ऑफ द रिकार्ड: नरेंद्र मोदी के उपदेश का राज्यों पर कोई असर नहीं

Saturday, Feb 15, 2020 - 08:20 AM (IST)

नई दिल्ली: अगस्त 2019 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनसंख्या नियंत्रण का आह्वान किया था। यहां तक कि शिवसेना ने भी 2 बच्चों के नियम की वकालत करते हुए राज्यसभा में प्राइवेट मैंबर्स बिल पेश किया था। केंद्रीय गृह मंत्री को भी उद्धृत करते हुए कहा गया था कि यह भाजपा के एजैंडे का हिस्सा है। आर.एस.एस. प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में जनसांख्यिकीय अंतर पर ङ्क्षचता जताते हुए राष्ट्रीय जनसंख्या नीति 2000 के रिवीजन की मांग करते हुए इसे देश भर में लागू करने को कहा था। 


आंकड़े बताते हैं कि मोदी का स्वास्थ्य मंत्रालय तो परिवार नियोजन के लिए चल रही योजनाओं हेतु आबंटित फंड को खर्च करने में भी नाकाम रहा। परिवार नियोजन तहत केंद्र की ओर से राज्यों के लिए स्वीकृत फंड का केवल 56 प्रतिशत ही खर्च हो पाया। वर्ष 2016-17 से 2019-20 तक पिछले 4 सालों में इस मद में स्वीकृत 12,710 करोड़ में से राज्य केवल 6995 करोड़ रुपए ही खर्च कर पाए। इसमें भी 100 करोड़ रुपए केवल विज्ञापनों पर खर्च हुए। यही नहीं, हर वर्ष विश्व जनसंख्या दिवस पर और नसबंदी पखवाड़े दौरान जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। 

राज्यों का दावा है कि उन्होंने टी.वी. कमर्शियल्स, पोस्टर, होर्डिंग्स आदि सहित कई जागरूकता कार्यक्रम चला रखे हैं तथा 2017 में परिवार नियोजन को समॢपत वैबसाइट भी शुरू की गई लेकिन उनके पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि वे फंड का केवल 55-60 प्रतिशत हिस्सा ही क्यों खर्च पाए। इस कमजोर प्रदर्शन के बावजूद सरकार के सर्वे अनुसार 2016-17 में जो जन्म दर 20.4 प्रतिशत थी वह 2017-18 में घट कर 20.2 प्रतिशत पर आ गई। नैशनल फैमिली हैल्थ सर्वे 4 अनुसार, अविवाहित किशोरों के बीच गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल केवल 16.4 प्रतिशत है। इस योजना तहत सबसे खराब प्रदर्शन उत्तर प्रदेश और बिहार का है जहां राजग का शासन है। यह स्थिति तब है जब स्वास्थ्य मंत्रालय का काम डॉ. हर्षवर्धन जैसे निपुण मंत्री देख रहे हैं।
 

Anil dev

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