देश के अंदर या देश के बाहर, अजित डोभाल के लिए नामुमकिन कुछ भी नहीं

Monday, Jul 06, 2020 - 06:24 PM (IST)

नई दिल्लीः मोदी सरकार के मिस्टर भरोसेमंद ‘अजीत डोभाल’ जिन्हें 'जेम्स बॉन्ड' के नाम से भी जाना जाता है, उनकी डिक्शनरी में 'नामुकिन' शब्द है ही नहीं। डोभाल जिस काम के लिए मैदान में उतर जाएं, उसे अंजाम तक पहुंचाकर ही दम लेते हैं। फिर चाहे हालात कैसे भी हों। मोदी सरकार के मिस्टर भरोसेमंद बन चुके राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) ने देश के अंदर ही नहीं बाहर भी कई ऐसे सफल ऑपरेशन को अंजाम दिया है, जो बिल्कुल नामुमकिन लगते थे। ताजा मामले की बात करें तो चीन से जुड़ा है। 5 मई के बाद ही भारत और चीन के बीच हालात बिगड़े हुए थे। 15 जून को दोनों देशों के जवानों के बीच खूनीं संघर्ष हो गया, जिसमें भारत के 20 जवान शहीद हो गए। हर कोशिश नाकाम होने के बाद मोर्चे पर उतरे अजित डोभाल। बीती रात उन्होंने 2 घंटे तक अपने चीनी समकक्ष से बात की, जिसके बाद स्थितियां कुछ सामान्य होती दिख रहीं हैं।

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, “केंद्र ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को मोर्च पर लगा दिया था और उन्होंने रविवार को चीनी समकक्ष वांग यी के साथ करीब दो घंटे तक वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए वार्ता की थी। भारत के सख्त रुख के बाद चीन के पास पीछे हटने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। भारत ने ड्रैगन को चौतरफा घेर रखा था। चीन के 59 ऐप्स पर बैन के बाद चीन पूरी तरह से हिल गया था।

2014 में मोदी सरकार बनी। केंद्र में सरकार बनते ही सबसे पहले अजीत डोभाल को देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया गया। इससे ये साबित हो गया था कि पीएम मोदी डोभाल पर कितना भरोसा करते हैं। देश के अंदर और बाहर के ऑपरेशन में डोभाल आज भी सर्वेसर्वा होते हैं। वहीं पूरी रणनीति बनाते हैं और वो रणनीति कैसे कारगर होगी इसकी प्लानिंग भी करते हैं। पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक हो या एयर स्ट्राइक डोभाल का रोल सबसे अहम था।

दिल्ली हिंसा के दौरान हालात पर नजर रखे रहे अजित डोभाल
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और एनआरसी के विरोध में दिल्ली में काफी विरोध हो रहा था। इसके बाद अचानक दिल्ली में हिंसा भड़क गई। अजित डोभाल ने लगातार हालात पर नजर बनाए रखा और अधिकारियों को आगे की कार्रवाई के लिए निदेशित करते रहे। कुछ दिनों के बाद खुद डोभाल दिल्ली की सड़कों पर उतरे और हालात का जायजा लिया।

धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर में घूमते नजर आए डोभाल
पाकिस्तान लगातार कश्मीर की आवाम को भड़का रहा था। धारा 370 खत्म होने के बाद डोभाल खुद कश्मीर की सड़कों पर उतरे और लोगों को विश्वास में लिया। डोभाल आतंकियों के भी निशाने पर रहते हैं। लेकिन इसकी परवाह किए बिना वो काफी समय कश्मीर में घूमें और लोगों से बातचीत की।

नॉर्थ-ईस्ट, जम्मू कश्मीर और पंजाब में भी डोभाल के ऑपरेशन
1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहृत किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाने वाले अजीत डोभाल ही थे। डोभाल ने पाकिस्तान और ब्रिटेन में राजनयिक जिम्मेदारियां संभालीं। एक दशक तक उन्होंने खुफिया ब्यूरो की ऑपरेशन शाखा का नेतृत्व किया।

अजीत डोभाल 33 साल तक नॉर्थ-ईस्ट, जम्मू-कश्मीर और पंजाब में खुफिया जासूस भी रहे। वह 2015 में मणिपुर में आर्मी के काफिले पर हमले के बाद म्यांमार की सीमा में घुसकर उग्रवादियों के खात्मे के लिए सर्जिकल स्ट्राइक ऑपरेशन के हेड प्लानर रहे।

ऑपरेशन ब्लू स्टार में निभाई थी बड़ी भूमिका
डोभाल को जासूसी का लगभग 37 साल का अनुभव है। 2014 में मोदी सरकार आने के बाद सबसे पहले डोभाल को सबसे अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। उनको 31 मई 2014 को देश का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया गया। रॉ के अंडर कवर एजेंट के तौर पर डोभाल सात साल पाकिस्तान के लाहौर में एक पाकिस्तानी मुस्लिम बनकर रहे थे। जून 1984 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर हुए आतंकी हमले के काउंटर ऑपरेशन ब्लू स्टार में जीत के नायक बने। अजीत डोभाल रिक्शा वाला बनकर मंदिर के अंदर गए और आतंकियों की जानकारी सेना को दी, जिसके आधार पर ऑपरेशन में भारतीय सेना को सफलता मिली।

कीर्ति चक्र से सम्मानित हैं अजीत डोभाल
अजीत डोभाल भारत के इकलौते ऐसे नौकरशाह हैं जिन्हें कीर्ति चक्र और शांतिकाल में मिलने वाले गैलेंट्री अवॉर्ड से नवाजा गया है। डोभाल कई सिक्युरिटी कैंपेन का हिस्सा रहे हैं। इसी के चलते उन्होंने जासूसी की दुनिया में कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं। अजीत डोभाल का जन्म 1945 को पौड़ी गढ़वाल में हुआ था। उनकी पढ़ाई अजमेर मिलिट्री स्कूल में हुई है। केरल के 1968 बैच के IPS अफसर डोभाल अपनी नियुक्ति के चार साल बाद 1972 में ही इंटेलीजेंस ब्यूरो (IB) से जुड़ गए थे।

Yaspal

Advertising