ अन्य जिन्हें कोविड-19 महामारी के मद्देनजर स्वदेश लौटना पड़ा था, ऑनलाइन पढ़ाई के बीच भारत में अपने घरों से ही योगदान दे रहे हैं।

युद्धग्रस्त यूक्रेन में भारतीय छात्रों के फंसे होने की खबर फैलते ही ये स्वयंसेवक हरकत में आ गए। चीन की हार्बिन चिकित्सा विश्वविद्यालय के छात्र पी शर्मा ने बताया, “हम कई देशों में पढ़ रहे मेडिकल छात्रों के संपर्क में हैं, क्योंकि हमने भारत में एक ही कोचिंग संस्थान से तैयारी की है।” शर्मा ने बताया कि विदेशी चिकित्सा स्नातक परीक्षा (एफएमजीई) से जुड़े अपडेट, नोट्स और अन्य सूचनाओं का आदान-प्रदान करने के लिए हमारे पास व्हाट्सएप और टेलीग्राम पर कई ग्रुप मौजूद थे। उन्होंने कहा, “यूक्रेन में जब हालात बिगड़ने लगे, तब हमें लगा कि क्यों न इन ग्रुप का इस्तेमाल वहां फंसे हमारे साथी छात्रों की मदद के लिए किया जाए। हमने सभी नंबर जुटाए और ग्रुप के लिंक को सोशल मीडिया पर साझा किया।”

शर्मा के मुताबिक, दो दिन के भीतर हमारे टेलीग्राम ग्रुप में 5,000 से अधिक सब्सक्राइबर थे और हमने इसे एक अभासी वॉर-रूम में तब्दील कर दिया। अलग-अलग टाइम जोन के बीच समन्वय स्थापित करने की चुनौती, सैकड़ों संदेशों का प्रबंधन करने का दबाव और यूक्रेन की स्थिति से अवगत रहने के लिए समाचार देखने की बाध्यता युवा स्वयंसेवकों को व्यस्त रखती है। फिलीपींस की कागायन राज्य विश्वविद्यालय में पढ़ रही एक भारतीय मेडिकल छात्रा ने दावा किया कि हर सोशल मीडिया ग्रुप में औसतन 15 मिनट में कम से कम 100 संदेश आते हैं। छात्रा के मुताबिक, हमने यह सुनिश्चित करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों को आपस में बांटा है कि मदद की ज्यादा से ज्यादा अपील को संबोधित किया जा सके।

छात्रा ने कहा, हम मदद पहुंचाने के लिए न सिर्फ अपने नेटवर्क से संपर्क करते हैं, बल्कि भारतीय दूतावास के अधिकारियों से भी गुहार लगाते हैं। छात्रा के अनुसार, कुछ ही दिनों में कई माता-पिता भी यूक्रेन का अपडेट हासिल करने और वहां फंसे बच्चों के लिए मदद मांगने की खातिर हमारे ग्रुप से जुड़ गए। चीन के जिनान शहर स्थित शेडॉन्ग विश्वविद्यालय में चौथे वर्ष की मेडिकल छात्रा रचिता बताती हैं कि उनमें से कुछ छात्र बारी-बारी से समन्वयक के कर्तव्यों का पालन करते हैं और ग्रुप में आई अप्रासंगिक सामग्री हटाते हैं। रचिता ने कहा कि बहुत सारे संदेश, खबरें और तरह-तरह की सूचनाएं आती हैं, जिन्हें छानने की जरूरत पड़ती है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फंसे हुए लोगों की मदद की अपील संदेशों की भीड़ में गुम न हो जाए। 

rajesh kumar

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