साल में करीब 150 बार भारत की जमीन पर ‘लैंड ग्रैबर चीन’ करता है कब्जा

Saturday, Jun 20, 2020 - 11:22 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): भले ही चीन को हमारे देश ने अपना मित्रराष्ट्र बनाकर उस पर विश्वास किया हो लेकिन इतिहास गवाह है कि आजादी के बाद से जमीन हथियाने को लेकर उसने भारत की पीठ पर छुरा ही घोंपा है। इस बार लद्दाख की गलवान घाटी में 20 जवानों की शहादत भी उसकी इसी लालच भरी नीति का नतीजा है। चीन भारत संबधों के विशेषज्ञों की माने तो एक साल में चीन भारत के बार्डर में घुस कर करीब 150 बार जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करता है। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि इंटरनैशनल मार्केट में चीन के प्रोडक्ट्स की पहचान भारत ने ही बनाई है। चीनी उत्पादों की भारत में बढ़ती मांग ने उसे विश्व में आर्थिक महाशक्ति की ओर अग्रसर किया है। भारत ने चीन के साथ व्यापार को लेकर जो समझौते किए हैं, वे आज सभी परेशानी का सबब बन गए हैं। आगामी कुछ दशकों में आत्मनिर्भर देश का सपना पूरा होने पर इस समस्या से भारत बाहर तो आ सकता है, फिलवक्त चीन से निपटने का एक ही उपाए है कि देश के कोने-कोने में बिक रहे उसके उत्पादों का बहिष्कार किया जाए।



मोदी सरकार के आने से पहले की बात करें तो 2013 अप्रैल में कुछ कुत्तों और 50 सैनिकों के दम पर ‘दौलत बेग ओल्डी’ के महत्वपूर्ण इलाके को 21 दिन तक अपने कब्जे में रखा था। डा.भगवती प्रकाश शर्मा ने लिखा कि यू.पी.ए. सरकार ने चीन के सैनिकों को वापस धकेलने के बजाए उनकी शर्तों को माना और भारतीय सेना को अपनी सीमा से 38 कि.मी. पीछे हटने का आदेश दिया था। इस दौरान सेना को चीन की शर्तों पर अपने ही बंकर तोडऩे पड़े थे। जबिक जून 2017 में डोकलाम में एन.डी.ए. सरकार द्वारा अपनाए कड़े रुख के कारण ही चीन को बिना शर्त पीछे हटना पड़ा। वर्ष 2013 में दौलत बेग ओल्डी तो भारत का भू-भाग था, उसकी रक्षा तब परम आवश्यक थी। वर्ष 2013 के तनाव के समय तो सीमा पर इस गंभीर तनाव की स्थिति में भी गृह मंत्रालय ने सीमा की रक्षा या प्रबंध का कार्य सेना को सौंपने से मना कर दिया था जो अत्यंत चिंताजनक था।



आर्थिक सुविधाएं मिलने पर भी डोकलाम विवाद
भारत-चीन सीमा पर तनाव को कम करने के लिए लगातार बैठकों का दौर जारी है। संभवत: आने वाले समय में यह तनाव बातचीत से कम भी हो जाएगा, लेकिन 20 जवानों की शहादत के बाद पीएम मोदी ने एक तस्वीर तो साफ कर दी कि भारत चीन की इस तरह की हरकतों को बर्दाशत नहीं करने वाला है। 2014 में मोदी सरकार ने चीन के साथ अच्छे संबंधों की उम्मीद करते हुए 16 सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए थे और 20 अरब डॉलर के विदेशी निवेश की छूट दी थी। इतना करने के बाद भी 2017 में 72 दिन तक डोकलाम में विवाद खड़ा कर दिया। भारत में आर्थिक सुविधाएं हासिल करने के बाद अपने ही मित्र देश के साथ ऐसा बर्ताव करना हैरत में डाल देने वाला था। लेखक डॉ. भगवती प्रकाश शर्मा ने अपनी पुस्तक चीन एक आर्थिक भू-राजनीतिक चुनौती में इन हालातों का विश्लेषण किया है। उन्होंने लिखा है कि विगत 10 वर्षों से तो चीन प्रतिवर्ष 150 से 400 बार तक हमारी सीमा में घुसपैठ करता रहा है और इन्हीं घुसपैठों के माध्यम से इंच-दर-इंच आगे बढ़ते हुए हमारे कई अत्यंत उर्वरा चारागाह क्षेत्रों व ऊंचाई वाले सामरिक महत्व के क्षेत्रों पर अधिकार करता चला आ रहा है।



भारत ने बनाई है चीन उत्पादों की पहचान, अब हुआ खुद ही परेशान
1 देश में इस वक्त 50 से अधिक चीनी मोबाइल ब्रांड बिक रहे हैं। चीन के 4 स्मार्टफोन ब्रांड जिओमी, विवो, ओप्पो व जिओनी की कुल वैश्विक बिक्री 60 फीसदी से ज्यादा भारत में हो रही है।
2  विश्व के मोबाइल फोन के बाजार में भारत का अंश 15 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा हर भारतीय को चीनी उत्पादों को इस्तेमाल करने की लत लग चुकी है। चीन वैसे भी भारतीयों को आलसी कहता है।
3  फर्नीचर, बिजली का साजो-सामान, चीनी कैल्कुलेटर, लेनोवो का कंप्यूटर, चीनी मोबाइल फोन, बल्ब आदि लोगों के घरों की शान बने हुए हैं। सरकार के हाथ चीन से हुए समझौतों से बंधे हुए हैं। 
4  सीधे तौर पर सरकार चीनी सामान का बहिष्कार करने का जनता को फरमान भी जारी नहीं कर सकती है। ऐसे में जनता ही यदि भविष्य में चीनी सामान का बहिष्कार करे तो चीन को झुकना ही पड़ेगा।

Anil dev

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