इलेक्शन डॉयरीः इंदिरा के राज में भाषा के आधार पर अलग राज्य बना पंजाब

Saturday, Apr 20, 2019 - 08:14 AM (IST)

इलेक्शन डेस्क(नरेश कुमार): देश की आजादी के बाद यदि भारत के किसी प्रदेश ने सबसे ज्यादा कुर्बानियां दीं तो वह पंजाब था क्योंकि यह सिर्फ एक देश का विभाजन नहीं था बल्कि इस प्रक्रिया में पंजाब भी विभाजित हुआ था और पंजाब का एक हिस्सा पाकिस्तान की तरफ चला गया जिसे पश्चिमी पंजाब कहा गया जबकि एक हिस्सा भारत के साथ आया। 

1947 में विभाजन के दौरान सबसे ज्यादा कत्लोगारत का गवाह भी पंजाब ही बना लेकिन पंजाब के लिए दर्द का अंत यहीं पर नहीं था। राज्य को देश की आजादी के बाद एक बार फिर विभाजन के दौर से गुजरना पड़ा और भारत के हिस्से में आए पंजाब के भी भाषा के आधार पर 3 टुकड़े करने पड़े। 

यह एक बड़ा फैसला था लेकिन तत्कालीन हालातों को देखते हुए इंदिरा गांधी की सरकार ने 1966 में यह फैसला किया और पंजाबी भाषा बोलने वाले इलाके पंजाब में शामिल किए गए जबकि पहाड़ी हिमाचल और हिन्दी भाषी इलाके हरियाणा के हिस्से आए। इस विभाजन से पहले की एक लम्बी कहानी है। आजादी के बाद जब पहले चुनाव हुए तो इन चुनावों के दौरान 1951 में अकाली दल को महज 13 सीटें मिलीं। 

अकाली दल को इस बात का अंदाजा हो गया था कि संयुक्त पंजाब के रहते उन्हें सत्ता नहीं मिलेगी, लिहाजा 50 के दशक में ही अकाली दल ने अलग पंजाबी सूबे के लिए संघर्ष शुरू किया और 1955 में 12000 सिखों की गिरफ्तारियां भी हुईं 1956 में राज्य पुनर्गठन एक्ट के जरिए पैप्सू को पंजाब में शामिल किया गया और पंजाब की सीटें 126 से बढ़कर 154 हो गई। लेकिन 1957 में हुए चुनाव में अकाली एक बार फिर हार गए और अकालियों का अलग राज्य के लिए प्रश्र जारी रहा। 1962 में एक बार फिर करीब 25 हजार के करीब सिखों ने गिरफ्तारियां दीं। पंजाब में अलग सूबे के आंदोलन को देखते हुए सितम्बर 1966 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पंजाब पुनर्गठन एक्ट के जरिए पंजाब का विभाजन किया और चंडीगढ़ को दोनों प्रदेशों की राजधानी बनाया गया।     

Pardeep

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