चीन से चुनौती के बीच सीमा पर रक्षा तैयारियों को मजबूत करने में जुटा भारत

Friday, Sep 13, 2019 - 12:30 PM (IST)

नेशनल डेस्क (रवि प्रताप सिंह) : पूर्वी लद्दाख की पैंगोंग झील के पास बीते बुधवार को भारत-चीन सैनिकों के बीच धक्कामुक्की हुई। इसका कारण बना चीनी गश्ती दल का भारतीय दल को पैट्रोलिंग से रोकना। हालांकि अधिकारी स्तर पर वार्ता के बाद यहां बनी गतिरोध की स्थिति को दूर कर लिया गया। लेकिन एहतियातन दोनों ओर की सेनाओं ने यहां सैनिकों की संख्या को बढ़ा दिया है।

इससे पहले साल 2017 में दोनों और के सैनिक आमने-सामने आ गए थे। एक-दूसरे पर पत्थरबाजी भी हुई थी जिसमें दोनों ओर के सैनिकों के घायल होने की खबर आई थी। इसी वर्ष डोकलाम विवाद भी हुआ था जिसमें दोनों ओर के सैनिक 73 दिनों तक एक-दूसरे के सामने डटे रहे। दरअसल, चीन ने भूटान की जमीन पर सड़क निर्माण कार्य शुरू कर दिया था। भारत अपने मित्र देश भूटान की मदद के लिए आगे आया और चीन के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी। इस दौरान चीन की तरफ से काफी उकसावे वाली बयानबाजी की गई। लेकिन भारत ने बेहद संयमित भाषा में जवाब दिया और अपनी जगह पर डटा रहा। चीन समझ चुका था कि भारत उसकी किसी भी धमकी के दबाव में नहीं आएगा और उसने चेहरा बचाते हुए अपने सैनिक पीछे हटा लिए।

भारत के तत्कालीन गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सख्त लहजे में कहा था कि भारत अब 1962 वाला भारत नहीं है। पूर्व गृह मंत्री और वर्तमान रक्षा मंत्री की यह बात पूरी तरह से सही है। क्योंकि भारत ने भी चीन की आक्रमकता का जवाब देना शुरू कर दिया है। पैंगोग का विवाद चीनी आक्रमकता का नया उदाहरण है। यह पड़ोसी देश की पूरानी आदत है जब भी भारत के साथ बड़े स्तर पर बैठक होनी होती है। चीन दबाव बनाने के लिए सीमा पर तनाव को बढ़ाता है। अगले महीने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत आने वाले हैं इसलिए चीन की यह पहले से ही सोच समझ कर उठाया गया कदम है।

भारत की रक्षा तैयारियों में इजाफा
पिछले कुछ सालों में भारत ने अपनी रक्षा तैयारियों में तेजी से इजाफा शुरू कर दिया है। साथ ही भारत चीनी आक्रामकता का जवाब उसी की भाषा में दे रहा है। वर्ष 2016 में भारत ने पूर्वी लद्दाख से लगती चीनी सीमा के नजदीक 100 टी-90 टैंकों को तैनात कर दिए हैं। साल 1962 में मिली शर्मनाक हार के बाद हमने यहां से टैंक रेजीमेंट को हटा दिया था। इसके साथ ही हमने माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन भी कर दिया है। ताकि अगर चीन के साथ युद्ध होता है तो यह केवल भारतीय सीमा में न लड़ा जाए, बल्कि इसे चीन के भीतर तक ले जाया जाए। इसके साथ ही M777 American Ultra Light Howitzers तोपों को चीनी सीमा पर तैनात करने का फैंसला लिया गया है।  

भारत का उत्तर-पूर्व का इलाका सुरक्षा की संवेदनशील है। यहां हमारा बुनियादी ढांचा चीन के मुकाबले बहुत पीछे है। अरुणाचल प्रदेश को चीन दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा बताकर उस पर अपना दावा करता है। इसलिए चीन के किसी भी दुस्साहस का जवाब देने के लिए भारत ने चीनी से लगती सीमा पर करीब 4300 करोड़ की लागत से ब्रह्मोस मिसाइल तैनात कर दी है। हालांकि चीन ने इस कदम की निंदा की थी।

भारत से लगती सीमा पर रणनीतिक लिहाज से अहम बुनियादी ढांचे का निर्माण चीन पहले ही कर चुका है। चीनी सेना युद्ध की स्थिति में 48 घंटे के भीतर अपने सैन्य बलों की मदद के लिए सीमा पर पहुंच सकती है। जबकि भारत बुनियादी ढांचे के मामले में चीन से बहुत पीछे है। अभी भी सीमा पर रसद व अन्य सामग्री पहुंचाने के लिए कुछ जगहों पर खच्चर का इस्तेमाल किया जाता है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने रणनीतिक लिहाज से 73 सड़कों का निर्माण करना था, लेकिन 30 का ही काम पूरा हुआ है। हालांकि भारत दशकों की सुस्ती के बाद अब नींद से जाग चुका है। इसलिए तेजी से सीमा पर रक्षा तैयारियों को मजबूत करने में लगा हुआ है। इसी कड़ी में फ्रांस से अत्याधुनिक युद्धक विमान राफेल पश्चिम बंगाल के हासीमारा में तैनात करने की योजना है। यहां से चीन की सीमा नजदीक है।

हाल में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मामले में गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बयान देते हुए पाकिस्तान के साथ-साथ चीन को भी स्पष्ट संदेश दिया कि जब भी उन्होंने जम्मू-कश्मीर का जिक्र संसद में किया है। इसमें वो हिस्सा भी शामिल है जो चीन और पाकिस्तान दबाए बैठे हैं।      

 

Ravi Pratap Singh

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