नेपाल को चीन से दूर रखना चाहता है भारत, अपना रहा ये नीति !

Monday, Aug 28, 2017 - 11:08 AM (IST)

बीजिंगः डोकलाम विवाद को लेकर भारत और चीन के मध्य तनाव तीसरे महीने में प्रवेश कर गया । अब भी दोनों देशों के बीच तनाव जारी है। इन परिस्थितियों में ये भारत के लिए आवश्यक है कि वह काठमांडू को किसी भी हालत में बीजिंग से दूर रखे। माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत नेपाल में आयोजित बिम्सटेक सम्मेलन के दौरान विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से देउबा को भारत आने का न्यौता दिया था। 

ऐसे में नेपाल का प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी पहली विदेश यात्रा के तौर पर देउबा के जरिए भारत का दौरा किया जो काफी महत्वपूर्ण है। यही वजह है कि देउबा की यात्रा के दौरान भारत ने उनके स्वागत में ‘रेड कार्पेट’ बिछाया और पूरे गार्ड ऑफ ऑनर के साथ सम्मान-सत्कार किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई उनकी मुलाकात के दौरान न केवल दोनों देशों ने द्विपक्षीय संबंधों को और प्रागाढ़ बनाने में सहमति जताई बल्कि 8 महत्वपूर्ण संधियों पर हस्ताक्षर हुए। 

यहां सवाल ये उठता है कि क्या भारत और नेपाल के मध्य हुए हालिया समझौते, भारत की मदद से नेपाल में चलने वाली विकास योजनाओं और घोषणाओं से दोनों देश फिर से अपने सदियों पुराने रिश्ते को मजबूत कर पाएंगे? हालिया वर्षो में भारत-नेपाल के बीच बढ़ी दूरियां और चीन से नजदीकियों के सबब पर फिलहाल कुछ कहना मुश्किल है। असल में भारत के दो पड़ोसी नेपाल और भूटान तिब्बत पर चीन के कब्जे के बाद से अपनी तरक्की, खुशहाली और सुरक्षा के लिए एक तरह से हम पर ही आश्रित रहे हैं।

भूटान तो अभी भी आंखें मूंद कर भारत पर भरोसा करता है। यही वजह है कि डोकलाम जैसी सीमा पर चीन से उसकी सुरक्षा हमारी जिम्मेदारी है और भारतीय सेनाएं वहां से न हटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। नेपाल की भी यही स्थिति थी, लेकिन अब नेपाल भारत और चीन के साथ मोलभाव की नीति पर चलता है। अर्थात वह दोनों तरफ से अच्छे प्रस्ताव की प्रतीक्षा करता है। यही वजह है कि पिछले कुछ दशकों से काठमांडू की राजनीति में उसका अमल-दखल बढ़ गया है।

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